जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
-गोपालदास "नीरज"
'दीपावली' पर सुप्रसिद्ध हिंदी कवियों की चुनिंदा कविताओं के अंश।
आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ
-अटल बिहारी वाजपेयी
'दीपावली' पर सुप्रसिद्ध हिंदी कवियों की चुनिंदा कविताओं के अंश
शत-शत दीप इकट्ठे होंगे
अपनी-अपनी चमक लिए,
अपने-अपने त्याग, तपस्या,
श्रम, संयम की दमक लिए।
- हरिवंशराय बच्चन
'दीपावली' पर सुप्रसिद्ध हिंदी कवियों की चुनिंदा कविताओं के अंश
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
- महादेवी वर्मा
'दीपावली' पर सुप्रसिद्ध हिंदी कवियों की चुनिंदा कविताओं के अंश
जलती बाती मुक्त कहाती
दाह बना कब किसको बंधन
रात अभी आधी बाकी है
मत बुझना मेरे दीपक मन
-रामेश्वर शुक्ल 'अंचल'
'दीपावली' पर सुप्रसिद्ध हिंदी कवियों की चुनिंदा कविताओं के अंश
बची रही प्रिय की आँखों से,
मेरी कुटिया एक किनारे,
मिलता रहा स्नेह रस थोड़ा,
दीपक जलता रहा रात-भर ।
-गोपालसिंह 'नेपाली'
'दीपावली' पर सुप्रसिद्ध हिंदी कवियों की चुनिंदा कविताओं के अंश
दीपमाला में मुसर्रत की खनक शामिल है
दीप की लौ में खिले गुल की चमक शामिल है
जश्न में डूबी बहारों का ये तोहफ़ा शाहिद
जगमगाहट में भी फूलों की महक शामिल है
-शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
'दीपावली' पर सुप्रसिद्ध हिंदी कवियों की चुनिंदा कविताओं के अंश
उजियारा कर देने वाली
मुस्कानों से भी परिचित हूं,
पर मैंने तम की बाहों में अपना साथी पहचाना है
मैं दीपक हूँ, मेरा जलना ही तो मेरा मुस्काना है।
-हरिवंशराय बच्चन
'दीपावली' पर सुप्रसिद्ध हिंदी कवियों की चुनिंदा कविताओं के अंश
ज्वाल जगी है, उसके आगे
जलनेवालों का जमघट है,
भूल करे मत कोई कहकर,
यह परवानों का मरघट है;
एक नहीं है दोनों मरकर जलना औ’जलकर मर जाना।
यह दीपक है, यह परवाना।
- हरिवंशराय बच्चन
आगे पढ़ें
एक वर्ष पहले
कमेंट
कमेंट X