प्रसिद्ध गायक भूपेन हजारिका अब इस दुनिया में नहीं रहे। लेकिन उनकी आवाज अभी भी फिजा में गूंज रही हैं। उन्होंने अपना सीधा और सटीक विश्लेषण किया है। नया ज्ञानोदय के साहित्य वार्षिकी 2015 के अंक में दिनकर कुमार के एक लेख में हजारिका ने जो अपने बारे में लिखा है, उसका विस्तार से उल्लेख किया गया है। हजारिका ने अपने जीवन के बारे में लिखा था- मैंने 13 साल की उम्र में 'अग्नियुगर फिरंगति' गाना लिखा था। और 10 साल की उम्र में शंकरदेव के बारे में गाना लिखा था। जब 1946 में ज्योति प्रसाद ने मेरे गाने 'अग्नियुगर फिरंगति' को अपनी फिल्म में जगह दी तो मुझे प्रोत्साहन मिला।
मैंने कई गीत फिल्मों या नाटकों के किरदारों को ध्यान में रखकर लिखे थे...
मैं खुद ही गीत लिखता था, खुद ही धुन तैयार करता था, खुद ही गाता था। इसलिए अपने गीत की शैली के बारे में खुद ही कोई राय नहीं दे सकता। अगर मेरे गीतों में किसी को विशेष शैली नजर आती है तो शायद विषय वस्तु के कारण नजर आती है। हजारिका के अनुसार-मैंने कई गीत फिल्मों या नाटकों के किरदारों को ध्यान में रखकर लिखे थे। उन गीतों से मेरे जीवन दर्शन का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। मैं एक सफल गायक हूं या नहीं, कह नहीं सकता। मेरी आवाज जन्मजात देन थी। संगीत सीखे बिना मैं बचपन में गाने लगा था-तोता की तरह। पांच साल की उम्र से ही लोग मेरे गीतों की सराहना करते थे। जब मैं युवावस्था में पहुंचा, तब मैंने महसूस किया कि मुझे बहुत कुछ सीखना है और मैंने लगातार सीखने का प्रयास किया है।
हजारिका ने असम से बहुत प्यार किया...
हजारिका ने असम से बहुत प्यार किया। असम और उसके स्वाभिमान के बारे में आगे लिखा है कि 'असम की मिट्टी मुझे गलत नहीं समझेगी। यह संवाद मैंने अपनी फिल्म 'एरा बाटर सुर' में मुख्य किरदार जयंत दुवलरा के मुंह से कहलवाया था। वह मेरा ही किरदार था। मैंने स्वाभिमान के साथ कहा था-गलत तो नहीं समझेगी असम की मिट्टी, क्योंकि मैं कुछ दिनों के लिए असम से बाहर आऊंगा। मुझे जो भी असुविधा हो रही थी, फिल्म में उसका चित्रण किया गया था। जाने के रास्ते में कुछ बाधाएं थीं, उन्हें हटाकर जयंत दुवरा क्षितिज की ओर चला गया। वह संवाद मैंने रूठकर लिखा था। असम की मिट्टी ने मुझे कभी गलत नहीं समझा। असम की मिट्टी ने जवाब दिया है, करोड़ लोगों ने जवाब दिया है, स्वीकार किया है, स्नेह दिया है। जैसा मैंने यूं ही कहा था। जिस तरह मां से रूठकर कहा जाता है। वैसा कहने में कोई घृणा का भाव नहीं था।
साभार-नया ज्ञानोदय, साहित्य वार्षिकी 2015
भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
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मैंने कई गीत फिल्मों या नाटकों के किरदारों को ध्यान में रखकर लिखे थे...
1 week ago
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