संगीतकार खय्याम ने कवि प्रदीप के तेवर को खासकर पसंद किया था। खय्याम के अनुसार कवि प्रदीप सिर्फ गीत लिखते रहे, गाते रहे, और अपने इसी काम से इतना नाम भी कमा लिया। सबसे अच्छे ढंग से मिलते और बोलते भी रहे। पंडित प्रदीप जी एक महापुरुष थे। उनका स्वभाव संत जैसा था। हिंदुस्तानी आदमी का जो रहन-सहन और स्वभाव होना चाहिए, उनकी एक मिसाल थे पंडित जी। उन्हें कितनी भी कामयाबी मिली, कितना भी नाम मिला, कितना भी पैसा मिला, वह एक जैसे ही रहे। न उनका लिबास बदला, न स्वभाव बदला। हिंदी के लेखन में जो मुकाम प्रदीप जी ने बनाया वह बहुत कम लोगों को मिल सका है।
साहिर साहब भी प्रदीपजी की तारीफ करते रहते थे...
मिलनसार, प्रेम-प्यार-मोहब्बत से भरे, और बहुत ही कोमल हृदयी तथा विनम्र पंडित प्रदीप जी सभी से मुस्कुरा कर मिलते थे। खय्याम कहते हैं कि उनकी नजर में साहिर लुधियानवी और पंडित प्रदीप एक जैसे इंसान थे। साहिर साहब भी प्रदीपजी की तारीफ करते रहते थे। प्रदीप जी के गीत सुनकर साहिर साहब अक्सर कहा करते थे कि फिल्मों में रहकर भी 'ये आदमी आखिर क्या लिख रहा है'। गीतकार इंदीवर जी तो कवि प्रदीप को अपना गुरु भी कहते थे। खय्याम कहते हैं कि उनके और प्रदीप जी के संबंध काफी मधुर रहे। दोनों ने साथ काम तो नहीं किया लेकिन खय्याम इसके बाद भी कवि प्रदीप के लिखे गीतों को काफी सम्मान देते रहे।
आपके बेटे का नाम प्रदीप ही है न...
खय्याम कहते हैं कि एक बड़ा अजीब रिश्ता प्रदीप जी ने मेरी पत्नी से बना लिया था। वह मेरी पत्नी जगजीत कौर जी को अपनी मां कहते थे। हम लोग टोकते थे कि पंडितजी आप इतने बड़े हैं और फिर ऐसा क्यों करते हैं तो वह जगजीत कौर जी से कहते थे, आपके बेटे का नाम प्रदीप ही है न। मैं प्रदीप हूं, और आप मेरी मां हैं। बहुत प्यार करते थे हम सबको प्रदीप जी। वह हमारे मन पर अंकित हैं। न हम उन्हें मन से मिटा सकते हैं, न भुला सकते हैं।
खय्याम, सुप्रसिद्ध लेखक, संगीतकार
नया ज्ञानोदय, साहित्य वार्षिकी 2015
भारतीय ज्ञानपीठ से साभार
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4 weeks ago
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