जम्मू-कश्मीर में हुए 25 हजार करोड़ रुपये के जमीन घोटाले की जांच अब सीबीआई को सौंपी गई है। सीबीआई ने इस मामले में तीन अलग अलग केस दर्ज किए हैं। सरकारी जमीनों पर कब्जा करने का यह मामला लंबे समय से चल रहा था, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। सीबीआई ने जो एफआईआर दर्ज की है, उसमें लिखा है कि हाईकोर्ट ने 24 अप्रैल 2014 को याचिकाकर्ता एसके भल्ला के आवेदन पर जम्मू, सांबा, उधमपुर, श्रीनगर, बडगांव और पुलवामा जिलों के डीसी से जमीन के रिकॉर्ड को लेकर एक रिपोर्ट देने के लिए कहा था।
इस रिकॉर्ड में वे जमीनें भी शामिल थीं, जिन पर सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से रोशनी एक्ट के जरिए कब्जा किया गया था। इसमें खसरा नंबर 746 के तहत आने वाली 2235 कनाल भूमि भी शामिल थी। इसमें से नजूल के तहत 333 कनाल 13 मरला जमीन जम्मू विकास प्राधिकरण को ट्रांसफर कर दी गई। इसमें से ही 784 कनाल और 17 मरला जमीन पर अवैध कब्जा कर लिया गया।
हाईकोर्ट के आदेश पर विजिलेंस जांच शुरू हुई, लेकिन जिला उपायुक्तों से सहयोग नहीं किया। 30 मई 2014 को दोबारा से रिकॉर्ड सौंपने का आदेश जारी हुआ, मगर सभी डीसी चुप रहे। दरअसल जम्मू-कश्मीर में 'रोशनी एक्ट' के तहत सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे किए जा रहे थे। कई लोगों ने इस बाबत आवाज उठाई तो कुछ हाईकोर्ट में चले गए।
विजिलेंस जांच के आदेश हुए, तो कई जिलों के उपायुक्तों ने जमीन का रिकॉर्ड देने से ही मना कर दिया। नतीजा, जांच ठंडे बस्ते में चली गई और सरकारी जमीन कौड़ियों के भाव प्रभावशाली लोगों या उनके खास लोगों के पास जाने का सिलसिला चलता रहा।
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए जम्मू, सांबा, उधमपुर, श्रीनगर, बडगांव और पुलवामा जिलों के डीसी से रिपोर्ट मांगी तो पहले किसी ने नहीं दी। इसके बाद दोबारा आदेश जारी हुए तो जम्मू और सांबा के डीसी ने जमीन का रिकॉर्ड दे दिया। बाकी जिलों के डीसी ने अभी तक वह रिकॉर्ड नहीं दिया। कोर्ट की तरफ से कई बार आदेश दिया गया, लेकिन किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। सरकार से कहा गया कि ऐसे अफसरों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए तो इस दिशा में भी कोई पहल नहीं हुई।
10 जून 2014 को सांबा और जम्मू के डीसी ने भूमि रिकॉर्ड मुहैया कराया। बाकी के जिला उपायुक्तों ने कोई कार्रवाई नहीं की। वे पहले की भांति शांत बने रहे। हाईकोर्ट की ओर से 14 जुलाई, पांच अगस्त और 27 अगस्त को भी रिमाइंडर दिया गया, मगर जमीन रिकॉर्ड की प्रति जिला उपायुक्तों ने नहीं दी।
इनसे पहले 14 फरवरी 2014 को जब कठुआ के डीसी ने रिपोर्ट दी तो कोर्ट ने कहा, आपने सरकारी जमीन पर कब्जा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा, सरकारी अधिकारी क्या इस मामले को दबाना चाह रहे थे। वे कार्रवाई को लेकर अनिच्छुक दिख रहे हैं। सच्चाई को खत्म करने का प्रयास किया गया। कानून तोड़ने वालों को संरक्षण दिया गया। पब्लिक प्रॉपर्टी पर सरेआम कब्जे कराए गए। सरकारी अधिकारियों ने अपने पद का दुरुपयोग किया। ऐसे में उनके खिलाफ क्रिमिनल केस बनता है।
जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक और सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) बताते हैं कि सरकारी जमीनों पर कब्जा करने का यह खेल लंबे समय से चल रहा था। नेता ही नहीं, बल्कि बड़े नौकरशाह भी इस खेल में शामिल हैं। 'रोशनी' एक्ट के जरिए करोड़ों रुपये की जमीन हथियाने वाले नेता और नौकरशाह, सीबीआई जांच में बच नहीं सकेंगे। रियासी जिले के कडमाल क्षेत्र में रहने वाले संतोष कुमार और राजकुमार का कहना था कि 'रोशनी' एक्ट को बड़ी साजिश के तहत यहां लाया गया था।
जम्मू संभाग में बाहर के लोगों को बसाने के लिए यह नियम लागू किया गया। बहुत मामूली सी राशि लेकर राजस्व विभाग बाहर के लोगों को जमीन अलाट कर देता था। इसका फायदा सरकारी लोगों ने खूब उठाया है। अब सीबीआई जांच में उन्हें उम्मीद नजर आ रही है कि देर सवेर उन लोगों का नाम सार्वजनिक होगा, जिन्होंने इस योजना में गोलमाल किया है।