मोदी-शाह का बना बनाया खेल बिगाड़ सकते हैं अब्दुल्ला और महबूबा! अच्छे संकेत नहीं दे रहे आग उगलने वाले बयान
जितेंद्र भारद्वाज, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Tue, 27 Oct 2020 06:09 PM IST
उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला
- फोटो : Amar Ujala (File)
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सार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते रविवार को अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में जम्मू-कश्मीर के पुलवामा का जिक्र किया था। उन्होंने यहां के पेंसिल उद्योग के बारे में बातचीत की। देश में लगभग 85 फीसदी पेंसिल यहीं से सप्लाई होती हैं...
विस्तार
जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक और सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) ने कहा है कि अगर महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला जैसे नेताओं के विस्फोटक बयानों पर शिकंजा नहीं कसा गया तो कश्मीर में पीएम मोदी चमत्कार नहीं दिखा सकेंगे। स्थानीय नेताओं के अलावा भारत सरकार भी इसके लिए दोषी है। वह इसलिए कि तोड़फोड़ के बयान देने वालों के खिलाफ समय पर कार्रवाई नहीं करती। कश्मीर का आम व्यक्ति आज सुख चैन चाहता है, मगर इस राह में कुछ राजनेता ही सबसे बड़ा रोड़ा बन गए हैं। इनके आग उगलने वाले बयान शांत कश्मीर को हिला देते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते रविवार को अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में जम्मू-कश्मीर के पुलवामा का जिक्र किया था। उन्होंने यहां के पेंसिल उद्योग के बारे में बातचीत की। देश में लगभग 85 फीसदी पेंसिल यहीं से सप्लाई होती हैं। चिनार की लकड़ी, स्थानीय लोगों का जीवन बदल रही है। पीएम का संदेश था कि युवा आतंक की राह छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हों। सरकार उनके विकास के लिए कई तरह की योजनाएं ला रही है। यही इलाका आजकल आतंकी गतिविधियों का बड़ा केंद्र बनता जा रहा है। यहां स्थित मदरसे यानी धार्मिक स्कूलों में पढ़ने वाले युवक बंदूक की तरफ बढ़ रहे हैं।
कैप्टन अनिल गौर के मुताबिक, जम्मू में चाहे जो भी पार्टी हो, लेकिन उसके नेता महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला की तरह आग लगाने वाले बयान नहीं देते। यहां का माहौल राजनेता खराब कर रहे हैं। अगर भारत सरकार ऐसे नेताओं पर तुरंत कार्रवाई करे, तो माहौल खराब होने से रोका जा सकता है। अतीत में जाएं तो बहुत से मौजूदा सवालों का जवाब मिल जाएगा। अब्दुल्ला-राजीव समझौता, मुफ्ती की बेटी का अपहरण होना, संदिग्ध लोगों का पाकिस्तान जाना, सलाहुद्दीन जैसे लोगों का भारत के खिलाफ खड़े होना और न जाने कितने ऐसे उदाहरण हैं, जो यह बताने के लिए काफी हैं कि कश्मीर में आतंकवाद क्यों और कैसे शुरू हो गया। शुरुआत में जाकर पता लगाएंगे कि अनुच्छेद 370 और 35ए किन परिस्थितियों में और क्यों शामिल किए गए तो कई सवालों के जवाब एक साथ मिल जाएंगे। घाटी में पत्थरबाजी और नारेबाजी पर काफी हद तक रोक लग गई है। अब दोबारा से युवाओं को उकसाया जा रहा है।
1990 से पहले वाला 'सूफियाना' माहौल अब कहीं नहीं दिखता ...
कैप्टन गौर मानते हैं कि कश्मीर में स्थित मस्जिदों और मदरसों में 1990 से पहले वाला सूफियाना' माहौल अब नहीं रहा। इन संस्थाओं और वहां काम करने वालों की शिनाख्त बहुत जरुरी है। पुलवामा और शोपियां जिले में स्थित कई मदरसे, जांच एजेंसियों के रडार पर हैं। एक मदरसे के 13 स्टूडेंट, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि वे सभी आतंकी संगठनों में भर्ती हो गए थे, वह कश्मीर के इन्हीं जिलों में स्थित है। मदरसे का एक युवक सज्जाद भट्ट, पुलवामा में फरवरी 2019 के दौरान सीआरपीएफ पर हुए हमले में शामिल रहा है। इसमें 40 जवान शहीद हो गए थे।
मदरसे में दक्षिणी कश्मीर के कुलगाम, पुलवामा और अनंतनाग जिलों से अनेक युवक आते हैं। जांच एजेंसियों के मुताबिक, ये इलाके आतंकी वारदातों के गढ़ बन चुके हैं। यहां पहले दूसरे प्रदेशों जैसे उत्तर प्रदेश, केरल व तेलंगाना से भी युवा आते थे, लेकिन इस साल वह संख्या न के बराबर रह गई है। 1990 से पहले इन मदरसों में कला संस्कृति और शिक्षा की बात होती थी। कैप्टन गौर कहते हैं कि तब यहां मोहब्बत का पैगाम मिलता था। कट्टरता के लिए जगह नहीं थी। अब स्थिति बदल गई है। यहां पाकिस्तान के बहकावे में आकर युवाओं को आतंकी राह पर जाने के लिए तैयार किया जा रहा है।
युवक, आतंकी गतिविधियां और पड़ोसी देश के उकसावे को तेजी से ग्रहण कर लेते हैं। जैश, अल बदर और एलईटी जैसे आतंकी संगठनों में अनेक स्थानीय युवक शामिल हो रहे हैं। इसके अलावा सैकड़ों युवाओं को ओवर ग्राउंड वर्कर (OGW) की ट्रेनिंग भी दी गई है। उन 13 युवाओं में से एचएम के नजीम नाजिर डार और एजाज अहमद पॉल, जिन्हें अगस्त में मारा गिराया गया था, वे भी यहीं के मदरसे से निकले थे।
सरकार तुरंत नियंत्रण में ले मदरसे
कैप्टेन गौर का मानना है कि मदरसों में पढ़ाने का तरीका गलत है। कुरान की अच्छी बातों से परहेज किया जाता है। कैप्टन गौर के अनुसार, सरकार को बिना कोई देरी किए सभी मदरसे अपने नियंत्रण में ले लेने चाहिए। अगर किसी को धार्मिक शिक्षा लेनी है तो वह अलग से पढ़ाई से कर सकता है। यहां कौन प्रचारक है, नियुक्ति का तरीका क्या है, फंडिंग कहां से आ रही है, इन सब पर सवाल खड़े होते हैं। इन जगहों पर सरकारी स्कूल खोल दिए जाएं। सेब के बागों की वजह से पुलवामा का इलाका बहुत धनी माना जाता रहा है।
कुछ वर्षों से यहां पाकिस्तान के गुर्गों का हस्तक्षेप बढ़ा है। आतंकियों और उनके मददगारों को बागों में आसानी से छिपने की जगह मिल जाती है। अगर केंद्र सरकार को पुलवामा जैसे दूसरे इलाकों में आतंकवाद खत्म करना है, तो मस्जिदों और मदरसों को अपने नियंत्रण में लेना होगा। नेताओं के भड़काऊ बयानों पर रोक लगानी होगी। सबके विकास की बात हो और गुपकार जैसी बैठकों पर नजर रखी जाए। अगर यह सब होता है तो ही पीएम मोदी की नीति कश्मीर में आतंकवाद को खत्म करने में कारगर साबित हो सकेगी।