मृत्यु से पहले मर जाना, हां यह सुनने में तो बहुत अजीब लगता है लेकिन शायर जिगर मुरादाबादी के साथ ऐसा हकीकत में हुआ था। वो भी सिर्फ एक बार नहीं बल्कि दो बार। जी हां, जिगर के जीवन में उनकी मृत्यु के समाचार दो बार फैले थे। पहली बार 4 मई, 1938 को और दूसरी बार 1958 में। पहली बार इस कारण कि मुरादाबाद में वह कुछ मित्रों के साथ शिकार को गए थे। वहां वह अपने साथियों को छोड़कर दिल बहलाने के लिए पास के किसी गांव में निकल गए और वापसी में उनके साथ नहीं आए।
बस फिर क्या था, शत्रुओं को अवसर मिल गया। उन्होंने प्रचार कर दिया कि जिगर अल्लाह को प्यारे हो गए। वहीं से अंग्रेजी दैनिक 'स्टेट्समैन' के प्रतिनिधि ने तार द्वारा समाचार पत्र को यह सूचना दे दी। अगले दिन यह समाचार समाचार-पत्रों में प्रकाशित हो गया। समाचार का निकलना था कि सारे देश में शोक की लहर दौड़ गई।
कुछ समाचार-पत्रों ने तो विशेषांक भी प्रकाशित कर दिया। दिल्ली की जामा मस्जिद में भी शोक सभा हुई और जु़मे की नमाज़ के बाद ग़ायबाना नमाज़-ए-जनाजा़ भी पढ़ी गई, किंतु शीघ्र ही लोगों को वास्तविकता का पता चल गया। इस समाचार में कोई सच्चाई न थी।
जिगर जिंदा थे इसलिए इसका तुरंत खंडन कर दिया गया। ऑल इंडिया रेडियो ने उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए 'जिगर दिवस' मनाने का निर्णय किया था। परंतु इससे पूर्व ही जिगर के जीवित होने का समाचार फैल गया। अत: बजाए 'मृत्यु दिवस' मनाने के उनके नव-जीवन का शुभ दिन मनाया गया। इसमें स्वयं जिगर भी शामिल हुए और अपनी रचना स्वयं अपने लयात्मक स्वर में प्रस्तुत की।
ऐसा ही वाकया दूसरी बार 1958 में जिगर को दिल का सख्त दौरा पड़ने पर हुआ था। इस समय भी उनके देहांत का समाचार बहुत तेजी से फैल गया था। भारत और पाकिस्तान दोनों देशों ने इस समाचार को बहुत फैलाया था। किंतु इस बार भी सौभाग्य से शीघ्र ही ज्ञात हो गया कि यह समाचार गलत है और भगवान की कृपा से जिगर अब भी जीवित हैं। अत: 9 सितंबर,1960 को 9 और 10 बजे के बीच दिल का एक भयंकर दौरा पड़ा और जिगर सदा के लिए संसार से विदा हो गए।
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एक वर्ष पहले
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