11 दिसंबर को 5 राज्यों के चुनाव परिणामों से राजस्थान में भाजपा को बड़ा झटका लगा है। चुनाव परिणामों के बीच शुरुआती रुझान इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि राज्य में वसुंधरा सरकार की विदाई तय है और कांग्रेस ने बहुमत की ओर है। राज्य की 199 सीटों में से 69 बीजेपी को मिलने के संकेत हैं जबकि 105 कांग्रेस व 25 अन्य विधायकों को मिले हैं। बता दें कि अभी पूरे नतीजे नहीं आए हैं।
बहरहाल, यह पहला मौका नहीं है कि राजस्थान में सरकार एक टर्म के बाद बदल रही है बल्कि देढ़ दशक से ऐसा हो रहा है। खास बात यह है कि राजस्थान में बीजेपी के पास इस बार सुनहरा मौका था कि वह राज्य में बदलती हुई सरकारों की परिपाटी बदलती, लेकिन वह मौका उसने गवां दिया।
क्यों राजस्थान गंवा दिया भाजपा ने?
भाजपा राजस्थान में दोबारा सरकार बना सकती थी, लेकिन वसुंधरा राजे की इमेज को बड़ी करने और दूसरों के चेहरों को छोटा करना भाजपा के लिए नुकसानदायक साबित हुआ। "मोदी जी से बैर नहीं वसुंधरा तेरी खैर नहीं' जैसे नारों को यदि संगठन और विशेष रूप से अमित शाह गंभीरता से लेते तो संभवतः इन चुनाव परिणामों को बदला जा सकता था।
दरअसल, राज्य में टिकट बंटवारे से लेकर भाजपा के राज्य अध्यक्ष बदलने तक सभी जगह वसुंधरा के निर्णय पार्टी पर हावी रहे हैं। बता दें कि भाजपा को पिछले विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत के चलते 200 सीटों में से 163 सीटें हासिल हुई थीं। भाजपा को इस बात का पहले से ही डर था कि इस प्रचंड बहुमत से सरकार चलाने के बाद अब इन चुनावों में टिकट का बंटवारा सही तरीके से नहीं हुआ, तो बगावत पार्टी को ले डूबेगी।
बागी वसुंधरा से नाराज थे और जनता भाजपा से
राज्य में एक बड़ा तबका जहां पार्टी के अंदर वसुंधरा के रवैये और काम करने के तरीके से नाराज रहा, वहीं प्रदेश की जनता में भी भाजपा सरकार के प्रति रोष था। राज्य में नोटबंदी और जीएसटी से कारोबार को हुए नुकसान का असर व्यापारियों पर साफ दिखता है, लेकिन भाजपा का यह परंपरागत वोट बैंक भी एक तरह से नाराज ही रहा है।
वहीं दूसरी ओर भाजपा के दिग्गज ब्राह्णण नेता रहे घनश्याम तिवाड़ी की अनदेखी और बगावत ने पार्टी के ब्राह्रण जनाधार को भी दुखी किया। घनश्याम तिवाड़ी वसुंधरा राजे से इस कदर नाराज थे कि उन्होंने अलग पार्टी 'भारत वाहिनी' का गठन कर चुनाव लड़ा। उन्होंने खुलेआम वसुंधरा राजे का विरोध किया था। वह सांगानेर से 5 बार विधायक रह चुके हैं और पिछली बार करीब 60 हजार वोटों से जीते थे।
अपने ही लोगों की नहीं सुनी वसुंधरा ने
वहीं, एक और बड़े नेता निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल भी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में उतरे। नागौर से खींवसर से विधायक बेनीवाल ने 57 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। राजस्थान में सबसे बड़े करीब 12 प्रतिशत से अधिक का वोट बैंक माने जाने वाले जाट समाज के नेता हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने भाजपा का खेल बिगाड़ने में बड़ा रोल निभाया।
कई दूसरे बागियों ने भी भाजपा का खेल बिगाड़ा। यही नहीं भाजपा ने कई विधायक-मंत्रियों के टिकट काटे जो पार्टी से नाराज हो गए और इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा। टिकट कटने से नाराज वसुंधरा राजे सरकार के मंत्री सुरेंद्र गोयल ने जैतारण से, राजकुमार रिणवा ने रतनगढ़ से, ओमप्रकाश हुड़ला ने महुवा और धनसिंह रावत ने बांसवाड़ा विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भाजपा को चुनौती दी थी। विधायक अनिता कटारा, देवेंद्र कटारा, नवनीत लाल निनामा, किशनाराम नाई और गीता वर्मा भी निर्दलीय मैदान में थे।
एंटी इंकमबेंसी का रोल
राजस्थान में तकरीबन डेढ़ दशक से सरकारें बदलती रही हैं। ऐसे में वसुंधरा की विदाई के पीछे एंटी इंकमबेंसी फैक्टर का भी अहम रोल रहा है। 2013 में भाजपा का आना ठीक वैसा ही था जैसा की अशोक गहलोत सरकार का आना था। ऐसे में राजस्थान में वसुंधरा राजे सरकार की विदाई तकरीबन तय मानी जा रही थी। अब चूंकि चुनाव परिणाम सामने है और रुझान लगातार कांग्रेस के पक्ष में आ रहे हैं, यदि सबकुछ ठीक रहा तो राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनना तय है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : यह लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है. आप भी अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं. लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें.
