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कृषि जनगणना (2015-16) के अनुसार, भारत में लघु एवं सीमांत किसानों की संख्या 12.563 करोड़ है। देश में 35 प्रतिशत किसानों के पास 0.4 हेक्टेयर से कम जमीन है, जबकि 69 फीसदी किसानों के पास एक और 87 फीसदी किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम जमीन है। 0.4 हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसान सालाना औसतन 8,000 रुपये कमाते हैं, जबकि एक और दो हेक्टेयर के बीच जमीन वाले किसान सालाना औसतन 50,000 रुपये कमाते हैं। देश मे लघु और सीमांत किसानों की न केवल आय कम है, बल्कि इनके लिए कृषि एक जोखिम भरा कार्य भी है।
देश में अब तक कृषि क्षेत्र से संबंधित जितनी योजनाएं बनती रही हैं, उनका लाभ अधिकतर बड़े किसान ही उठाते हैं। लघु और सीमांत किसान इनका लाभ नहीं उठा पाते हैं, क्योंकि उन्हें इन योजनाओं की जानकारी नहीं होती। अब प्रधानमंत्री किसान योजना में इसका ध्यान रखा गया है कि समस्त लघु और सीमांत किसानों को इसमें शामिल किया जाए। नई तकनीकी अपनाने में भी लघु एवं सीमांत किसान झिझकते हैं और कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते। केंद्र सरकार ने वर्ष 2020-21 के बजट में ग्रामीण एवं कृषि क्षेत्र के विकास हेतु अधिकतम वित्त की व्यवस्था की है। साथ ही, 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। ऐसे में लघु एवं सीमांत किसानों की आय को बढ़ाना आवश्यक है।
लघु एवं सीमांत किसानों की आय बढ़ाने व उनके कृषि-जोखिमों को कम करने के लिए छोटी-छोटी योजनाओं के बजाय बड़ी योजनाएं बनाने की जरूरत है। अभी लघु एवं सीमांत किसान कृषि को व्यवसाय नहीं मानते, इसलिए कोई जोखिम लेने को तैयार नहीं होते। कृषि से संबंधित उनकी समस्याओं को सब्सिडी देकर हल किया जाता है, जिससे मूल समस्या का निदान नहीं हो पाता है। उनके लिए कृषि व्यवसाय मॉडल विकसित करने की जरूरत है। कम से कम लागत में अधिकतम आय कैसे प्राप्त की जाए, यह उन्हें समझाना होगा। इसमें निजी क्षेत्र को भी मुख्य भूमिका निभानी होगी।
लघु एवं सीमांत किसानों के पास छोटी जोत की जमीन है, जिससे फसल की लागत बढ़ जाती है और उन्हें बहुत कम लाभ होता है अथवा नहीं के बराबर लाभ होता है। इसलिए उन्हें संगठित होकर एकसाथ मिलकर खेती करने, कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण एवं विपणन स्वयं करने के लिए प्रेरित करना होगा, ताकि उनकी आमदनी में इजाफा हो सके। देश में 87 फीसदी किसान लघु एवं सीमांत श्रेणी के हैं, अगर इनकी आय बढ़ेगी, तो मांग बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी।
कृषि एवं गैर कृषि, दोनों क्षेत्रों में लघु एवं सीमांत किसान की आमदनी बढ़ाकर ही उनकी आय दोगुनी की जा सकती है। जापान, वियतनाम एवं दक्षिण कोरिया में भी छोटे-छोटे खेत हैं, वहां किसान अंशकालिक कृषि करते हैं। बाकी समय वे गैर कृषि कार्य करते हैं। इसे हमारे यहां भी लागू करने पर विचार किया जा सकता है। किसानों को कहां ऋण मिलेगा, बाजार कहां होगा, वे कैसे कुशल हो सकते हैं, इन सबकी जानकारी उन्हें देना जरूरी है। चीन में ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के बीचोंबीच उद्योगों को विकसित किया गया है, ताकि किसान गैर कृषि कार्य करने के अलावा अपने उत्पादों को बेच सकें। भारत में जगह-जगह ऐसे मॉडल विकसित किए जाने चाहिए।
सीमांत किसान दो एकड़ से भी कम जमीन पर सब्जी एवं फल आदि उगा सकते हैं। सूक्ष्म सिंचाई, नई-नई तकनीक के उपयोग, बाजार एवं भंडारण की व्यवस्था करके लघु एवं सीमांत किसानों के लिए छोटी-छोटी जोत को भी लाभप्रद बनाया जा सकता है।
