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Nepal Politics: gap of mistrust is increasing in parties of pushpa kamal Dahal and kp sharma Oli
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Nepal Politics: दहल और ओली की पार्टियों में लगातार बढ़ती जा रही है अविश्वास की खाई
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काठमांडो
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Thu, 02 Feb 2023 03:31 PM IST
सार
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Nepal Politics: ताजा मामला संवैधानिक परिषद के गठन से सामने आया है। नेपाल में संवैधानिक परिषद के पास काफी अधिकार होते हैं। यह परिषद ही मुख्य न्यायाधीश और 12 विभिन्न संवैधानिक आयोगों के 60 पदाधिकारियों की नियुक्ति करती है। छह सदस्यों की इस परिषद की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं...
Nepal Politics: KP sharma OLI and Pushpa Kamal Dahal
- फोटो : Agency (File Photo)
नेपाल के सत्ताधारी गठबंधन में शामिल दो सबसे बड़े दलों के बीच अविश्वास की खाई गहराती नजर आ रही है। इस बात के ठोस संकेत हैं कि प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) असहज है। गठबंधन के भीतर पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) के बने दबदबे को वह गले नहीं उतार पा रही है। दोनों पार्टियों के बीच मौजूद खाई के साफ संकेत राष्ट्रपति चुनाव के सिलसिले में भी देखने को मिल रहे हैं।
ताजा मामला संवैधानिक परिषद के गठन से सामने आया है। नेपाल में संवैधानिक परिषद के पास काफी अधिकार होते हैं। यह परिषद ही मुख्य न्यायाधीश और 12 विभिन्न संवैधानिक आयोगों के 60 पदाधिकारियों की नियुक्ति करती है। छह सदस्यों की इस परिषद की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं। संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर, ऊपरी सदन नेशनल असेंबली के सभापति, मुख्य विपक्षी दल के नेता, और सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश इसके सदस्य होते हैं।
अभी परिषद का जिस रूप में गठन हुआ है, उसके मुताबिक इसमें यूएमएल का दबदबा बन गया है। स्पीकर देवराज घिमिरे और नेशनल असेंबली के सभापति गणेश तिमिलसिना दोनों यूएमएल के सदस्य हैं। डिप्टी स्पीकर पद के लिए इंदिरा राणा राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी की हैं। यह पार्टी यूएमएल की सहयोगी है। इस तरह परिषद में तीन ऐसे सदस्य हैं, जिनके यूएमएल की नीति के मुताबिक चलने की संभावना है।
यूएमएल की इस मजबूत हैसियत से माओइस्ट सेंटर के नेता परेशान हुए हैं। इसलिए उन्होंने राष्ट्रपति का पद भी यूएमएल को मिलने का विरोध शुरू कर दिया है। जबकि जब गठबंधन बना था, तब इसमें शामिल दलों में सहमति बनी थी कि यह पद यूएमएल को मिलेगा। माओइस्ट सेंटर के सचिव चक्रपाणी खनाल ने कहा है- ‘संवैधानिक परिषद में ऐसी स्थिति बनी है, जिससे प्रधानमंत्री पर यूएमएल अध्यक्ष का दबाव बन गया है। इससे केपी शर्मा ओली की हैसियत बहुत मजबूत हो गई है। अब अगर माओइस्ट सेंटर से उनकी पार्टी का कभी मतभेद पैदा हुआ, तो वे सरकार चलाने में समस्या खड़ी कर सकते हैं।’
खनाल ने अखबार काठमांडू पोस्ट से बातचीत में कहा कि अब सबका ध्यान राष्ट्रपति चुनाव पर टिक गया है। इस बीच यूएमएल की ऐसी हैसियत बन गई है, जिससे वह संवैधानिक संस्थाओं में नियुक्ति में निर्णायक भूमिका निभा सकेगी। खनाल ने कहा- ‘जहां तक सत्ता के केंद्रीकरण का सवाल है, तो ओली को उस मामले में महारत हासिल है।’
माओइस्ट सेंटर के एक अन्य पदाधिकारी ने आशंका जताई कि मजबूत हैसियत बनने के बाद ओली प्रधानमंत्री को अपनी पसंद के मुताबिक नियुक्तियां नहीं करने देंगे। उन्होंने कहा- ‘इसीलिए हम इस बात पर अड़े हुए हैं कि राष्ट्रपति पद को लेकर फिर से आम सहमति तैयार की जाए।’ इस नेता ने ध्यान दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा कार्यवाहक चीफ जस्टिस हरिकृष्ण कारकी भी यूएमएल से जुड़े रहे हैं। ओली जब 2015-16 प्रधानमंत्री थे, तब कारकी उनकी सरकार के अटार्नी जनरल रहे थे। संवैधानिक परिषद के पांच सदस्य तय हो गए हैं। विपक्ष के नेता के बारे में अभी निर्णय होना है। नेपाली कांग्रेस अभी तक इस बारे में फैसला नहीं कर पाई है।
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