इंसान की भावनाएं और मूड पल पल बदलता है। कभी खुशी कभी ग़म। इश्क भी कुछ कुछ ऐसा ही होता है। आप जब इश्क़ में होते हैं तो हर दुख, हर दवाब आपको आकर्षक लगता है। जब इश्क जवां हो रहा होता है तो आस पास चारों ओर खुश्बू और फूल ही फूल नजर आते हैं।
रात जैसे-जैसे गहराती है और चमेली के फूल की खुश्बू पूरे वातावरण को अपने आगोश में ले रही होती है..इश्क गीत भी कुछ ऐसा ही होता है..और ये तब नशे की तरह मन पर छा जाता है जब ये प्यार की बात ख्यायाम साहब के संगीत से निकल रही होता है...।
बाज़ार फिल्म का हर गीत एक से बढ़ कर एक है। लेकिन उसमें मेरा सबसे पसंदीदा गीत है...फारुख शेख और सुप्रिया पाठक पर फिल्माया गया फिर छिड़ी रात बात फूलों की...दोनों का कमसिन प्यार दुनिया की दुश्वारियों से दूर सपना बुन रहा है...
वो एक दूसरे की नज़रों में नज़र डालते हुए गीत गुनगुनाते हुए फूल की बात छेड़ते हैं तो लता मंगेशकर और तलत अज़ीज़ की आवाज़ गीत को शहद सा मीठा बना देती है...अगर आप बहुत ही खराब मूड में हों और आपके कान में ये गीत के चंद बोल भी पर जाएं तो पूरा मूड बदल जाता है....
फिर छिड़ी रात, बात फूलों की
रात है या बारात फूलों की
फूल के हार, फूल के गजरे
शाम फूलों की, रात फूलों की
फिर छिड़ी रात...
गीत आगे बढ़ता है और गीत के साथ फूलों की बात बारात के साथ आगे बढ़ती है..वैसे जिसने इस गीत को नहीं देखा होगा उसे जरूर लगेगा कि गीत में सिर्फ फूल ही फूल होंगें..रंग बिरंगे फूल खूबसूरत फूल। गीत में गजरा लगाए हुए सुप्रिया आगे बढ़ती है वो गीत के साथ अपना दिल दिल बार-बार खोलती है..उसके ख्वाब में फूल के हार हैं, फूल के गजरे हैं...शाम फूलों की और रात भी फूलों की ही है...
आपका साथ, साथ फूलों का
आपकी बात, बात फूलों की
फिर छिड़ी रात...
मदहोश कर देने वाले मखदूम मोहिउद्दीन के बोल मौके की नज़ाकत को फूलों से जोड़ देते हैं.. वैसे गीत शुरू कुछ अलग अंदाज में होता है...सुप्रिया पाठक के बालों में गजरा है, आंखों में काजल मुस्कुराता हुआ चेहरा और धड़कते दिल के साथ बात फूलों की छिड़ती है....फारुख शेख करीब आते हुए सुप्रिया से कहते हैं...
आप जिसे प्यार करते हैं अगर आपको उसका साथ मिल जाए तो आपकी जिंदगी गुलजार हो जाती है..फिर रोम रोम कह उठता है अगर आपका साथ हो तो जीवन बिल्कुल वैसा होगा जैसे फूल...कोमल आकर्षक और सुंगधित...आपकी बात भी फूलों जैसी ही होगी....
फूल खिलते रहेंगे दुनिया में
रोज़ निकलेगी बात फूलों की
फिर छिड़ी रात...
नज़रें मिलती हैं जाम मिलते हैं
मिल रही है हयात फूलों की
फिर छिड़ी रात...
गीत जिंदगी में कई पसंद होते हैं लेकिन कुछ गीत हर मौसम में हर माहौल में गुनगुनाए जाने को मजबूर कर देते हैं...ख्यायाम का संगीत भी गीत को नया रूप दे देता है... गीत के हर बोल में प्रेम की आत्मा और मधुरता झलकती है..किस तरह से फूलों की बात सदियों से हो रही है..हर दिन फूल खिलते हैं..हमारे प्यार की बातें भी ऐसे होंगी...
ये महकती हुई ग़ज़ल मखदूम
जैसे सहरा में रात फूलों की
फिर छिड़ी रात...
शायर मखदूम अपनी बात को भी रखते हैं..ये जो गज़ल में महक है वो भी फूल सी है..ठीक वैसी जब शादी की रात फूलों के सेहरा के पीछे दूल्हा...फिर वही बात होगी..फूलों की..
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आपका साथ, साथ फूलों का
1 month ago
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