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विस्तार
अब तक के वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर आमधारणा यही है कि मीथेन वातावरण में गर्मी पैदा करने वाली ग्रीनहाउस गैस है। लेकिन, हाल ही में हुए एक शोध में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि मीथेन वातावरण के शीतलीकरण में भी मददगार है। नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित शोधपत्र में बताया गया है कि मीथेन ताप के प्रभाव को 30 फीसदी तक कम करती है।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, रिवरसाइड के शोधकर्ता, रोबर्ट एलेन बताते हैं कि मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में एक तरह के कंबल का काम करती हैं, जो लॉन्गवेव एनर्जी के रूप में पृथ्वी के ताप को अंतरिक्ष में बिखरने से रोकती हैं। अब तक यही मान जाता रहा है कि इस प्रभाव की वजह से पृथ्वी दिनों-दिन गर्म होती जा रही है।
लेकिन, शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि मीथेन जिस तरह से लॉन्गवेव एनर्जी को पृथ्वी के वातावरण से बाहर जाने से रोकती हैं, ठीक वैसे ही सूर्य से आने वाली शॉर्टवेव एनर्जी को अवशोषित कर ताप प्रभाव को 30 फीसदी तक कम कर देती हैं। इसके अलावा बारिश की मात्रा को भी बढ़ाती रही।
ऊर्जा का संतुलन बनाए रखने में मदद
नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर और यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के शोधकर्ता व अध्ययन के सह-लेखक रेयान क्रेमर कहते हैं, मीथेन वातावरण ऊर्जा का संतुलन बनाए रखती है। यह सूर्य से आने वाली शॉर्टवेव एनर्जी को रोककर वातावरण में अवांछित ताप को रोकती है। संपूर्ण सौर विकिरण को भी कम करती है। हालांकि, इससे बारिश भी कम होने लगती है।
नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर और यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के शोधकर्ता व अध्ययन के सह-लेखक रेयान क्रेमर कहते हैं, मीथेन वातावरण ऊर्जा का संतुलन बनाए रखती है। यह सूर्य से आने वाली शॉर्टवेव एनर्जी को रोककर वातावरण में अवांछित ताप को रोकती है। संपूर्ण सौर विकिरण को भी कम करती है। हालांकि, इससे बारिश भी कम होने लगती है।
आर्कटिक : बर्फ पिघलते ही वातारण में घुल रहे मीथेन
शोधकर्ता मीथेन और इसके प्रभावों को गहराई से समझने में जुटे हैं, क्योंकि आर्कटिक की बर्फ पिघलने के साथ ही वहां जमी मीथेन पर वातावरण में घुलने लगी है। ऐसे में जैसे इसका स्तर बढ़ेगा, तो इसके क्या प्रभाव हो सकते हैं यह जानना बेहद जरूरी है। नतीजे विस्तृत कंप्यूटर मॉडल बनाकर निकाले गए हैं।
इन्सानों के लिए नुकसानदेह
शोधकर्ता का कहना है कि मीथेन सहित जितनी भी ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा वातावरण में जितनी ज्यादा बढ़ेगी, पृथ्वी का तापमान भी उतना ही ज्यादा बढ़ता जाएगा। जबकि, इस ग्रह को इन्सानों के लिए रहने लायक बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि औद्योगिकीकरण से दौर से तापमान को दो डिग्री सेल्सियस नीचे बनाए रखा जाए।