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Myanmar military dictator Min Aung Hlaing claimed military is only force holding the country together
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Myanmar: अब बड़बोले दावे क्यों कर रहे हैं म्यांमार के सैनिक तानाशाह? देश में हालात हो रहे बदतर
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, यंगून
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Tue, 28 Mar 2023 01:27 PM IST
Myanmar: विश्लेषकों के मुताबिक जनरल हलायंग ने नया दावा सेना की भूमिका पर उठते सवालों को दरकिनार करने के लिए किया है। म्यांमार को किसी बाहरी ताकत से खतरा नहीं है। उसकी सीमा बांग्लादेश, चीन, भारत, लाओस और थाईलैंड से लगती है। लेकिन इनमें से किसी देश से उसकी दुश्मनी नहीं है...
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म्यांमार के सैनिक तानाशाह मिन आंग हलायंग ने इस हफ्ते दावा किया कि सेना ही वो ताकत है, जो देश को एकजुट रखे हुए है। पर्यवेक्षकों ने हलायंग के इस दावे पर हैरत जताई है। उनके मुताबिक जिस समय सेना के सत्ता लोभ और ज्यादतियों के कारण देश में गृह युद्ध तेज होता जा रहा है, उस समय हलायंग के इस दावे पर कम लोग ही यकीन करेंगे।
जानकारों ने ध्यान दिलाया है कि फरवरी 2021 में सत्ता पर कब्जा जमाने के बाद जनरल हलायंग ने देश के सामने जो पांच सूत्री रोडमैप रखा था, उसका पालन करने में सैनिक शासन पूरी तरह नाकाम रहा है। जनरल हलायंग ने कहा था कि उनकी इस योजना का मकसद देश में शांति कायम करना और सभी नागरिकों की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करना था। जबकि बीते दो साल में देश में हालात और खराब हुए हैं।
विश्लेषकों के मुताबिक जनरल हलायंग ने नया दावा सेना की भूमिका पर उठते सवालों को दरकिनार करने के लिए किया है। म्यांमार को किसी बाहरी ताकत से खतरा नहीं है। उसकी सीमा बांग्लादेश, चीन, भारत, लाओस और थाईलैंड से लगती है। लेकिन इनमें से किसी देश से उसकी दुश्मनी नहीं है। ऐसे में सेना के लिए अपना महत्त्व बताने के लिए आंतरिक स्थिरता और लोगों की समृद्धि में अपनी भूमिका बताना जरूरी हो गया है।
म्यांमार 1948 में ब्रिटिश शासन से आजाद हुआ था। तब से देश के बहुसंख्यक बामर समुदाय और अल्पसंख्यक समुदायों में तनाव रहा है। म्यांमार की सेना में ज्यादातर अफसर बामर समुदाय से आते हैं। आरोप है कि सीमाई इलाकों में रहने वाले नस्लीय अल्पसंख्यक समुदायों से तनाव और टकराव को जारी रखने में इन अफसरों की खास भूमिका रही है। देश पर अपने नियंत्रण को वाजिब ठहराने के लिए नस्लीय अल्पसंख्यकों के कथित अलगाववाद का तर्क देते रहे हैं। जनरल हलायंस अब इस दलील को नए स्तर पर ले गए हैं।
वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम में छपी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि नस्लीय अल्पसंख्यक समुदायों के साथ टकराव इस समय जितना तीखा है, उतना पिछले 75 साल में कभी नहीं रहा। बीते तीन मार्च को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त के कार्यालय ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें देश के उत्तर-पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम क्षेत्रों में सैनिक शासन की तरफ से अपनाए जा रहे तरीकों की कड़ी निंदा की गई। उच्चायुक्त वॉल्कर तुर्क ने कहा- जनरलों ने विपक्ष को खत्म करने की कोशिश में पूरा इलाका जला डालने की नीति अपनाई है। सेना को पूरा अभयदान मिला हुआ है, जिससे वह अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का खुला उल्लंघन कर रही है।
इस बीच यंगून में तैनात कुछ विदेशी राजनयिकों ने बताया है कि गृह युद्ध में सेना को रोज औसतन अपने 15 जवानों की बलि च़ढ़ानी पड़ रही है। यानी एक साल में लगभग 5,500 जवान मारे गए गए हैं। उधर सेना में नए जवानों की भर्ती में काफी मुश्किलें पेश आ रही हैं। जबकि सेना की तैनाती की जरूरत लगातार बढ़ती जा रही है। पूरे देश के शहरी क्षेत्रों में जगह-जगह चेकप्वाइंट बनाए गए हैं, जहां सेना के जवानों की तैनाती होती है।
इन चुनौतियों का सेना के पास कोई जवाब नहीं है। इसी कारण सेना दिवस पर जनरल हलायंग ने ऐसा दावा किया, जिस पर देश के आम लोगों के लिए यकीन करना कठिन है।
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