प्रेम स्त्रियों का स्थायी भाव है
वो प्रेम में रह सकती हैं सदियों तक
बिना प्रेम किए हुए भी
वो कर सकती हैं प्रतीक्षा प्रेम की
सूखती नदी की तरह
जैसे नदी करती है प्रतीक्षा
सावन भादों की मूसलाधार बारिश की
वो खिल सकती हैं पलाश की तरह
जीवन की तपती जेठ की दुपहरी में
देखते हुए न बरसने वाले नेह के बादल
कल्पना के चमकते नीले आकाश में
वो बुन सकती हैं बासंती सपने
पीले अमलतास के फूलों की तरह
श्रद्धानवत स्थितप्रज्ञ खड़ी होकर
अपने प्रेमी के ध्यान में वियोगिनी नायिका बनकर
वो बिखेर सकती हैं अपना आशीर्वाद
हरसिंगार की तरह
तपती हुई धरती पर
बिछा देने को चादर अपने नेह की
तुम भी तो स्त्री हो ....
तुम्हीं से तो जाना है मैंने कि स्त्रियां
प्रेम में रहती हैं, प्रेम करती नहीं...।
वो करती हैं तो सिर्फ़ प्रतीक्षा अपने प्रेमी के
आगमन की जीवन पर्यंत
उसी के प्रेम में रहते हुए
साभार शैलेश गुप्ता की फेसबुक वॉल से
3 महीने पहले
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