नयन ! तुम निर्झर न होना, देखकर काली घटाएँ।।
कभी सुख से कभी दुख से मेल ऋतुओं का।
खिलखिलाना फिर बिफरना खेल ऋतुओं का।
राह में टिकने न देंगे, तीव्रतम प्रतिकूल अंधड़,
धैर्य ! तुम अनुभव कराना, सुखद मतवाली हवाएं।।
बादलों की लामबन्दी, मिहिर पर बादल।
वक्ष स्थल पर धरा के, तिमिर की हलचल।
मेघ दल के मध्य तकना, आस! तुम निर्बल न होना,
चमचमाती सी सुनहरी, रश्मियाँ ताली बजाएं ।।
बादलों की ओट लेकर धूप यों झाँके।
घूँघटों में मुख छिपाकर रूप ज्यों झाँके।
चाँदनी की पीठ पीछे , रागिनी मल्हार गाती,
सत्य ! तुम डगमग न होना, रूप ने पालीं मृषाएं।।
संजय नारायण
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