नीले क्षितिज का सार क्या है
इस क्षितिज के पार क्या है
भेद इसका है अजाना
क्यों, नील की विस्तारिता है,
यह गगन भी,नीलमय है
सघन नीला है समंदर
इस नीलिमा की व्याप्तता का
आधार व अभिप्राय क्या है
यह नील सब जग रच रहा है
सौंदर्य बोधक,सत कहां है
भानु की किरणों में देखा
नील का कैसा नशा है,
रंगों में है प्रथम नीला
सृष्टि की है, सृजनशीला
नील निर्मल, नीर गंगा
डमरू नीलेश्वर का बोला,
नीलकंठ निशान्त भोला
नागशैया नील डोला
वर्ण, श्री संग विष्णु नीला
नील कृष्णा, रास- लीला
विष्णु हर अवतार नीला
ध्यान -धारण, बिंदु नीला
भेद इसका,है अजाना
ईश्वर स्वरूपण रची लीला !
- रमेश शुक्ल
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