जैसे जून-जुलाई के महीने में बारिश दिल को ख़ुश कर देती है और उसके बाद तुरंत निकली धूप दिल को बेहद उदास। उसी तरह के ज़हन के साथ शायरों ने भी कुछ अल्फ़ाज़ कहे हैं। जब शायर बेहद उदास हुए तो उन्होंने कुछ ऐसा कहा
मैं दिन हूं मेरी ज़बीं पर दुखों का सूरज है
दिये तो रात की पलकों पे झिलमिलाते हैं
- बशीर बद्र
ये दोस्ती ये मरासिम ये चाहतें ये ख़ुलूस
कभी कभी मुझे सब कुछ अजीब लगता है
- जाँ निसार अख़्तर
उस शख़्स के ग़म का कोई अन्दाज़ा लगाए
जिसको रोते हुए देखा न किसी ने
- वकील अख़्तर
मैं तो बस ज़िंदगी से डरता हूं
मौत तो एक बार मारेगी
- अज्ञात
ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया
- शकील बदायुनी
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
- साहिर लुधियानवी
हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं
दिल हमेशा उदास रहता है
- बशीर बद्र
अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मुतरिब
अभी हयात का माहौल ख़ुश-गवार नहीं
- साहिर लुधियानवी
उस ने पूछा था क्या हाल है
और मैं सोचता रह गया
- अजमल सिराज
हमारे घर की दीवारों पे 'नासिर'
उदासी बाल खोले सो रही ह
- नासिर काज़मी
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं
- फ़िराक़ गोरखपुरी
दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है
हम भी पागल हो जाएँगे ऐसा लगता है
- क़ैसर-उल जाफ़री
ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न यास
सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए
- ख़ुमार बाराबंकवी
उठते नहीं हैं अब तो दुआ के लिए भी हाथ
किस दर्जा ना-उमीद हैं परवरदिगार से
- अख़्तर शीरानी
ये और बात कि चाहत के ज़ख़्म गहरे हैं
तुझे भुलाने की कोशिश तो वर्ना की है बहुत
- महमूद शाम
दिन किसी तरह से कट जाएगा सड़कों पे 'शफ़क़'
शाम फिर आएगी हम शाम से घबराएँगे
- फ़ारूक़ शफ़क़
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया
- परवीन शाकिर
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो
- कैफ़ी आज़मी
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ
ग़ैर तो ग़ैर हैं अपनों का सहारा न हुआ
- राजेन्द्र कृष्ण
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4 वर्ष पहले
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