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Pakistan Law Minister tables bill in NA to curtail powers of Chief Justice
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Pakistan: पाकिस्तान में मुख्य न्यायाधीश की शक्तियों को कम करने के लिए बिल पेश, पीएम ने कही बड़ी बात
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, इस्लामाबाद
Published by: Jeet Kumar
Updated Wed, 29 Mar 2023 04:09 AM IST
सार
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प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा था कि यदि संसद ने प्रधान न्यायाधीश की शक्तियों को कम करने के लिए कानून नहीं बनाया, तो ‘इतिहास हमें माफ नहीं करेगा।
पाकिस्तान की सरकार ने देश के प्रधान न्यायाधीश की विवेकाधीन शक्तियों में कटौती करने के लक्ष्य से मंगलवार को एक विधेयक संसद में पेश किया। स्थानीय रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान के कानून मंत्री आजम नजीर तरार ने सुप्रीम कोर्ट (प्रैक्टिस एंड प्रोसीजर) बिल, 2023 पेश किया, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश द्वारा स्वत: संज्ञान लेने की विवेकाधीन शक्तियों को सीमित करना है।
इससे पहले दिन में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा था कि यदि संसद ने प्रधान न्यायाधीश की शक्तियों को कम करने के लिए कानून नहीं बनाया, तो ‘इतिहास हमें माफ नहीं करेगा। गौरतलब है कि विधेयक का संसद में पेश होना और प्रधानमंत्री शरीफ का यह बयान ऐसे समय आया है, जब पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीशों ने देश के शीर्ष न्यायाधीश की स्वत: संज्ञान लेने की शक्तियों पर सवाल उठाया।
हाउस ने प्रस्तावित बिल को आगे की मंजूरी के लिए नेशनल असेंबली (एनए) स्टैंडिंग कमेटी ऑन लॉ एंड जस्टिस को भेज दिया है, जो बुधवार सुबह चौधरी महमूद बशीर विर्क की अध्यक्षता में मिलेंगे। कमेटी इसे वापस निचले सदन में भेजेगी। एनए के बिल पास होने के बाद इसे सीनेट की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।
पाकिस्तान सरकार का यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों - जस्टिस सैयद मंसूर अली शाह और जस्टिस जमाल खान मंडोखैल द्वारा पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश की शक्तियों पर सवाल उठाए जाने के एक दिन बाद आया है। दोनों न्यायाधीशों ने कहा कि शीर्ष अदालत एक व्यक्ति, मुख्य न्यायाधीश के एकान्त निर्णय पर निर्भर नहीं रह सकती है।
संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए, शरीफ ने उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति मंसूर अली शाह और न्यायमूर्ति जमाल खान मंडोखैल के असहमतिपूर्ण फैसले के बारे में विस्तार से बात की, जिन्होंने प्रधान न्यायाधीश के किसी भी मुद्दे पर कार्रवाई के लिए स्वत: संज्ञान लेने और विभिन्न मामलों की सुनवाई के लिए पसंद की पीठ का गठन करने के असीमित अधिकार की आलोचना की।
उनका फैसला प्रधान न्यायाधीश उमर अता बंदियाल द्वारा 22 फरवरी को पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा प्रांतों में चुनावों के बारे में स्वत: संज्ञान लेने के मामले के बारे में था।
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