कृषि जनगणना (2015-16) के अनुसार, भारत में लघु एवं सीमांत किसानों की संख्या 12.563 करोड़ है। देश में 35 प्रतिशत किसानों के पास 0.4 हेक्टेयर से कम जमीन है, जबकि 69 फीसदी किसानों के पास एक और 87 फीसदी किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम जमीन है। 0.4 हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसान सालाना औसतन 8,000 रुपये कमाते हैं, जबकि एक और दो हेक्टेयर के बीच जमीन वाले किसान सालाना औसतन 50,000 रुपये कमाते हैं। देश मे लघु और सीमांत किसानों की न केवल आय कम है, बल्कि इनके लिए कृषि एक जोखिम भरा कार्य भी है।
देश में अब तक कृषि क्षेत्र से संबंधित जितनी योजनाएं बनती रही हैं, उनका लाभ अधिकतर बड़े किसान ही उठाते हैं। लघु और सीमांत किसान इनका लाभ नहीं उठा पाते हैं, क्योंकि उन्हें इन योजनाओं की जानकारी नहीं होती। अब प्रधानमंत्री किसान योजना में इसका ध्यान रखा गया है कि समस्त लघु और सीमांत किसानों को इसमें शामिल किया जाए। नई तकनीकी अपनाने में भी लघु एवं सीमांत किसान झिझकते हैं और कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते। केंद्र सरकार ने वर्ष 2020-21 के बजट में ग्रामीण एवं कृषि क्षेत्र के विकास हेतु अधिकतम वित्त की व्यवस्था की है। साथ ही, 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। ऐसे में लघु एवं सीमांत किसानों की आय को बढ़ाना आवश्यक है।
लघु एवं सीमांत किसानों की आय बढ़ाने व उनके कृषि-जोखिमों को कम करने के लिए छोटी-छोटी योजनाओं के बजाय बड़ी योजनाएं बनाने की जरूरत है। अभी लघु एवं सीमांत किसान कृषि को व्यवसाय नहीं मानते, इसलिए कोई जोखिम लेने को तैयार नहीं होते। कृषि से संबंधित उनकी समस्याओं को सब्सिडी देकर हल किया जाता है, जिससे मूल समस्या का निदान नहीं हो पाता है। उनके लिए कृषि व्यवसाय मॉडल विकसित करने की जरूरत है। कम से कम लागत में अधिकतम आय कैसे प्राप्त की जाए, यह उन्हें समझाना होगा। इसमें निजी क्षेत्र को भी मुख्य भूमिका निभानी होगी।
लघु एवं सीमांत किसानों के पास छोटी जोत की जमीन है, जिससे फसल की लागत बढ़ जाती है और उन्हें बहुत कम लाभ होता है अथवा नहीं के बराबर लाभ होता है। इसलिए उन्हें संगठित होकर एकसाथ मिलकर खेती करने, कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण एवं विपणन स्वयं करने के लिए प्रेरित करना होगा, ताकि उनकी आमदनी में इजाफा हो सके। देश में 87 फीसदी किसान लघु एवं सीमांत श्रेणी के हैं, अगर इनकी आय बढ़ेगी, तो मांग बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी।
कृषि एवं गैर कृषि, दोनों क्षेत्रों में लघु एवं सीमांत किसान की आमदनी बढ़ाकर ही उनकी आय दोगुनी की जा सकती है। जापान, वियतनाम एवं दक्षिण कोरिया में भी छोटे-छोटे खेत हैं, वहां किसान अंशकालिक कृषि करते हैं। बाकी समय वे गैर कृषि कार्य करते हैं। इसे हमारे यहां भी लागू करने पर विचार किया जा सकता है। किसानों को कहां ऋण मिलेगा, बाजार कहां होगा, वे कैसे कुशल हो सकते हैं, इन सबकी जानकारी उन्हें देना जरूरी है। चीन में ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के बीचोंबीच उद्योगों को विकसित किया गया है, ताकि किसान गैर कृषि कार्य करने के अलावा अपने उत्पादों को बेच सकें। भारत में जगह-जगह ऐसे मॉडल विकसित किए जाने चाहिए।
सीमांत किसान दो एकड़ से भी कम जमीन पर सब्जी एवं फल आदि उगा सकते हैं। सूक्ष्म सिंचाई, नई-नई तकनीक के उपयोग, बाजार एवं भंडारण की व्यवस्था करके लघु एवं सीमांत किसानों के लिए छोटी-छोटी जोत को भी लाभप्रद बनाया जा सकता है।