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Nepal Politics: भारत यात्रा को लेकर आलोचनाओं से घिर गए हैं नेपाल के प्रधानमंत्री दहल

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काठमांडो Published by: Harendra Chaudhary Updated Mon, 05 Jun 2023 12:45 PM IST
सार

Nepal Politics: विपक्षी दलों ने भी यह कह कर दहल की यात्रा को नाकाम बताया है कि वे सीमा विवाद, विमान रूट, पंचेश्वर परियोजना के बारे में नेपाल की मांगों पर भारत को राजी नहीं कर पाए। उन्होंने दोनों देशों के बीच इलाकों की अदला-बदली की बात की...

Nepal Politics: Nepal PM Pushpa kamal Dahal is surrounded by criticism regarding his visit to India
पीएम मोदी और नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल 'प्रचंड' - फोटो : Agency (File Photo)

विस्तार
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नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल की बीते सप्ताहांत पूरी हुई भारत यात्रा के बाद नेपाल में उन पर ‘भारत पर निर्भर’ हो जाने के इल्जाम लगाए जा रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि इस यात्रा के दौरान नेपाल को ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ।

थिंक टैंक सेंटर फॉर सोशल इन्क्लूजन एंड फेडरलिज्म में रिसर्च डायरेक्टर अजय भद्र खनाल ने दहल की यात्रा से ठीक पहले एक वेबसाइट पर लिखी अपनी टिप्पणी में अनुमान लगाया था कि दहल की यात्रा का ऐसा ही नतीजा होगा। अब उन्होंने कहा है कि दहल की यात्रा के बाद नेपाल की भारत पर निर्भरता और भी ज्यादा बढ़ गई है। खनाल ने कहा है कि जरूरत इस ‘निर्भरता’ को ‘एक दूसरे पर निर्भरता’ में बदलने की है। लेकिन अब हालत यह हो गई है कि अगर भारत ने फिर कभी नेपाल पर दबाव बनाया, तो नेपाल के लिए उसका मुकाबला करना कठिन साबित होगा।

अखबार काठमांडू पोस्ट के संपादक विश्वास बराल ने एक टिप्पणी में लिखा है कि भारत ने दहल का स्वागत संदेह के साथ किया। इसकी वजह दहल के बारे में यह धारणा है कि वे एक कमजोर गठबंधन के नेता हैं। साथ ही उनकी ‘चाइना मैन’ (चीन के समर्थक) की छवि है। लेकिन बराल ने लिखा है कि दहल भारत को खुश रखने की जरूरत बहुत पहले समझ चुके हैं।
नेपाल में परंपरा रही है कि वहां प्रधानमंत्री बनने के बाद कोई नेता अपनी पहली विदेश यात्रा पर भारत जाता है। टीकाकारों ने कहा है कि दहल ने यह रस्म-अदायगी की, लेकिन वे अपने देश के लिए ज्यादा कुछ हासिल नहीं कर पाए। अखबारी टिप्पणियों में कहा गया है कि भारत से लौटने के बाद अब दहल की चीन यात्रा की तैयारियां शुरू हो जाएंगी।

बराल ने लिखा है- ‘चीन में दहल को संभवतः यह मालूम पड़ेगा (यही भारत में हुआ होगा) कि भारत और चीन के साथ संबंध अधिक से अधिक एक दूसरे की कीमत पर होता दिखने लगा है। दोनों को साथ-साथ खुश रखना लगातार अधिक मुश्किल होता जा रहा है।’

विपक्षी दलों ने भी यह कह कर दहल की यात्रा को नाकाम बताया है कि वे सीमा विवाद, विमान रूट, पंचेश्वर परियोजना के बारे में नेपाल की मांगों पर भारत को राजी नहीं कर पाए। उन्होंने दोनों देशों के बीच इलाकों की अदला-बदली की बात की। यहां इसका यह अर्थ निकाला गया है कि दहल ने भारत को यह संकेत दिया कि नेपाल कालापानी इलाके पर से अपना दावा छोड़ने को तैयार है।

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दहल की भारत यात्रा शुरू होने से ठीक पहले नेपाल के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने नेपाल के विवादित नागरिकता विधेयक पर दस्तखत कर दिए। विपक्ष का आरोप है कि ऐसा भारत सरकार को खुश करने के लिए किया गया। इसके अलावा कभी अपने को धर्म निरपेक्ष राजनीति का चेहरा बताने वाले दहल ने भारत में हिंदू धर्म के एक प्रसिद्ध मंदिर का दौरा किया। इसे भी वर्तमान भारत सरकार को खुश करने की कोशिश का हिस्सा बताया गया है।

कुछ आलोचकों ने कहा है कि दहल युवा नेपालियों की भावना को समझने में नाकाम रहे हैं। विश्लेषक सीके लाल ने अखबार कांतिपुर में लिखे एक लेख में कहा है कि धनी नेपालियों को अब काशी और कोलकाता के पुराने सपने दिखा कर लुभाया नहीं जा सकता। इन नेपालियों की नजरें अब सिडनी और न्यूयॉर्क पर टिकी हैं। जानकारों के मुताबिक इस हाल में ‘भारत निर्भर’ होने की धारणा दहल के लिए राजनीतिक नुकसान का सौदा साबित हो सकता है।

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