अफ़्सोस ये वबा के दिनों की मोहब्बतें
इक दूसरे से हाथ मिलाने से भी गए
- सज्जाद बलूच
हमारी ग़म-ए-आशिक़ी गर वबा है
तो क्या फिर तिरे पास कोई दवा है
- कामरान हामिद
रहिए अहबाब से कट कर कि वबा के दिन...और पढ़ें
ज़ब्त करता हूँ तो घुटता है क़फ़स में मिरा दम
आह करता हूँ तो सय्याद ख़फ़ा होता है
~क़मर जलालवी
दर्द-ए-दिल कितना पसंद आया उसे
मैं ने जब की आह उस ने वाह की
~आसी ग़ाज़ीपुरी
एक ऐसा भी वक़्त होत...और पढ़ें
आज तक बनते रहे हैं जो हमारे ज़ामिन
उन से हम हाथ मिलाने से भी महरूम रहे
- जगदीश प्रकाश...और पढ़ें
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने ...और पढ़ें
दिनेश कुमार शुक्ल ( जन्म-8 अप्रैल, 1950) यानि हिंदी के समकालीन कवियों में जाना-माना नाम। दिनेश कुमार शुक्ल की अद्भुत शैली ने समकालीन कविता के साहित्यिक मानकों से समझौता किए बगैर कविता को आम लोगों के क़रीब लाने का सार्थक काम किया है। 'कथा कहो कव...और पढ़ें
बशीर बद्र की नज़्मों में मोहब्बत का दर्द समाया हुआ है। उनकी शायरी का एक-एक लफ़्ज़ इसका गवाह है। बद्र साहब अपनी ग़ज़लों में मोहब्बत के इज़हार में परंपरागत प्रतीकों का इस्तेमाल कम और ज़िंदगी के अनुभवों, रूपकों और प्रतीकों का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं।...और पढ़ें
अंजलि के फूल गिरे जाते हैं
आये आवेश फिरे जाते हैं।
चरण-ध्वनि पास-दूर कहीं नहीं
साधें आराधनीय रही नहीं
उठने, उठ पड़ने की बात रही
सांसों से गीत बे-अनुपात रही
बागों में पंखनियां झूल रहीं
क...और पढ़ें
जाने वो कैसे लोग थे जिन को प्यार से प्यार मिला
बिछड़ गया हर साथी दे कर पल-दो-पल का साथ
किस को फ़ुर्सत है जो थामे दीवानों का हाथ
हम को अपना साया तक अक्सर बेज़ार मिला...और पढ़ें
तिरी उमीद पे ठुकरा रहा हूं दुनिया को
तुझे भी अपने पे ये ए'तिबार है कि नहीं
बन जाएंगे ज़हर पीते पीते
ये अश्क जो पीते जा रहे हो...और पढ़ें
जितना हंगामा ज़ियादा होगा
आदमी उतना ही तन्हा होगा
- बेदिल हैदरी
वो हंगामा गुज़र जाता उधर से
मगर रस्ते में ख़ामोशी पड़ी है
- लियाक़त जाफ़री...और पढ़ें