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Now Human Rights Watch also raised questions on the conditions of IMF in Sri Lanka
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Sri Lanka: अब ह्यूमन राइट्स वॉच ने भी श्रीलंका में आईएमएफ की शर्तों पर उठाए सवाल
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, कोलंबो
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Sat, 01 Apr 2023 03:00 PM IST
सार
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Sri Lanka: ह्यूमन राइट्स वॉच ने ‘श्रीलंकाः आईएमएफ एक ऋण से अधिकारों के क्षरण का खतरा’ शीर्षक के साथ एक बयान जारी किया है। इसमें कहा गया है कि यह संभव है कि आईएमएफ भविष्य़ में ऋण देने के लिए श्रीलंका सरकार पर भ्रष्टाचार विरोधी उपाय लागू करने की शर्त लगाए...
एमनेस्टी इंटरनेशनल के बाद अब एक अन्य प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने भी श्रीलंका में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के आर्थिक सुधार कार्यक्रम पर सवाल उठाए हैं। ह्यूमन राइट्स वॉच ने ऐसी नीतियां अपनाने की मांग की है, जिनसे श्रीलंका में आम जन के आर्थिक और सामाजिक अधिकारों का और क्षरण ना हो। इसके पहले एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा था कि आईएमएफ की शर्तों को लेकर वह इस अंतरराष्ट्रीय संस्था के अधिकारियों से बातचीत करेगा और उन्हें अपनी चिंता बताएगा।
ह्यूमन राइट्स वॉच ने ‘श्रीलंकाः आईएमएफ एक ऋण से अधिकारों के क्षरण का खतरा’ शीर्षक के साथ एक बयान जारी किया है। इसमें कहा गया है कि यह संभव है कि आईएमएफ भविष्य़ में ऋण देने के लिए श्रीलंका सरकार पर भ्रष्टाचार विरोधी उपाय लागू करने की शर्त लगाए। उस स्थिति में श्रीलंका सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि भ्रष्टाचार विरोधी सुधारों से प्रशासन मे जवाबदेही आए।
बयान में कहा गया है- ‘सरकारी भ्रष्टाचार और टैक्स नियमों से धनी लोगों को लाभ हुआ, जो श्रीलंका के आर्थिक संकट का प्रमुख कारण है। इस कारण श्रीलंका के लोगों को अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। उन्हीं लोगों पर और बोझ नहीं डाला जाना चाहिए।’ ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है कि चाहे युद्ध अपराध हों या कुशासन या दमन- सरकार को इन सभी मामलों में जवाबदेही तय करनी चाहिए।
विशेषज्ञों के बीच आम राय है कि श्रीलंका में आर्थिक संकट दशकों तक अपनाई गई गैर-जिम्मेदाराना मौद्रिक नीति, सब्सिडी के गलत इस्तेमाल और कुशासन का परिणाम है। ह्यूमन राइट्स वॉच ने यह स्वीकार किया है कि देश जिस मुसीबत में है, उसके बीच आईएमएफ का कर्ज एक लाइफलाइन की तरह है। लेकिन कहा है कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत किसी संकट में पड़े देश की मदद करना सरकारों और वित्तीय संस्थानों का दायित्व है। यह मदद इस रूप में दी जाना चाहिए, जिससे मानवाधिकारों के लिए खतरा पैदा ना हो। ऐसी नीतियों को आगे बढ़ाने से बचा जाना चाहिए, जिनसे कम आय वर्ग वाले लोगों की जरूरी वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंच और सीमित हो जाए।
मानवाधिकार संगठन ने कहा है कि सुधार कार्यक्रमों को प्रभावी बनाने के लिए इन पर अमल में सिविल सोसायटी और अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों को भी भूमिका दी जानी चाहिए। भ्रष्टाचार विरोधी नियमों को लागू करते समय यह अवश्य सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सरकारी अफसरों और प्राइवेट कारोबारियों को उनके अतीत के गलत कार्यों के लिए उत्तरदायी ठहराया जाए।
आईएमएफ के कार्यक्रम में मुख्य ध्यान सरकार का राजस्व बढ़ाने पर है। ह्यूमन राइट्स वॉच ने राय जताई है- जब संकट शुरू हुआ, तो उस समय श्रीलंका का जीडीपी की तुलना में टैक्स का अनुपात 7.3 फीसदी था। इसके 14 फीसदी तक बढ़ने की संभावना है। संगठन ने कहा है- ‘इसके लिए धनी लोगों पर टैक्स लगाने के कुछ कदम जरूर उठाए गए हैं, लेकिन ज्यादा निर्भरता वैल्यू एडेड टैक्स (वैट) पर दिखती है, जिससे आम जन का जीवन स्तर और गिरेगा।’
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