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नेपाल में पलटी बाजी : केपी शर्मा ओली फिर बने प्रधानमंत्री, विपक्ष नहीं हासिल कर सका बहुमत
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काठमांडो
Published by: संजीव कुमार झा
Updated Thu, 13 May 2021 10:40 PM IST
सार
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बता दें कि राष्ट्रपति बिद्यादेवी भंडारी ने ओली सरकार के विश्वास मत हासिल नहीं कर पाने के बाद विपक्ष दलों को गुरुवार तक नई सरकार का गठन करने के लिए आमंत्रित किया था।
नेपाल में सियासी संकट के बीच एक बार फिर से बाजी पलट गई है। संसद में विश्वासमत हासिल नहीं कर पाने के बावजूद केपी शर्मा ओली ने फिर से प्रधानमंत्री की कुर्सी हासिल कर ली। जानकारी के मुताबिक गुरुवार को विपक्ष बहुमत हासिल करने में असफल रहा, जिसके चलते ओली को फिर से प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया गया।
बता दें कि राष्ट्रपति बिद्यादेवी भंडारी ने ओली सरकार के विश्वास मत हासिल नहीं कर पाने के बाद विपक्ष दलों को गुरुवार तक नई सरकार का गठन करने के लिए आमंत्रित किया था। वहीं दूसरी ओर ओली को उम्मीद थी कि उनकी पार्टी बहुमत हासिल कर लेगी।
गौरतलब है कि 10 मई यानी बीते सोमवार को राष्ट्रपति बिद्यादेवी भंडारी के निर्देश पर संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा के आहूत विशेष सत्र में प्रधानमंत्री ओली की ओर से पेश विश्वास प्रस्ताव के समर्थन में उन्हें केवल 93 मत मिले, जबकि 124 सदस्यों ने इसके खिलाफ मत दिया था।
ओली को 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में विश्वासमत जीतने के लिए 136 मतों की जरूरत थी, क्योंकि चार सदस्य इस समय निलंबित हैं। बता दें कि पुष्पकमल दहल 'प्रचंड' नीत नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी केंद्र) द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद ओली सरकार अल्पमत में आ गई थी।
इसलिए पीएम ओली को निचले सदन में सोमवार को बहुमत साबित करना था। वहीं सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) ने अपने सभी सांसदों को व्हिप जारी कर प्रधानमंत्री के पक्ष में मतदान का अनुरोध किया था, लेकिन ओली को सफलता नहीं मिल सकी।
कुछ इस तरह से रहा ओली का राजनीतिक सफर
नेपाल के वयोवृद्ध वामपंथी नेता केपी शर्मा ओली 2018 के संसदीय चुनाव में वाम गठबंधन की भारी जीत के बाद दूसरी बार प्रधानमंत्री बने थे। तब उन्होंने देश में राजनीतिक स्थिरता की उम्मीद की थी लेकिन उनकी अपनी कोशिशों से भी यह संभव न हो सका।
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सियासी उथल-पुथल के चलते वे अर्श से फर्श पर आ गए। नेपाल की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी में खींचतान के बाद ओली द्वारा आश्चर्यजनक रूप से दिसंबर में संसद को भंग करने की अनुशंसा से देश एक बार फिर राजनीतिक संकट में चला गया और पार्टी टूट गई।
14 साल तक जेल में रहे
ओली किशोरावस्था में ही छात्र कार्यकर्ता के रूप में राजनीति से जुड़े थे और राजशाही का विरोध करने की वजह से 14 साल तक जेल में रहे। वह वर्ष 2018 में वाम गठबंधन के संयुक्त प्रत्याशी के तौर पर दूसरी बार प्रधानमंत्री बने।
प्रचंड की पार्टी के साथ किया विलय
सीपीएन (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ नीत सीपीएन (माओवादी केंद्र) ने वर्ष 2017 के चुनाव में प्रतिनिधि सभा में बहुमत हासिल करने के साथ-साथ सात में से छह प्रांतों में जीत दर्ज की थी। दोनों पार्टियां का मई 2018 में औपचारिक रूप से विलय हो गया था।
भारत की खुलेआम की थी आलोचना
चीन की ओर झुकाव रखने वाले 69 वर्षीय ओली इससे पहले 11 अक्तूबर 2015 से तीन अगस्त 2016 तक नेपाल के प्रधानमंत्री रहे, तब भारत के साथ नेपाल के रिश्तों में तल्खी थी। पहले कार्यकाल में ओली ने सार्वजनिक रूप से भारत की आलोचना करते हुए नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने और उनकी सरकार को सत्ता से बेदखल करने का आरोप लगाया था। हालांकि, उन्होंने दूसरे कार्यकाल में आर्थिक समृद्धि के लिए भारत के साथ मिलकर आगे बढ़ने का वादा किया था।
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