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Sri Lanka President got the idea of women empowerment during economic crisis
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Sri Lanka: आर्थिक संकट से जूझते श्रीलंका में राष्ट्रपति को आया महिला सशक्तीकरण का ख्याल
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, कोलंबो
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Sat, 03 Dec 2022 03:51 PM IST
सार
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Sri Lanka: विश्लेषकों के मुताबिक विक्रमसिंघे ने ये पहल करने के लिए गलत समय चुना है। आर्थिक संकट का सबसे खराब असर महिलाओं और बच्चों पर पड़ा है। परिवारों के संकटग्रस्त होने के कारण लड़कियों के बाल विवाह का चलन बीते एक साल में बढ़ा है। कई जगहों से महिलाओं को वेश्यावृत्ति में धकेले जाने की शिकायत भी मिली है...
देश को आर्थिक मुसीबत से निकालने में नाकाम साबित हो रहे श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे अब लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण को अपने एजेंडे पर ले आए हैं। उन्होंने कहा है कि इन दोनों मकसदों को हासिल करने के लिए दो बिल देश की संसद में लाए जाएंगे।
अब तक श्रीलंका में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को गंभीर अपराध नहीं माना जाता है। इसके अलावा यह आम शिकायत है कि हिंसा के ऐसे मामलों की शिकायत आने पर सरकारी एजेंसियों का रुख लापरवाही भरा होता है। सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक अतीत में महिला सशक्तीकरण के कुछ कदम उठाए गए हैं। लेकिन उनसे घर-परिवार में महिलाओं की स्थिति नहीं सुधरी है। इन कार्यकर्ताओं के मुताबिक बहुत-सी महिलाएं हिंसा का शिकार होने के बावजूद कानून की मदद लेने नहीं जाती हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि उन्हें न्याय मिलने की उम्मीद नहीं रहती है। इसलिए राष्ट्रपति की ताजा पहल सही दिशा में है।
लेकिन कुछ विश्लेषकों के मुताबिक विक्रमसिंघे ने ये पहल करने के लिए गलत समय चुना है। आर्थिक संकट का सबसे खराब असर महिलाओं और बच्चों पर पड़ा है। परिवारों के संकटग्रस्त होने के कारण लड़कियों के बाल विवाह का चलन बीते एक साल में बढ़ा है। कई जगहों से महिलाओं को वेश्यावृत्ति में धकेले जाने की शिकायत भी मिली है। इसलिए विश्लेषकों का कहना है कि सरकार की प्राथमिकता आर्थिक संकट का समाधान होना चाहिए, जिससे महिलाओं को पहले नई पैदा रही समस्याओं से छुटकारा मिले।
विक्रमसिंघे ने संसद में लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण के लिए दो बिल लाने की घोषणा करते हुए महिला सांसदों से अनुरोध किया कि वे प्रस्तावित कानूनों को अधिक कारगर बनाने के लिए अपने सुझाव दें। राष्ट्रपति ने कहा कि न सिर्फ संसद में, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं की नुमाइंगदी बढ़ाई जानी चाहिए। निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों को इस मकसद को हासिल करने के लिए आगे आना चाहिए।
पर्यवेक्षकों के मुताबिक श्रीलंका को इस बात का श्रेय है कि दुनिया में पहली महिला प्रधानमंत्री वहीं बनीं। सिरिमाओ बंडारनायके 1960 में प्रधानमंत्री बनी थीं। इसके बावजूद देश में महिलाओँ का राजनीतिक प्रतिनिधित्व कम ही रहा है। पुरुष प्रधानता की संस्कृति के कारण महिलाओं का राजनीति में आना कभी-कभार ही हुआ है। उनमें भी ज्यादातर मौकों पर वंशानुगत कारणों से महिलाएं राजनीति में आई हैं। अभी 225 सदस्यों वाली संसद में सिर्फ 12 महिला सांसद हैं।
विक्रमसिंघे ने 2015 से 2019 तक प्रधानमंत्री थे। उस दौरान एक कानून बना था, जिसके तहत स्थानीय चुनावों में 25 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गई थीं। समाजशास्त्रियों के मुताबिक वैसे श्रीलंका में ज्यादातर महिलाएं कामकाजी हैं, लेकिन नौकरी में वे आगे नहीं बढ़ पातीं। कपड़ा कारखानों और बहुत से दूसरे कारोबार में ज्यादातर कर्मचारी महिलाएं हैं, मगर ऊंचे पदों पर उनकी मौजूदगी बेहद कम है। राष्ट्रपति विक्रमसिंघे ने भी इस विसंगति का जिक्र संसद में दिए अपने भाषण में किया। उन्होंने कहा- ‘न सिर्फ प्राइवेट सेक्टर, बल्कि सरकारी क्षेत्र ने भी कुछ गलतियां की हैं। अब हम कानून बना कर इसे सुधारेंगे।’
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