एक अधूरी प्रेम कहानी के चलते रात में रोता है ये पेड़!
Updated Thu, 21 Jan 2016 08:07 PM IST
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यूपी के कानपुर जिले के घाटमपुर में 250 साल पुराना एक बेहद दुर्लभ पेड़ पाया गया है। वैज्ञानिक महत्व होने के साथ इस पेड़ से बेहद रोचक प्रेम कहानियां जुड़ी हैं।
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यूपी के कानपुर जिले के घाटमपुर में 250 साल पुराना बेहद दुर्लभ पेड़ पाया गया है। इसे कल्प वृक्ष या पारिजात पेड़ के नाम से भी जानते हैं। ये पेड़ पूरे भारत में बहुत ही कम जगहों पर पाया जाता है। पुराणों में इससे जुड़ी कई रोचक कहानियां हैं साथ ही इस पेड़ का बड़ा वैज्ञानिक महत्व भी है। इस पेड़ को पुत्रजीवा वृक्ष भी कहा जाता है।
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ये अति दुर्लभ कल्प वृक्ष घाटमपुर क्षेत्र के नंदना और तेजपुर गांवों के बीच पाया गया है। बुधवार को कृषि अनुसंधान केंद्र, दलीप नगर (कानपुर देहात) के कृषि वैज्ञानिकों ने पेड़ का निरीक्षण किया और बताया कि ऐसा ही एक वृक्ष कानपुर देहात जिले के भुजपुरा गांव के पास भी मिला है।
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घाटमपुर-गजनेर मार्ग स्थित नंदना गांव में प्राचीन शिव मंदिर है। गांव के बुजुर्गों के मुताबिक कहा जाता है कि मंदिर के निर्माण के समय यहां पेड़-पौधे लगवाए गए थे। तभी कल्प का पौधा भी लगवाया गया होगा। आगे जानें इस पेड़ से जुड़ी बेहद रोचक मान्यताएं...
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पारिजात वृक्ष को कल्प वृक्ष भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी। शास्त्रों में कहा गया है कि मंथन से निकलने के बाद इंद्र देव ने इसे स्वर्ग में अपनी वाटिका में लगाया था।
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इस पेड़ से जुड़ी एक और मान्यता के मुताबिक पारिजात नाम की एक राजकुमारी को भगवान सूर्य से प्यार हो गया था। बहुत कोशिशों के बाद भी सूर्य भगवान ने उसका प्यार स्वीकार नहीं किया। दुखी होकर पारिजात ने आत्महत्या कर ली। जहां पारिजात की समाधि बनाई गई वहां से एक पेड़ उगा जिसका नाम राजकुमारी के नाम पर पारिजात पड़ गया।
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माना जाता है कि ये पेड़ सूर्य को देखकर खिल उठता और रात के सूर्य डूबते ही ऐसा लगता है जैसे ये पेड़ रो रहा है।
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ऐसा माना जाता है कि परिजात के वृक्ष की खासियत है कि जो भी इसे एक बार छू लेता है उसकी थकान मिनटों में गायब हो जाती है। हरिवंशपुराण के अनुसार इंद्र की अप्सरा उर्वशी परिजात के वृक्ष को छूकर ही अपनी थकान मिटाती थी।
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पारिजात के फूलों की एक कहानी रुक्मिणी के प्रति श्रीकृष्ण के प्रेम और इस पर सत्यभामा की जलन से जुड़ी है। पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार नारद ऋषि इन्द्रलोक से इस वृक्ष के कुछ फूल लेकर कृष्ण के पास गए। कृष्ण ने ये फूल पास बैठी रुक्मिणी को दे दिए। इस बात का पता सत्यभामा को चला तो वह नाराज हो गईं और पारिजात के फूल लाने की जिद करने लगीं।
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सत्यभामा के रूठ जाने पर कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ इन्द्रलोक पहुंचे। पहले तो इन्द्र ने यह वृक्ष पृथ्वी लोक के लिए सौंपने से मना कर दिया बाद में उन्हें यह वृक्ष देना पड़ा। जब कृष्ण परिजात का वृक्ष ले जा रहे थे तब गुस्साए इन्द्र ने वृक्ष को यह श्राप दे दिया कि इस वृक्ष के फूल दूर जाकर गिरेंगे। इसलिए वृक्ष लगा तो सत्यभामा की वाटिका में था लेकिन फूल रुक्मिणी की वाटिका में गिरते थे। आज भी ऐसा देखा जा कि पारिजात के फूल पेड़ से दूर जाकर गिरते हैं।
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पारिजात के पेड़ के वैज्ञानिक महत्व भी हैं। कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों डॉ. अशोक कुमार और डॉ. अरविंद कुमार ने बताया कि यह दुर्लभ प्रजाति का वृक्ष है। पूरे कानपुर मंडल में फिलहाल इस प्रजाति के सिर्फ दो ही पेड़ मिले हैं। कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि यह वृक्ष सेमल प्रजाति से मिलता-जुलता है। कई बार सेमल के पेड़ और फूल को लोग पारिजात समझ लेते हैं।
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विशेष औषधीय गुणों के चलते यह विशेष वृक्ष माना जाता है। ऐसे अन्य वृक्षों की खोज करने के साथ सूची तैयार की जा रही है। इस पेड़ की छाल से लेकर पत्तियां तक आयुर्वेद और औषधियां बनाने में इस्तेमाल की जाती हैं।