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Mount Everest: सत्तर साल में जलवायु परिवर्तन ने कितना बदल दिया है माउंट एवरेस्ट को!

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काठमांडो Published by: Harendra Chaudhary Updated Tue, 30 May 2023 05:47 PM IST
सार

विशेषज्ञों के मुताबिक गुजरे 60 वर्षों में एवरेस्ट के चारों तरफ मौजूद 79 ग्लेशियरों की मोटाई 100 मीटर घट चुकी है। साल 2009 के बाद उनका आकार घटने की रफ्तार दो गुनी हो गई है। इनमें मशहूर खुम्बु ग्लेशियर भी है, जहां से अधिकतर पर्वतारोही एवरेस्ट पर चढ़ने का अपना अभियान शुरू करते हैं...

How much climate change has changed Mount Everest in seventy years!
Mount Everest - फोटो : Agency

विस्तार
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माउंट एवरेस्ट पर एडमंड हिलेरी और तेंजिंग नोर्गे के चढ़ने की 70वीं सालगिरह पर दुनिया की इस सबसे ऊंची चोटी को प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से हो रहे नुकसान पर दुनिया का ध्यान गया है। पर्यावरणविदों का कहना है कि एवरेस्ट पर जिस तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं, उन्हें भविष्य में सुधारना संभव नहीं रह जाएगा।

एवरेस्ट और हिंदुकुश हिमालय के अन्य पर्वत साढ़े तीन हजार किलोमीटर इलाके में फैले हुए हैं। ये पर्वत आठ देशों की सीमा से गुजरते हैं। इन सब पर ग्लोबल वॉर्मिंग का भारी असर देखने को मिला है। इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) के मुताबिक अगर कार्बन गैसों का उत्सर्जन अपने मौजूदा स्तर पर ही बना रहा, तो अगले 70 साल में इस क्षेत्र के दो तिहाई ग्लेशियर पिघल चुके होंगे।

विशेषज्ञों के मुताबिक गुजरे 60 वर्षों में एवरेस्ट के चारों तरफ मौजूद 79 ग्लेशियरों की मोटाई 100 मीटर घट चुकी है। साल 2009 के बाद उनका आकार घटने की रफ्तार दो गुनी हो गई है। इनमें मशहूर खुम्बु ग्लेशियर भी है, जहां से अधिकतर पर्वतारोही एवरेस्ट पर चढ़ने का अपना अभियान शुरू करते हैं। माउंट एवरेस्ट पर सबसे पहले पहुंचने वाले न्यूजीलैंड के हिलेरी और नेपाल के नोर्गे ने भी अपना अभियान यहीं से शुरू किया था।

हिंदुकुश क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का असर तेजी से बढ़ा है। आईसीआईएमओडी के महानिदेशक पेमा ग्यामत्शो ने नेपाल के अखबार द हिमालयन टाइम्स को बताया- ‘पूरे हिंदुकुश हिमालय में ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरनाक प्रभाव काफी समय महसूस हो रहे हैं। गर्म हवाओं, सूखे, प्राकृतिक आपदाओं, अचानक बर्फबारी और ग्लेशियरों के पिघलने का रिकॉर्ड बनता जा रहा है। इस क्षेत्र में रहने वाले दो अरब लोगों की जिंदगी और आजीविका को बचाने के लिए दुनिया को तुरंत ठोस कदम उठाने होंगे।’

हिंदुकुश पर्वतीय क्षेत्र में 24 करोड़ लोग रहते हैं। ये लोग पानी के पर्वतीय स्रोतों पर निर्भर हैं। विश्व प्रसिद्ध एथलीट और पर्वतारोही किलियन जॉर्नेट ने द हिमालयन टाइम्स से कहा- ‘एवरेस्ट बहुत तेजी से बदल रहा है। मैंने इसे अपनी आंखों से देखा है कि कैसे जलवायु परिवर्तन का पहाड़ों पर असर हुआ है। ग्लेशियरों के पिघलने के कारण पर्वतारोहियों के लिए पहाड़ अधिक खतरनाक होते जा रहे हैं। उससे भी ज्यादा अहम बात यह है कि इसका स्थानीय संसाधनों पर निर्भर अरबों लोगों की जिंदगी पर खराब असर हो रहा है।’

आईसीआईएमओडी से जुड़े ग्लेशियर विशेषज्ञ तेंजिंग चोग्याल ने कहा- ‘हम जैसे जो लोग पहाड़ों का अध्ययन करते हैं, यहीं रहते हैं और पहाड़ों पर चढ़ते भी हैं, उन्होंने अपनी आंखों से यहां हो रहे बदलावों को देखा है। दुनिया के दूसरे हिस्सों में हजारों किलोमीटर दूर जो काम किए जाते हैं, उनका असर यहां दिखता है।’

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माउंटेन रिसर्च इनिशिएटिव (एमआरआई) की कार्यकारी निदेशक केरोलीना एल्डर ने हिमालयन टाइम्स से कहा- ‘जब हम माउंट एवरेस्ट विजय की 70वीं सालगिरह मना रहे हैं, तब हमें यह अवश्य याद रखना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन का हल निकालने के मामले में हमें बहुत बड़ी ऊंचाइयां अभी चढ़नी हैं।’

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