अमीर खुसरो ने हिंदुस्तान की संस्कृति को काफी करीब से समझा है। उनकी साझी सांस्कृतिक समझ को देखते हुए उन्हें तूती-ए-हिंद कहा जाता है। खुसरों के काव्य सूफियों का स्पष्ट प्रभाव है। उर्दू में ईश की वंदना का सबसे मुलायमी एहसास सूफी साहित्य में है। अमीर खुसरो ने देश, काल, वातावरण को करीब से महसूस किया है। मनुष्य स्वभाव और भाव के कुशल चितेरे खुसरो के काव्य में जीवन दर्शन भी समाया हुआ है। खुसरो ने अपने काव्य में दर्शन को सूफियाना अंदाज में पेश किया है। हम यहां अपने पाठकों के लिए खुसरों के दस बड़े सूफी दोहे पेश कर रहे हैं।
खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूं पी के संग...
खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूं पी के संग
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग
साजन ये मत जानियो तोहे बिछड़त मोहे को चैन
दिया जलत है रात में और जिया जलत बिन रैन
अंगना तो परबत भयो, देहरी भई विदेस...
अंगना तो परबत भयो, देहरी भई विदेस
जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस
खुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय
वेद, कुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय
खुसरो सरीर सराय है क्यों सोवे सुख चैन...
खुसरो सरीर सराय है क्यों सोवे सुख चैन
कूच नगारा सांस का, बाजत है दिन रैन
खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार
खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग...
खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग
तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग
रैन बिना जग दुखी और दुखी चन्द्र बिन रैन
तुम बिन साजन मैं दुखी और दुखी दरस बिन नैंन
आ साजन मोरे नयनन में, सो पलक ढाप तोहे दूँ...
आ साजन मोरे नयनन में, सो पलक ढाप तोहे दूँ
न मैं देखूँ और न को, न तोहे देखन दूँ
खुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय
वेद, कुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय
साभार-कविता कोश
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5 वर्ष पहले
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