11 दिसंबर को 5 राज्यों के चुनाव परिणामों से राजस्थान में भाजपा को बड़ा झटका लगा है। चुनाव परिणामों के बीच शुरुआती रुझान इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि राज्य में वसुंधरा सरकार की विदाई तय है और कांग्रेस ने बहुमत की ओर है। राज्य की 199 सीटों में से 69 बीजेपी को मिलने के संकेत हैं जबकि 105 कांग्रेस व 25 अन्य विधायकों को मिले हैं। बता दें कि अभी पूरे नतीजे नहीं आए हैं।
बहरहाल, यह पहला मौका नहीं है कि राजस्थान में सरकार एक टर्म के बाद बदल रही है बल्कि देढ़ दशक से ऐसा हो रहा है। खास बात यह है कि राजस्थान में बीजेपी के पास इस बार सुनहरा मौका था कि वह राज्य में बदलती हुई सरकारों की परिपाटी बदलती, लेकिन वह मौका उसने गवां दिया।
क्यों राजस्थान गंवा दिया भाजपा ने?
भाजपा राजस्थान में दोबारा सरकार बना सकती थी, लेकिन वसुंधरा राजे की इमेज को बड़ी करने और दूसरों के चेहरों को छोटा करना भाजपा के लिए नुकसानदायक साबित हुआ। "मोदी जी से बैर नहीं वसुंधरा तेरी खैर नहीं' जैसे नारों को यदि संगठन और विशेष रूप से अमित शाह गंभीरता से लेते तो संभवतः इन चुनाव परिणामों को बदला जा सकता था।
दरअसल, राज्य में टिकट बंटवारे से लेकर भाजपा के राज्य अध्यक्ष बदलने तक सभी जगह वसुंधरा के निर्णय पार्टी पर हावी रहे हैं। बता दें कि भाजपा को पिछले विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत के चलते 200 सीटों में से 163 सीटें हासिल हुई थीं। भाजपा को इस बात का पहले से ही डर था कि इस प्रचंड बहुमत से सरकार चलाने के बाद अब इन चुनावों में टिकट का बंटवारा सही तरीके से नहीं हुआ, तो बगावत पार्टी को ले डूबेगी।
राज्य में एक बड़ा तबका जहां पार्टी के अंदर वसुंधरा के रवैये और काम करने के तरीके से नाराज रहा
- फोटो : File Photo
बागी वसुंधरा से नाराज थे और जनता भाजपा से
राज्य में एक बड़ा तबका जहां पार्टी के अंदर वसुंधरा के रवैये और काम करने के तरीके से नाराज रहा, वहीं प्रदेश की जनता में भी भाजपा सरकार के प्रति रोष था। राज्य में नोटबंदी और जीएसटी से कारोबार को हुए नुकसान का असर व्यापारियों पर साफ दिखता है, लेकिन भाजपा का यह परंपरागत वोट बैंक भी एक तरह से नाराज ही रहा है।
वहीं दूसरी ओर भाजपा के दिग्गज ब्राह्णण नेता रहे घनश्याम तिवाड़ी की अनदेखी और बगावत ने पार्टी के ब्राह्रण जनाधार को भी दुखी किया। घनश्याम तिवाड़ी वसुंधरा राजे से इस कदर नाराज थे कि उन्होंने अलग पार्टी 'भारत वाहिनी' का गठन कर चुनाव लड़ा। उन्होंने खुलेआम वसुंधरा राजे का विरोध किया था। वह सांगानेर से 5 बार विधायक रह चुके हैं और पिछली बार करीब 60 हजार वोटों से जीते थे।
अपने ही लोगों की नहीं सुनी वसुंधरा ने
वहीं, एक और बड़े नेता निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल भी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में उतरे। नागौर से खींवसर से विधायक बेनीवाल ने 57 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। राजस्थान में सबसे बड़े करीब 12 प्रतिशत से अधिक का वोट बैंक माने जाने वाले जाट समाज के नेता हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने भाजपा का खेल बिगाड़ने में बड़ा रोल निभाया।
कई दूसरे बागियों ने भी भाजपा का खेल बिगाड़ा। यही नहीं भाजपा ने कई विधायक-मंत्रियों के टिकट काटे जो पार्टी से नाराज हो गए और इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा। टिकट कटने से नाराज वसुंधरा राजे सरकार के मंत्री सुरेंद्र गोयल ने जैतारण से, राजकुमार रिणवा ने रतनगढ़ से, ओमप्रकाश हुड़ला ने महुवा और धनसिंह रावत ने बांसवाड़ा विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भाजपा को चुनौती दी थी। विधायक अनिता कटारा, देवेंद्र कटारा, नवनीत लाल निनामा, किशनाराम नाई और गीता वर्मा भी निर्दलीय मैदान में थे।
एंटी इंकमबेंसी का रोल
राजस्थान में तकरीबन डेढ़ दशक से सरकारें बदलती रही हैं। ऐसे में वसुंधरा की विदाई के पीछे एंटी इंकमबेंसी फैक्टर का भी अहम रोल रहा है। 2013 में भाजपा का आना ठीक वैसा ही था जैसा की अशोक गहलोत सरकार का आना था। ऐसे में राजस्थान में वसुंधरा राजे सरकार की विदाई तकरीबन तय मानी जा रही थी। अब चूंकि चुनाव परिणाम सामने है और रुझान लगातार कांग्रेस के पक्ष में आ रहे हैं, यदि सबकुछ ठीक रहा तो राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनना तय है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : यह लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है. आप भी अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं. लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें.