फिल्म अभिनेत्री दीप्ति नवल कविताएं भी लिखती हैं। दीप्ति को संगीत तथा फोटोग्राफी से भी लगाव है। 1983 में इनका कविता संग्रह लम्हा-लम्हा प्रकाशित हुआ। पहली फिल्म 1979 में रिलीज हुई। इनका जन्म अमृतसर पंजाब में 22 अगस्त 1957 को हुआ। इसके अतिरिक्त उन्हें संगीत से लगाव है। वे कई वाद्ययंत्र भी बजाती हैं। चश्मे बद्दूर, रंग बिरंगी, कथा, किसी से न कहना, साथ-साथ, लिसेन अमाया आदि उनकी लोकप्रिय फिल्में हैं।
मैंने देखा है दूर कहीं पर्बतों के पेड़ों पर...
मैंने देखा है दूर कहीं पर्बतों के पेड़ों पर
शाम जब चुपके से बसेरा कर ले
और बकिरयों का झुंड लिए कोई चरवाहा
कच्ची-कच्ची पगडंडियों से होकर
पहाड़ के नीचे उतरता हो
मैंने देखा है जब ढलानों पे साए-से उमड़ने लगें
और नीचे घाटी में
वो अकेला-सा बरसाती चश्मा
छुपते सूरज को छू लेने के लिए भागे
हाँ, देखा है ऐसे में और सुना भी है
इन गहरी ठंडी वादियों में गूँजता हुआ कहीं पर
बाँसुरी का सुर कोई़...
तब
यूँ ही किसी चोटी पर
देवदार के पेड़ के नीचे खड़े-खड़े
मैंने दिन को रात में बदलते हुए देखा है!
"बहुत घुटी-घुटी रहती हो...
"बहुत घुटी-घुटी रहती हो...
बस खुलती नहीं हो तुम!"
खुलने के लिए जानते हो
बहुत से साल पीछे जाना होगा
और फिर वही से चलना होगा
जहाँ से कांधे पे बस्ता उठाकर
स्कूल जाना शुरू किया था
इस ज़ेहन को बदलकर
कोई नया ज़ेहन लगवाना होगा
और इस सबके बाद जिस रोज़
खुलकर
खिलखिलाकर
ठहाका लगाकर
किसी बात पे जब हँसूंगी
तब पहचानोगे क्या?
लोग एक ही नज़र से देखते हैं...
लोग एक ही नज़र से देखते हैं
औरत और मर्द
के रिश्ते को
क्योंकि उसे नाम दे सकते हैं ना!
नामों से बँधे
बेचारे यह लोग!
साभार-कविता कोश
आगे पढ़ें
मैंने देखा है दूर कहीं पर्बतों के पेड़ों पर...
4 years ago
कमेंट
कमेंट X