अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली
मुहब्बत में कोई अपने लाख इस्तीफ़े देना चाहे लेकिन दिल उसको हमेशा नामंज़ूर ही करना चाहता है। तो कई बार आपका प्रेमी चाहे मुहब्बत दे या नफ़रत आप उसे सहज ही क़ुबूल भी कर लेते हो। इसी पर शायरों ने अपने अल्फ़ाज़ लिखे हैं।
है ख़ुशी अपनी वही जो कुछ ख़ुशी है आप की
है वही मंज़ूर जो कुछ आप को मंज़ूर हो
- मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
तुझ को मंज़ूर नहीं मुझ को है अब भी मंज़ूर
मेरी क़ुर्बत मेरे बोसे मुझे वापस कर दे
- फ़े सीन एजाज़
मुझे मालूम है तुम गिर चुके हो
अब अपनी हार को मंज़ूर कर लो
- बशीर महताब
उस का नाम लबों पर हो
साअत हो मंज़ूरी की
- असलम कोलसरी
शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ
कीजे मुझे क़ुबूल मिरी हर कमी के साथ
- वसीम बरेलवी
मरना क़ुबूल है मगर उल्फ़त नहीं क़ुबूल
दिल तो न दूँगा आप को मैं जान लीजिए
- अकबर इलाहाबादी
मुद्दतों बाद वो हुआ क़ाएल
हम उसे कब क़ुबूल थे पहले
- सूर्यभानु गुप्त
पत्थर है तेरे हाथ में या कोई फूल है
जब तू क़ुबूल है तिरा सब कुछ क़ुबूल है
- अज्ञात
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