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Brics Currency: चीन ब्रिक्स करेंसी को आगे बढ़ाएगा या अपनी मुद्रा को?

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, केपटाउन Published by: Harendra Chaudhary Updated Sat, 03 Jun 2023 03:24 PM IST
सार

ब्रिक्स करेंसी को लेकर कई हलकों से यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या इस प्रयास में चीन सचमुच शामिल होगा। विश्लेषकों के मुताबिक जिस समय चीन की अपनी मुद्रा युवान की अंतरराष्ट्रीय पैठ बढ़ रही है, संभव है कि किसी बहुराष्ट्रीय मुद्रा को आगे बढ़ाने में उसकी रुचि ना हो...

Will China promote the BRICS currency or its own currency yuan?
Brics Countries - फोटो : Agency (File Photo)

विस्तार
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ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) विदेश मंत्रियों की यहां हुई बैठक में इस समूह की अपनी साझा मुद्रा विकसित करना एक प्रमुख एजेंडा रहा है। इस बार इस बैठक को दो कारणों से खास तव्वजो रही है। उनमें एक है ब्रिक्स करेंसी के विकास की चर्चा और दूसरी वजह ब्रिक्स में नए देशों को शामिल करने का प्रस्ताव।

ब्रिक्स विदेश मंत्रियों की बैठक के साथ ही यहां फ्रेंड्स ऑफ ब्रिक्स सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें ब्रिक्स देशों के अलावा 15 अन्य देशों के विदेश मंत्री आए। पर्यवेक्षकों के मुताबिक मेजबान दक्षिण अफ्रीका ने इन देशों के विदेश मंत्रियों को आमंत्रित कर एक तरह से ब्रिक्स के विस्तार की शुरुआत कर दी है।

इस बीच प्रस्तावित ब्रिक्स करेंसी को लेकर कई हलकों से यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या इस प्रयास में चीन सचमुच शामिल होगा। विश्लेषकों के मुताबिक जिस समय चीन की अपनी मुद्रा युवान की अंतरराष्ट्रीय पैठ बढ़ रही है, संभव है कि किसी बहुराष्ट्रीय मुद्रा को आगे बढ़ाने में उसकी रुचि ना हो। ब्रिक्स बैठक से ठीक पहले अमेरिका की लॉयला यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड में एसोसिएट प्रोफेसर और वित्तीय मामलों के जानकार तुगी चुलउन के एक विशेष लेख ने इस चर्चा को बल दिया है।    

चुलउन ने लिखा है कि दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश होने के कारण चीन की मुद्रा को अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति मिल रही है। सबसे बड़ा निर्यातक होने के अलावा चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी है। चीन की इस हैसियत के बावजूद युवान को दुनिया की बड़ी मुद्राओं में नहीं गिना जाता था। लेकिन पिछले साल यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से सूरत बदल गई है। अब अंतरराष्ट्रीय कारोबार में युवान का इस्तेमाल करने वाले देशों की संख्या बढ़ रही है।

चुलउन ने लिखा है- ‘वित्त का प्रोफेसर होने और अंतरराष्ट्रीय वित्त का विशेषज्ञ होने के नाते मैं यह समझ पा रहा हूं कि भू-राजनीतिक संघर्ष अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बनने की राह में चीन की मुद्रा को कैसे अगले चरण तक ले जा सकता है। और साथ ही इसे भी समझ पा रहा हूं कि इस परिस्थिति के कारण कैसे अमेरिकी मुद्रा डॉलर के वर्तमान वर्चस्व का क्षय शुरू हो सकता है।’

विशेषज्ञों के मुताबिक चीन हमेशा से यह चाहता था कि युवान एक वैश्विक ताकत बने। हाल के वर्षों में उसने इस कोशिश में काफी ताकत झोंक रखी है। अपनी इसी मंशा को के मुताबिक 2015 में चीन सरकार ने युवान में सीमा पार भुगतान को संभव बनाने के लिए क्रॉस-बॉर्डर पेमेंट्स सिस्टम (सिप्स) की शुरुआत की। 2018 में उसने कच्चे तेल के वायदा कारोबार के युवान आधारित सिस्टम को लॉन्च किया। इसका मकसद यह है कि निर्यातक युवान में भुगतान स्वीकार करते हुए चीन को कच्चा तेल बेचें।

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इसे देखते हुए पर्यवेक्षकों को इस बात में शक है कि ब्रिक्स करेंसी को लेकर उत्साहित होगा, जिससे युवान की एक प्रतिस्पर्धी मुद्रा अस्तित्व में आ सकती है। खास कर उस समय चीन से यह उम्मीद रखने का मजबूत आधार नहीं है, जब चीन की मंशा एक हद तक सफल होती दिख रही है।

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