रात का एकांत चुनते हैं कुछ तारे तो कुछ भोर का ध्यान, फूल के साथ भी तो ऐसा ही है पहाड़ पर साधना करते हैं कुछ तो थोड़े संसार के बीच रह लेते हैं। मैं सोचती हूँ कि शिव ने कौन सी जगह चुनी होगी, आकाश का बसेरा या धरती की गोद। चूंकि वे कहते थे कि जवानी में मरने वाला फूल बनता या बनता है तारा, शिव भी तो जीवन के अपराह्न में विदा ले गए थे।
शिव बीते सालों में ख़ूब लोकप्रिय हुए हैं फ़िल्मों के गीत आए, लोगों ने उन्हें गुनगुनाया। सबने देखा – अज्ज दिन चढ़ेया, सबने ही ढूँढा – इक कुड़ी जिहदा नाम मुहब्बत ग़ुम है। हालांकि पंजाब के लोक में तो वे बरसों से प्रसिद्ध थे, सोशल मीडिया पर दीवानगी ज़रा देरी से चढ़ी। उससे पहले जगजीत सिंह से लेकर नुसरत तक सभी ने उनके लिखे को आवाज़ दी है। पर सदी पहले का इंटरव्यू अब ख़ासा मशूहर हुआ। वो इंटरव्यू जैसे उनकी शख़्सियत का दरवाज़ा है, वरना उनके लिखे से लोग चित्र बनाते। ‘तो मैं कताब ले लूँ’ से सबने जाना कि एक सितारा कैसे फूल सी बातें करता है।
ये भी देखना अच्छा है कि पंजाबी का नाम हिन्दी भाषियों के बीच कितना मक़बूल है। शिव पंजाबी और हिन्दी को जोड़ रही वही पटरी हैं जिस पर लोग जान सकते हैं कि लोक के गीत भौगोलिक सीमाओं को कैसे पार करते है। वे और जीते और मुहब्बत के नए रूप दिखाते, लिखा तो उन्होंने और भी है लेकिन प्रेम के आगे कोई विषय ठहरता कब है। फिर प्रेम को एक उमर कम है, शिव जितना लिखते कम जान पड़ता। कहने को उनका लिखा थोड़ा भी बहुत लगे अगर ठीक से समझ लिया जाए।
शिव को जितना पढ़ो उतने बिरह के बिम्ब मिलते हैं, वेदना के उतने ही स्वर। हिज्र का अगर कोई श्रृंगार कर सका तो वह शिव हैं। बिछड़ने के इतने ढंग वहीं मिलते हैं। ठीक वैसे जैसे तारे और फूल बिछड़े ही तो हैं। तारा टूट भी जाए तो फूल पर कब गिरता है लेकिन जवानी में मरने वाला तो इन्हीं दोनों में से एक रास्ता चुनता है।
मैं एक बात कहती हूँ
"तारों के टूटने में असीम वेदना है कितनी
पत्थर का दिल चाहिए फूल तोड़ने के लिए"
न जाने कहाँ शिव जैसा कोई प्रेमी हो!
प्रस्तुति:- दीपाली अग्रवाल
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