“सैल्फ़ी हो गयी हो तो सवारी लोगे”?
दो लोगों के बीच हुआ यह संवाद किसी व्यवसायिक रिश्ते की ओर इशारा करता है जहां एक यात्री किसी ऑटो, रिक्शा आदि चलाने वाले से संभवत: यह सवाल पूछ रहा होगा। लेकिन यहां स्थिति थोड़ी अलग है, यहां एक युवती एक घोड़ा-खच्चर चलाने वाले उस नौजवान से यह सवाल पूछ रही है जिसके प्रेम में वह है। यह दृश्य है फ़िल्म केदारनाथ के गीत ‘काफ़िराना’ का जिसमें इस संवाद के ठीक बाद अरिजीत सिंह की आवाज़ में अमिताभ भट्टाचार्य के लिखे ये इश्क़िया शब्द सुनाई देते हैं।
इन वादियों में टकरा चुके हैं हमसे मुसाफ़िर यूँ तो कई
दिल ना लगाया हमने किसी से किस्से सुने हैं यूँ तो कई
केदारनाथ और उत्तराखंड की सुंदर वादियों में खच्चर चलाने वाले एक युवक (सुशांत सिंह राजपूत) को मुसाफ़िर युवती (सारा अली ख़ान) से प्रेम हो जाता है जिससे उस वादी की सुंदरता में मानो चार मानक और बढ़ जाते हैं इसलिए तो वह कहता है कि मुसाफ़िर यूं को कई मिले लेकिन वह नहीं मिला जो हमसफ़र बन सके।
ऐसे तुम मिले हो ऐसे तुम मिले हो
ऐसे तुम मिले हो ऐसे तुम मिले हो
जैसे मिल रही हो इत्र से हवा
काफ़िराना सा है इश्क़ है या क्या है
मुहब्बत के इत्र में यह तासीर है कि इससे कपड़े या बदन नहीं ज़हन महकता है और इसलिए हर प्रेमी को अपने आस-पास की फ़िज़ा भी महकी हुई लगती है, हां लेकिन जब इश्क़ ने दस्तक ही दी हो और ऐसी सुगंध आस-पास महसूस हो तो उसी प्रेमी की स्थिति किसी कस्तूरी मृग सी हो जाती है जो अपने भीतर की सुगंध को आस-पास खोजता है।
ख़ामोशियों में बोली तुम्हारी कुछ इस तरह गूंजती है
कानों से मेरे होते हुए वो दिल का पता ढूंढ़ती है
बेस्वादियों में, बेस्वादियों में जैसे मिल रहा हो कोई ज़ायका
काफ़िराना सा है इश्क है या क्या है
ऐसे तुम मिले हो ऐसे तुम मिले हो
जैसे मिल रही हो इत्र से हवा
क्या आपको प्यार हुआ है? अगर हां, तो अमिताभ की लिखी इन पंक्तियों को आप सिर्फ़ पढ़ेंगे नहीं बल्कि महसूस कर लेंगे। महबूब की आवाज़ जिसे दिल-ओ-दिमाग ख़ामोशी में सबसे ज्यादा सुनाते हैं और सीधे दिल तक उसकी सफ़र करवाते हैं और जैसे यहां ख़ामोशी में भी तेज़ आवाज़ है वैसे ही किसी भी बेस्वाद चीज़ में अगर इश्क़ को मिला दिया जाए तो वह स्वादिष्ट हो जाती है।
गोदी में पहाड़ियों की उजली दोपहरी गुज़ारना
हाय हाय तेरे साथ में अच्छा लगे
शर्मीली अंखियों से तेरा मेरी नज़रें उतारना
हाय हाय हर बात पे अच्छा लगे....
आप यहां कानों में रस घुलता है निकिता गांधी की आवाज़ का और शब्द कह रहे हैं कि ठंडे पहाड़ों में उतरती गुनगुनी धूप प्यार के लिए कितना सुंदर रूपक है और ऐसी दोपहर में यदि प्रेमी साथ हो तो यह श्रृंगार रस का अद्भुत संयोग होगा। मुहब्बत में नज़रों का सबसे अहम किरदार है चूंकि जो बातें ज़ुबान कहने से डरती है उसे नज़रें बेख़ौफ़ कह देती हैं और ऐसी नज़रें अक्सर नज़र ही उतारती हैं।
ढलती हुई शाम ने बताया है कि दूर मंज़िल पे रात है
मुझको तसल्ली है ये के होने तलक रात हम दोनों साथ हैं
संग चल रहे हैं संग चल रहे हैं धूप के किनारे छांव की तरह
काफ़िराना सा है इश्क है या क्या है
मंज़िल दूर हो, वहां रात हो, निर्जन हो या धूप कड़ी हो, रास्ते में कांटे हों और वहां भले तमाम बाधाएं हों लेकिन हाथ में उस व्यक्ति का हाथ हो जो दिल की हिफ़ाज़त करता है तो ये सब मुसीबतें दिखाई नहीं देतीं। साथ ज़रूरी है, सफ़र कैसा भी हो, यही तो है इश्क़।
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ऐसे तुम मिले हो ऐसे तुम मिले हो
1 month ago
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