यह क़िस्सा है गजल गायक जगजीत सिंह के इलाहाबाद आने और उनसे मिलने की कोशिश करते प्रसिद्ध साहित्यकार रवींद्र कालिया का। जगजीत सिंह के स्टार बनने के बाद रवींद्र कालिया को एक बार उनसे मिलने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाना पड़ा। जिसका उल्लेख करते हुए रवींद्र कालिया लिखते हैं कि उन्होंने जगजीत के इलाहाबाद आगमन के पहले से ही अपने दोस्तों को ताक़ीद कर दी कि जगजीत के इलाहाबाद उतरते ही यह पता लगाएं कि वह किस होटल में रुका है। कालिया ने जगजीत और अपने दोस्ताने के बारे में सभी को बता रखा था। बाद में उन्हें पता चला कि जगजीत हाईकोर्ट के सामने होटल विश्रांत में ठहरे हुए हैं।
उनके ठहरते ही होटल के फ़ोन बिज़ी हो गए। कालिया ने उनसे फ़ोन पर बात करनी चाही लेकिन हर बार फ़ोन इंगेज मिलता। बहुत मुश्किल से जब किसी ने फ़ोन उठाया तो जवाब मिला कि जगजीत सिंह अभी आराम कर रहे हैं। कालिया ने कहा कि मैं उनका दोस्त हूं, उन्हें फोन दीजिए तो उत्तर मिला इस समय यह मुमकिन नहीं है। कालिया ने जगजीत और अपनी बचपन की दोस्ती का हवाला भी दिया तब भी आवाज आई सॉरी सर, अभी उनसे बात नहीं हो सकती।
कालिया ने जब दोबारा होटल में फ़ोन मिलाया तो लाइन आसानी से मिल गई। देर तक घंटी जाती रही, किसी ने फ़ोन नहीं उठाया। बाद में कोई आया तो उन्हें कालिया ने अपना नाम बताया और कहा आप कह दीजिए कि रवींद्र कालिया बात करना चाहते हैं। मैं उनका दोस्त हूं। फ़ोन के दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई कि अब तक उनके बीसियों दोस्तों, अंकलों-आंटियों के फोन आ चुके हैं। शहर में उनकी कोई रिश्तेदारी नहीं है। कालिया ने कहा कि मैं रिश्तेदार नहीं हूं, दोस्त हूं। उन्हें फ़ोन दीजिए, वर्ना...। उसने कहा, आपसे बात नहीं हो सकती और बिना कुछ कहे-सुने तपाक से फ़ोन रख दिया।
रवींद्र कालिया ने बहुत बेबसी से ममता की तरफ़ देखा, वह उनकी विडंबना समझ रही थी। कालिया ने कहा बोतल लाओ, हर शिकस्त के बाद मुझे बोतल ही सहारा देती है। बाद में कालिया ने ममता से कहा कि सब दोस्तों को संगीत समिति के गेट पर मिलने को कहो। दूसरों की बात क्या, ममता ख़ुद चलने को बेकरार हो रही थी। हम लोग होटल पहुंचें तो वहां काफ़ी भीड़ थी। पुलिस की जीप खड़ी थी। एक पुलिस अधिकारी मेरी पहचान के निकले, उन्होंने हमें सिपाही की सहायता से अंदर तक पहुंचा दिया।
अंदर युवा, युवती, अफसरों की बीवियां, पत्रकार सभी मौजूद थे। जिस कमरे में सुरक्षा ज़्यादा थी वही वीआईपी रूम लग रहा था। कालिया मिलने वालों की लंबी लाइन में लगे हुए थे। यह कहीं न कहीं कालिया को अपमान का बोध भी करा रहा था। कालिया को यह लग रहा था कि अब हमारा दोस्त पुराना वाला जगजीत सिंह नहीं रहा, वह एक स्टार बन चुका है। जगजीत के कमरे के किवाड़ ऐसे बंद थे कि वह कभी खुलेंगे ही नहीं और वह छत फाड़कर संगीत समिति पहुंच जाएगा।
बाद में कमरा खुला और लोग निकले तथा कार में बैठ गए। एक बैरा ट्रे में मिनरल वाटर की बोतलें लेकर कमरे के अंदर गया तथा किवाड़ फिर बंद हो गए। अंधेरा बढ़ने लगा था। कालिया का हलक़ भी सूख रहा था। उनके मन में आया कि चुपचाप बिना मिले ही घर लौट जाऊं। बाद में एसडीएम सिटी आए, जो कालिया को भी जानते थे। वह सीधे कमरे में गए। बकौल कालिया, मैं उनके साथ भी कमरे में नहीं जा सका। इतने में दरवाज़ा खुला तथा चित्रा और जगजीत बाहर निकले।
लोग उनको घेरने लगे। मैंने पंजाबी की एक भारी भरकम गाली के साथ चिल्लाते हुए आवाज़ दी, जगजीत। जगजीत ने मेरी तरफ़ देखा और मुस्कुराते हुए हाथ हिलाया। मैं और ममता भीड़ को चीरते हुए गाड़ी के पास पहुंचे। जगजीत ने हम दोनों को अपनी गाड़ी में घुसने का इशारा किया। हम चारों पिछली सीट पर बैठ गए। गाड़ी संगीत समिति की ओर बढ़ने लगी।
बाद में मैंने गाड़ी में ही जगजीत को अपनी एक विडंबना बताई, उसने तुरंत आश्वासन दिया कि इंतज़ाम हो जाएगा। जगजीत ने कन्सर्ट के बाद साथ चलने और साथ में भोजन करने का निमंत्रण भी दिया। मेरी जान में जान आई। किसी तरह लाज बची। संगीत समिति के गेट पर ही हम लोग उतर गए। मेरे दोस्तों के चेहरे पर छायी निराशा मुझे जगजीत के साथ उतरते देख आशा में तब्दील हो गयी। मैं तमाम दोस्तों को भीतर ले जाने में सफ़ल हो गया। बाद में क़सम खाई कि मेरा कोई मित्र कभी ग़लती से प्रधानमंत्री भी हो गया तो कानों कान किसी को इसकी भनक तक नहीं लगने दूंगा। मैंने कहां तक इसका पालन किया यह बताना मुश्किल है, लेकिन एक हद तक मैं अपने उत्साह पर काबू पाने में सफ़ल हो सका।
(रवींद्र कालिया की किताब गालिब छुटी शराब का अंश)
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