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how does a country defaults know expert opinion in context of sri lanka crisis
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Sri Lanka Crisis: कोई देश डिफॉल्ट करने पर मजबूर क्यों होता है? जानिए विश्लेषकों की क्या है राय
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, कोलंबो
Published by: गुलाम अहमद
Updated Mon, 30 Jan 2023 05:10 PM IST
सार
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वॉशिंगटन स्थित थिंक टैंक इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फाइनेंस में डिप्टी चीफ इकॉनमिस्ट सर्गई लनाउ ने कोलंबो में एक सेमीनार में कहा कि श्रीलंका में जीडीपी की तुलना में कर्ज का बोझ 120 प्रतिशत हो गया। इस पर वह डिफॉल्ट करने को मजबूर हो गया। लेकिन लगभग सात साल पहले इटली पर भी इतना ही कर्ज चढ़ गया था। लेकिन वह डिफॉल्टर होने से बच गया था।
हाल में दुनिया के जो देश डिफॉल्ट (कर्ज चुकाने में अक्षम) करने पर मजबूर हुए, उनकी ऋण संबंधी परिस्थितियां अलग-अलग थीं। कई ऐसे भी देश हैं, जिन पर कर्ज का बोझ श्रीलंका से ज्यादा है, लेकिन वे डिफॉल्टर होने से बचे हुए हैं। यह बात डिफॉल्टर हुए या डिफॉल्ट करने का खतरा झेल रहे देशों का अध्ययन करने वाले एक अमेरिकी विश्लेषक ने कही है।
वॉशिंगटन स्थित थिंक टैंक इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फाइनेंस में डिप्टी चीफ इकॉनमिस्ट सर्गई लनाउ ने कोलंबो में एक सेमीनार में कहा कि श्रीलंका में जीडीपी की तुलना में कर्ज का बोझ 120 प्रतिशत हो गया। इस पर वह डिफॉल्ट करने को मजबूर हो गया। लेकिन लगभग सात साल पहले इटली पर भी इतना ही कर्ज चढ़ गया था। लेकिन वह डिफॉल्टर होने से बच गया था।
श्रीलंका अब अपने कर्ज के बोझ को घटाने की कोशिश में जुटा हुआ है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने उसे कर्ज देने के बदले यह शर्त लगाई है कि साल 2032 तक वह जीडीपी की तुलना में अपने कर्ज का अनुपात घटा कर 95 प्रतिशत तक ले आए। पिछले साल जिन देशों ने डिफॉल्ट किया, उनमें अफ्रीकी देश घाना भी शामिल है। उसका जीडीपी की तुलना में ऋण अनुपात 90 प्रतिशत ही था। अब उसे 2028 तक जीडीपी-ऋण अनुपात को घटा कर 60 प्रतिशत पर लाने की सलाह दी गई है। लनाउ ने इन उदाहरणों का जिक्र करते हुए कहा कि डिफॉल्ट करने की स्थितियों को लेकर कोई सामान्य नियम नहीं बताया जा सकता।
1970-80 के दशक तक डिफॉल्ट कोई समस्या नहीं थी
विशेषज्ञों के मुताबिक आईएमएफ ने डिफॉल्ट के बारे में एक फ्रेमवर्क तैयार किया था। लेकिन गुजरे वर्षों में उसे कई बार बदला गया है। सेमीनार में विशेषज्ञों ने बताया कि 1970-80 के दशक तक डिफॉल्ट को कोई समस्या नहीं माना जाता था। खुद आईएमएफ ने अपने एक दस्तावेज में स्वीकार किया है कि 1970 के दशक में किसी सरकार के डिफॉल्ट करने को बड़ी समस्या नहीं समझा जाता था।
इस समझ में बदलाव 1990 के दशक में दुनिया भर में फैलाई गई नई आर्थिक नीतियों के साथ आया। तभी यह समझ भी दुनिया भर में फैली कि मुद्रा की कीमत क्षमता ज्यादा होने के कारण किसी देश को डिफॉल्ट करना पड़ता है। इसलिए सेमीनार में विशेषज्ञों ने श्रीलंका सरकार को आगाह किया कि वह ऐसे किसी नुस्खे में यकीन न करे, जिसे मौजूदा आर्थिक संकट का रामबाण इलाज बताया गया हो।
2000-01 में 100 प्रतिशत से ऊपर था श्रीलंका में जीडीपी-ऋण अनुपात
श्रीलंका में जीडीपी-ऋण अनुपात साल 2000-01 में 100 प्रतिशत से ऊपर हो गया था। लेकिन तब श्रीलंका सरकार कर्ज चुकाती रही, क्योंकि उसने प्राइवेट बॉन्ड बाजार से पैसे ने नहीं उठाए थे। विशेषज्ञों ने कहा कि डिफॉल्ट की मौजूदा समस्या यूरो बॉन्ड्स जैसे सिस्टम से खड़ी हुई है, जिनमें सरकारें विदेशी निजी संस्थानों से ऊंचे ब्याज दर पर कर्ज लेती हैं। सेमीनार में इस बात उल्लेख किया गया कि लैटिन अमेरिका में कई ऐसे देश भी डिफॉल्टर हुए हैं, जिहां जीडीपी-ऋण का अनुपात 20 से 30 प्रतिशत था। इसलिए जीडीपी-ऋण अनुपात सुधरने भर से श्रीलंका की समस्या हल हो जाएगी, यह मानना निराधार है।
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