हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील धारा के प्रमुख कवियों में से एक त्रिलोचन शास्त्री भी थे। उनका वास्तविक नाम वासुदेव सिंह था और उन्हें साहित्य अकादमी और शलाका सम्मान आदि से भी सम्मानित किया जा चुका है। हिंदी कविता जगत से प्रेम रखने वालों को त्रिलोचन शास्त्री यूं ही नहीं भाते कि वे हिन्दी की प्रगतिशील कविता के आधार स्तम्भों में से एक हैं। बल्कि इसलिए कि उनकी कवितायें बहुत सधी हुई और निर्मल कवितायें हैं। उनकी कविताओं में खालिस हिंदुस्तानियत की महक आती है। हिंदुस्तान के खेत-खलिहान, ताल-तलैया और यहां की ज़मीन तक बोलती नज़र आती है।
सचमुच, इधर तुम्हारी याद तो नहीं आई
सचमुच, इधर तुम्हारी याद तो नहीं आई,
झूठ क्या कहूँ,
पूरे दिन मशीन पर खटना,
बासे पर आकर पड़ जाना
और कमाई का हिसाब जोड़ना,
बराबर चित्त उचटना।
इस उस पर मन दौड़ाना,
फिर उठकर रोटी करना,
कभी नमक से कभी साग से खाना
आरर डाल नौकरी है, यह बिलकुल खोटी है।
इसका कुछ ठीक नहीं है आना जाना।
आए दिन की बात है।
वहाँ टोटा टोटा छोड़ और क्या था।
किस दिन क्या बेचा-किना।
कमी अपार कमी का ही था अपना कोटा,
नित्य कुआँ खोदना तब कहीं पानी पीना।
धीरज धरो, आज कल करते तब आऊँगा,
जब देखूँगा अपने पुर कुछ कर पाऊँगा।
कभी सोचा मैंने, सिर पर बड़े भार धर के,
सधे पैरों यात्रा सबल पद से भी कठिन है,
यहाँ तो प्राणों का विचलन मुझे रोक रखता
रहा है, कोई क्यों इस पर करे मौन करूणा ।
कहेंगे जो वक्ता बन कर भले वे विकल हों,
कला के अभ्यासी क्षिति तल निवासी जगत के
किसी कोने में हों, समझ कर ही प्राण मन को,
करेंगे चर्चाएँ मिल कर स्मुत्सुक हॄदय से ।
उस जनपद का कवि हूँ जो भूखा दूखा है
नंगा है, अनजान है, कला नहीं जानता
कैसी होती है क्या है, वह नहीं मानता
कविता कुछ भी दे सकती है।
कब सूखा है उसके जीवन का सोता,
इतिहास ही बता सकता है।
वह उदासीन बिलकुल अपने से,
अपने समाज से है; दुनिया को सपने से
अलग नहीं मानता, उसे कुछ भी नहीं पता
दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँची; अब समाज में
वे विचार रह गये नही हैं जिन को ढोता
चला जा रहा है वह, अपने आँसू बोता
विफल मनोरथ होने पर अथवा अकाज में।
धरम कमाता है वह तुलसीकृत रामायण
सुन पढ़ कर, जपता है नारायण नारायण।
शब्द
मालूम है
व्यर्थ नहीं जाते हैं
पहले मैं सोचता था
उत्तर यदि नहीं मिले
तो फिर क्या लिखा जाए
किन्तु मेरे अन्तर निवासी ने मुझसे कहा-
लिखा कर
तेरा आत्मविश्लेषण क्या जाने कभी तुझे
एक साथ सत्य शिव सुन्दर को दिखा जाए
अब मैं लिखा करता हूँ
अपने अन्तर की अनुभूति बिना रँगे चुने
कागज पर बस उतार देता हूँ ।
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कठिन यात्रा
1 year ago
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