पाठकीय समीक्षा
किताब – रेडियो कोसी
लेखक – पुष्यमित्र
प्रकाशक – राजकमल प्रकाशन समूह
कीमत – 199
बिहार में नदी और राजनैतिक दल कब अपना रास्ता बदल ले किसी को नहीं पता। कुछ नहीं कह सकते हैं। यह दोनों में समरूपता और भिन्नता दोनों ही है। आइए पहले समरूपता पर एक नज़र डालते हैं। नदी और राजनैतिक दल दोनों ही अपने मतवालेपन के लिए प्रसिद्ध हैं। राजनैतिक दल और नदी, यह दोनो को गिरगिट बनते देर नही लगता पर यह दोनोँ भिन्न कुछ यूं है कि यदि कोई राजनैतिक दल जब अपना रास्ता बदल दे तब हजार मीडिया वाले कमर-कस हो जाते हैं और एक-एक सेकंड की खबर को ऐसे बेचते हैं मानो ट्रेन में मूंगफली बेचता एक जवान और दूसरी ओर यदि नदी अपना अपना अल्हड़पना दिखाना शुरू कर दे तो बमुश्किल गिने-चुने मीडिया हाउस ही उसका प्रसारण करेंगे। ऐसा क्यों? हालांकि क्षति दोनों ही सूरत में होती है, पहले केस में असर देर में दिखता है तो दूसरे में कुप्रभाव तुरंत ही दिखने लगता है।
रेडियो कोसी किसी एक गांव एक कस्बे की कहानी नहीं है बल्कि उन तमाम लोगों की अनसुनी पुकार और गुहार है जिसे सरकार कई वर्षों से दबाती आई है। बहलावा देकर वोट लेना और वोट ले कर बहलावा देना, यह एक चक्र है यानी साइकिल है, जिसे शायद एक सार्वभौमिक चक्र कहा जा सकता है। 18 अगस्त, 2008। पचास से अधिक सालों से तटबन्धों के बीच कैद कोसी नदी ने खुद को इस कैद से पूरी तरह आजाद कर लिया और बिलकुल नये इलाके में बहने लगी। पूरी की पूरी 1 लाख 71 हजार क्यूसेक जल-प्रवाह वाली इस नदी ने सिल्ट से भर चुके अपने पुराने रास्ते और 16 फीट ऊँचे तटबन्ध को तोड़कर नया रास्ता बना लिया - यह सोचे बगैर कि उस राह में खेत है या मकान है या कस्बा है या गाँव। यह सोचना उसका काम था भी नहीं, यह तो सरकारों, नीति-नियंताओं और उन्हें लागू करने और उनकी देखभाल करनेवाले अभियंताओं का काम था। मगर उन लोगों ने पिंजरे में बन्द बाघिन को वैसी सुविधाएँ नहीं दीं जिससे उसका मन पिंजरे में लगा रहे (वैसे किसका मन पिंजरे में लगता है, आजादी किसको प्यारी नहीं होती), तो उस बाघिन का बाहर निकल आना तो इसी बात पर निर्भर था कि वह कब पिंजरे को तोड़ पाती है।
कोसी से प्रभावित सैंकड़ों गांव और हजारों लोगों का दुख और त्रासदी जानने के लिए इस किताब पर एक नज़र ज़रूर डालनी चाहिए।
पाठकीय समीक्षक – सैयद अयान मुजीब
उर्दू पत्रकारिता विभाग
भारतीय जन संचार संस्थान,(सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय)
नई दिल्ली
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