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Myanmar: सैनिक तानाशाही के दौर में मानवीय त्रासदी की कहानी बन गया है म्यांमार

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, यंगून Published by: Harendra Chaudhary Updated Thu, 02 Feb 2023 04:45 PM IST
सार

Myanmar: पर्यवेक्षकों के मुताबिक बीते दो साल में मिन ने देश से ज्यादा विदेश में दोस्त बनाने पर ध्यान दिया है। सितंबर में अपनी रूस यात्रा के दौरान मिन ने कहा था कि पुतिन दुनिया में स्थिरता सुनिश्चित करने वाले शख्स हैं, जिनके नेतृत्व में रूस दुनिया का नंबर एक देश बन गया है...

Myanmar junta chief Min Aung Hlaing with Russian President Vladimir Putin
Myanmar junta chief Min Aung Hlaing with Russian President Vladimir Putin - फोटो : Agency (File Photo)

विस्तार

म्यांमार में सैनिक तख्ता पलट के बाद गुजरे दो साल मानवीय त्रासदी का काल रहे हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में जारी गृह युद्ध की मार आमजन पर पड़ी है। गैर-सरकारी संस्था इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर माइग्रेशन की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान दो लाख से ज्यादा लोग विस्थापित होकर थाईलैंड चले गए हैं। उनमें से 72 फीसदी लोगों के पास पहचान का कोई दस्तावेज नहीं है। इसलिए वे बेहद चिंताजनक स्थिति में जिंदगी गुजार रहे हैं।

विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया 2017 में हुए रोहिंग्या मुसलमानों के मानवाधिकारों के हनन के मामले में मौजूदा सैनिक तानाशाह जनरल मिन आंग हलायंग के ऊपर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मुकदमा चल रहा है। इसके अलावा उन पर अर्जेंटीना, तुर्किये और जर्मनी में भी मुकदमे दायर किए गए हैं। अमेरिकी थिंक टैंक यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ पीस से जुड़े विशेषज्ञ जेसन टॉवर ने कहा है- ‘हिंसा और लोगों की संपत्ति के नुकसान में शामिल रहने का मिन हलांयग का दशकों पुराना रिकॉर्ड है।’

टॉवर ने वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम से बातचीत में कहा कि इस बार सत्ता में आने के बाद मिन ने दस वर्षो से चल रहे आर्थिक सुधार कार्यक्रम को रोक दिया। इस कारण लाखों लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गए हैं। विस्थापन के कारण हुई हजारों मौतों के लिए वे सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं।

आरोप है कि सैन्य शासन के मौजूदा दौर में म्यांमार की सेना में अंधविश्वास गहरे हो गए हैं। जनरल मिन और उनकी पत्नी के जादू टोना में यकीन करने और कर्मकांडों में शामिल होने का असर सेना में नीचे तक चला गया है। इस कारण सैनिक ऐसे कार्यों में शामिल हुए हैं, जिस दौरान आम लोगों को बर्बरता झेलनी पड़ी।  

म्यांमार में ऑस्ट्रेलिया के राजदूत रह चुके निकोलस कॉपेल ने कहा है- ‘पिछले दो साल के दौरान मिन के जिद्दी स्वभाव की और पुष्टि हुई है। वे न तो दूसरों की सुनते हैं और न ही अर्थव्यवस्था को संभालने में सफल हुए हैं। सिर्फ एक बात सामने आई है कि वे किसी भी रूप में सत्ता में बने रहने को लेकर कृत संकल्प हैं।’

पर्यवेक्षकों के मुताबिक बीते दो साल में मिन ने देश से ज्यादा विदेश में दोस्त बनाने पर ध्यान दिया है। इस दौरान उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन से खास रिश्ता बना लिया है। पिछले सितंबर में अपनी रूस यात्रा के दौरान मिन ने कहा था कि पुतिन दुनिया में स्थिरता सुनिश्चित करने वाले शख्स हैं, जिनके नेतृत्व में रूस दुनिया का नंबर एक देश बन गया है।

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बताया जाता है कि मिन ने थाईलैंड की सेना को भी अपना सहयोगी बना लिया है। इससे उनके खिलाफ संघर्ष में लगे समूहों को बाहरी सहायता मिलना कठिन हो गया है। म्यांमार की सीमा थाईलैंड से लगी हुई है। पर्यवेक्षकों के मुताबिक बाहरी समर्थन जुटाने के बाद मिन के नेतृत्व में म्यांमार की सेना अपनी जनता का बेखौफ दमन कर रही है।

2018 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने रोहिंग्या मुसलमानों से संबंधित अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि मिन के नेतृत्व में म्यांमार की सेना ‘अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ सबसे गंभीर किस्म के अपराध किए हैं।’ आरोप है कि अब वैसे ही अपराध देश की सैन्य शासन विरोधी बाकी आबादी के खिलाफ किए जा रहे हैं।

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