काशी विश्वनाथ कॉरिडोर निर्माण और गंगा घाटों के सौंदर्यीकरण कार्य के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। कोर्ट ने इस पर सुनवाई के लिए दो जुलाई की तिथि नियत की है तथा कहा है कि इस दौरान जारी कार्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
संदीप कुमार सिंह की जनहित याचिका पर मुख्य न्यायमूर्ति डीबी भोसले और न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की पीठ सुनवाई कर रही है। याची का कहना है कि कॉरीडोर निर्माण से मंदिर के आसपास के कई निर्माण और छोटे-छोटे मंदिर ध्वस्त किए जा रहे हैं।
गंगा घाटों के मूल स्वरूप से भी सौंदर्याीकरण के नाम पर छेड़छाड़ की जा रही है। इससे बनारस की प्राचीन विरासत के नष्ट होने का खतरा है। मांग की गई है कि निर्माण को रोका जाए। कोर्ट ने याची से कहा है कि इस बात का ब्यौरा प्रस्तुत करे कि किन प्राचीन मंदिरों और निर्माण को छति पहुंची है।
याची को संपूरकक हलफनामा दाखिल करने की मोहलत देते हुए दो जुलाई की तिथि नियत की है। इससे धरोहर बचाओ समिति सहित आमजन ने बड़ी राहत महसूस किया है। उन्हें लग रहा है कि अब उन्हें न्याय मिलेगा।
गुरुवार को न्यायालय का उक्त आदेश आदेश मुख्य न्यायाधीश डी .बी. भोसले और न्यायमूर्ति सुधीर कुमार की खंडपीठ ने सुनवाई करने के बाद पारित किया। याची का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता अरविंद कुमार त्रिपाठी ने कहा कि राज्य सरकार और मंदिर न्यास समिति द्वारा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के कथित पाथ वे, विस्तार, निर्माण का कार्य संबंधित अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है तथा मंदिर के अधिनियमित परिभाषा में आने वाले सुमुख और दुर्मख विनायक, भारत माता मंदिर आदि का ध्वस्त किया जाना अवैध है।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के विविध आदेशों के अनुसार गंगा तट से दो सौ मीटर के भीतर किसी भी प्रकार का स्थायी निर्माण अवैध है जबकि इसी सीमा के अंदर अवैध रूप से जम्मू कोठी का निर्माण किया गया है।
मंदिर के अधिकृत वेबसाइट पर उचित और आवश्यक सूचनाएँ जानबूझकर नहीं डाली है तथा यूनेस्को द्वारा काशी को पुरातन धरोहर घोषित किये जाने के बावजूद धरोहर की सुरक्षा और संरक्षा के बजाय उसको नष्ट किया जा रहा है। केन्द्र सरकार की तरफ से स्थायी अधिवक्ता और राज्य सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता अजित कुमार सिंह ने पक्ष रखा।