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घर के चिराग

                
                                                                                 
                            चिराग़ों को जलाओ घर में, के घर पर ही चिराग हैं
                                                                                                

रोशन बनाओ घर को, के घर पर ही चिराग हैं

भाग रहे हो हर वक़्त, जाने किस बात की तलाश है
दिवाली बनाओ घर में, के घर पर ही चिराग हैं

एक शाम उनके नाम जिन्हे अपना कहा था कभी
दो पल उनके लिए भी जिनकी आँखों में आपके साथ से जल उठते चिराग हैं

माँ की आंखें आज भी इंतज़ार करती हैं दरवाज़े पर
कभी बैठो उनके साथ भी, आप अब भी उनके लाल, उनके चिराग हैं

रोज़ घर तो जाता था पर शायद पहुँच नहीं पता था
आज आया हूँ तो कितनी रोशन हैं ज़िन्दगी, हर तरफ जल उठे चिराग हैं


- हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है। 

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3 years ago

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