मत हट पथ से,
कर्मक्षेत्र रण से,
कौन कहा तू हारेगा,
तू जीतेगा अपने,
प्रण और पौरुष से
देख कभी तू
उस पेड़ को
जिसे काटा गया
न जाने कितनी बार
अब जरा देखो
ढीठपन उसका
नई कोपलें निकली
हैं हजार
बनकर शाखाएं
आगे, ऊपर ही,
उठ रही है
न डर रही हैं
न झुक रही है
सीख, तू भी
मत हार
सुना नहीं क्या तूने
कर्म करने वालों
की ही होती हैं
जय जयकार
-रामेश्वर शर्मा
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