हिंदी फिल्मों में नायक-नायिका और खलनायक के अलावा कॉमेडियन भी एक महत्वपूर्ण स्तंभ रहे हैं। फिल्मों में इनकी अदाकारी ने भी दर्शकों को गुदगुदाया है। बॉलीवुड में एक से बढ़कर एक कॉमेडियन हुए हैं। जिनमें जॉनी वाकर, केश्टो मुखर्जी, असरानी, मेहमूद आदि प्रमुख हैं। कई फिल्मों में इनका रोल भी अहम रहा है। कुछ फिल्मों के प्रसिद्ध गीत कॉमेडियनों पर ही फिल्माए गए। इस खंड में हम ऐसे ही गीतों का उल्लेख करेंगे। इनमे सबसे पहले जिक्र आता है फिल्म पडोसन के गीत 'एक चतुर नार कर के सिंगार' का।
1968 में रिलीज इस फिल्म में मेहमूद ने नायिका सायरा बानू के संगीत शिक्षक की भूमिका निभाई है। संगीतकार राहुल देव बर्मन के संगीत में किशोर कुमार और मन्ना डे और स्वयं मेहमूद की आवाज में यह गीत आज भी दर्शकों के जेहन में समाया हुआ है। गीतकार राजेंद्र कृष्ण के इस गीत को गाना सरल नहीं है। इस गीत के फिल्मांकन में एक तरफ से मेहमूद राग अलापते हैं तो दूसरी तरफ से किशोर कुमार राग छोड़ते हैं। दोनों के बीच मुकाबला होता है। नायक सुनील दत्त सहित अन्य कलाकार भी इस गीत में शामिल हैं। गीत के बोल-'एक चतुर नार कर के सिंगार, मेरे मन के द्वार ये घुसत जात। हम मरत जात,
अरे हे हे हे यक चतुर नार कर के सिंगार'...को बेहतरीन मसखरे सुर के साथ दक्षिण भारतीय टोन में गाया गया है। जिसें हिंदी भाषी बड़े ही चाव से सुनते हैं।
सर जो तेरा चकराए, या दिल डूबा जाए
जानी वॉकर
1957 में रिलीज फिल्म 'प्यासा' गुरुदत्त और वहीदा रहमान की दिलकश अदाकारी तथा बेहतरीन कहानी की वजह से याद की जाती है। वैसे इस फिल्म में एक
गाना 'सर जो तेरा चकराए' भी लोगों को अच्छा लगा था। मोहम्मद रफी की आवाज तथा जानी वॉकर पर फिल्माया यह गीत तेल मालिश का बखूबी वर्णन करता है। महानगरों में दौड़ धूप और तनाव भरे माहौल में तेल मालिश से राहत मिलने का वादा इसमें किया गया है। गीतकार शकील बदायूंनी ने इसे लिखा है। राहुल देव बर्मन के पिता सचिन देव बर्मन ने इसे संगीत से सजाया है। चंपी सभी को अच्छी लगती है। इस गीत में चंपी की ही तारीफ की गई है।
आ री आजा, निंदिया तू ले चल कहीं
मेहमूद
कॉमेडियनों से उम्मीद की जाती है कि वह अपनी अदा से फिल्म में दर्शकों के लिए काफी हंसगुल्ले पेश करें। उनके गीतों में भी प्रहसन एक आवश्यक विधा रही हैं। लेकिन 1974 में रिलीज 'कुंवारा बाप' फिल्म में एक गीत ऐसा है जो कॉमेडियनों के उस्ताद मेहमूद पर फिल्माया गया है और यह हंसने के बजाय आदमी को भावुक होने पर मजबूर करता है।
फिल्म में एक अबोध बच्चे के लालन-पालन पर लगे मेहमूद ने गीत 'आ री आजा, निंदिया तू ले चल कहीं, उड़नखटोले में दूर दूर दूर, यहां से दूर'... में अभिनय कर अपनी प्रतिभा जगजाहिर की है। यह गीत आज एक बेहतरीन लोरी के रूप में याद किया जाता है। कई लोग इसे अपने बच्चों को सुलाने में मददगार मानते हैं। इस गीत में मेहमूद ने भी अपनी आवाज दी है। मजरुह सुल्तानपुरी के इस गीत को संगीत से सजाया है राजेश रोशन ने और इसमें मुख्य आवाजें किशोर कुमार और लता मंगेशकर की हैं।
पैसा बोलता है
कादर खान
कादर ख़ान ने हिंदी फिल्मों में कई बेहतरीन संवाद लिखे हैं। उनमें गज़ब की अभिनय प्रतिभा भी देखने को मिली। इन सबके अलावा कुछ फिल्मों में उन्होंने कॉमेडियन का रोल भी किया। 1989 में रिलीज राकेश रोशन की फिल्म 'काला बाजार' का एक गाना 'पैसा बोलता है' जानी लीवर और कादरखान पर फिल्माया गया है। यह गाना और फिल्म लोगों को काफी पसंद आई थी। ये गीत बताता है कि पैसा आदमी की जिंदगी में कितना अहम है। उसके बिना कोई काम नहीं चल सकता। नितिन मुकेश की आवाज में यह गीत नोटबंदी के समय लोगों को पैसा की याद दिलाता रहा होगा।
सज रही गली मेरी मां चुनरी गोते में
कुंवारा बाप
1974 में रिलीज 'कुंवारा बाप' फिल्म में यह गीत मेहमूद ने गाया है। इस गीत को हिजडों और मेहमूद पर फिल्माया गया है। इसमें हिजड़े मेहमूद को बच्चे का अभिभावक बनने पर बधाई देते हैं। बिना मुर्गी अंडा कहकर व्यंग्य भी करते हैं। कोरस में इस गाने का फिल्मांकन होता है। मेहमूद की आवाज और उनका अभिनय इस गीत को यादगार बनाता है। फिल्म की थीम होने की वजह से यह गीत काफी चर्चित रहा। राजेश रोशन ने इस गीत में संगीत दिया था। गीत के बोल-अम्मा तेरे मुन्ने की गजब है बात,ओय चंदा जैसा मुखड़ा किरण जैसे हाथ मातृत्व की छटा बिखेरते हैं।
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