भरता है - तुम्हारी आवाज़ का चुप निनाद
जो रौंदता है - दर्द से भींची
सांसों की उलझने।
शब्द - धड़कनों का पर्याय हैं
आवाज़ की गूंज में होती है तुम्हारी धड़कनों की रुनझुन
जिसकी ध्वनि से बनते हैं।
हृदय से उपजे
हार्दिक शब्द
जो बोलने पर भी
छूट जाते हैं संकोच के घर में सिसकते हुए।
तुम्हारी आवाज़ का दुस्साहसी साहस
और मेरा ईश्वर पर
अनंत विश्वास
खींच लाता है मुझे विवशता की
उदासी से बाहर
और मैं डूब जाती हूं -
फिर से
तुम्हारी विश्वास की आत्मा में
पुनर्जन्म लेने के लिए ।
क्योंकि
ईश्वरीय आशीष की
आत्मा के गर्भ से जन्मी
आत्मा धारित देह के भीतर
अवतरित प्रेम में ही
निज की देह
बदल जाती है प्रणय में
हर कोशिका बदल जाती है
प्रणय के अमृत कोश में ।
देह कलश में
रूपांतरित हो जाता है - अक्षय अमृत घट
जिससे बूंद बूंद गिरती है
अमृत बूंद
मन के शिवलिंग पर
देह को अर्धनारीश्वर
के सुख से संपूर्ण करने के लिए।
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