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एक समय था, जब कहा जाता था कि ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज कभी नहीं डूबता है। यूनाइटेड किंगडम ने लगभग पूरी दुनिया में कब्जा किया था। भारत भी उसका एक उपनिवेश था। 1947 में हमारा देश तो ब्रिटिश चंगुल से आजाद हो गया, पर कई देश आज भी उसके कब्जे में हैं। सबसे अंत में हांगकांग को ब्रिटेन ने आजाद किया है। अब आयरलैंड भी आजादी की मांग कर रहा है।
भारत पर करीब 200 साल तक कब्जा करने वाला ब्रिटेन आज एक बार फिर चर्चा में है। ऐसा इसलिए क्योंकि ब्रिटेन के सरकारी मीडिया ने कश्मीर को भारत द्वारा "अधिकृत" बताया है।
जिसके बाद से ही उत्तरी आयरलैंड का नाम लिया जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये वो स्थान है, जिसपर दशकों से ब्रिटेन ने कब्जा किया हुआ है। उत्तरी आयरलैंड की समस्या पर एक बार फिर पूरे विश्व की नजर बनी हुई है।
दरअसल इस मौजूदा समस्या की जड़ इतिहास में छिपी है। उत्तरी आयरलैंड के संघर्ष की कहानी की शुरुआत होती है साल 1920-21 से। ये वो समय था जब कई शाताब्दियों तक ब्रिटेन के शासन में रहने के बाद आयरलैंड का बंटवारा किया गया।
कैसे हुआ बंटवारा?
इस बंटवारे को धर्म के आधार पर किया गया। जैसे ब्रिटेन के साथ रहने वाले आयरलैंड (उत्तरी आयरलैंड) में ईसाइयों के प्रोटेस्टेंट समुदाय के लोगों का बहुमत था। वहीं अलग देश बने आयरलैंड गणराज्य में कैथोलिक समुदाय का बहुमत था।
दो तरह के लोग
वर्तमान समय में उत्तरी आयरलैंड में रहने वाले अल्पसंख्यक कैथोलिक समुदाय के लोग उत्तरी आयरलैंड को आयरलैंड गणराज्य में मिलाना चाहते हैं, यही वजह है कि ऐसे लोगों को राष्ट्रवादी कहकर संबोधित किया जाता है। वहीं बहुसंख्यक प्रोटेस्ट समुदाय के लोग चाहते हैं कि उत्तरी आयरलैंड का ब्रिटेन में विलय हो जाए, इन लोगों को विलयवादी कहा जाता है।
छह काउंटी पर अभी तक ब्रिटेन का कब्जा
साल 1916 में कई शाताब्दियों तक ब्रिटेन के कब्जे में रहने के बाद आयरलैंड में विद्रोह हुआ। जिसके बाद साल 1920-21 में आयरलैंड का बंटवारा हुआ। तब ब्रिटेन ने आयरलैंड की 32 में से केवल 26 काउंटी को ही आजाद किया जबकि बाकी छह काउंटी पर आज भी कब्जा किया हुआ है।
यही छह काउंटी उत्तरी आयरलैंड के नाम से जानी जाती हैं। हालांकि ब्रिटेन ने उत्तरी आयरलैंड की राजधानी बेलफास्ट के स्टॉरमांट में 1920 में संसद का निर्माण किया था और सरकार को अधिकतर मामलों में अधिकार दिए गए। लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। ब्रिटेन की वेस्टमिनस्टर संसद में 1921 से 1972 तक उत्तरी आयरलैंड से सदस्य चुनकर जाते रहे थे। लेकिन हुआ ये कि स्टॉरमांट स्थित सरकार स्वशासी सरकार के रूप में काम करती रही।
ब्रिटेन ने बंटवारा इस बात को ध्यान में रखते हुए किया था, कि उत्तरी आयरलैंड पर उसका कब्जा हमेशा बना रहे। यानी उत्तरी आयरलैंड में प्रोटेस्टेंट लोगों यानी विलयवादी का बहुमत बना रहे। यही वजह है कि यहां उत्तरी आयरलैंड के सभी अधिकार विलयवादी पार्टी के हाथों में आ गए।
वहीं अल्पसंख्यक वाला राष्ट्रवादी समुदाय पूरे आयरलैंड को अलग देश मानता है, जिसमें उत्तरी आयरलैंड भी शामिल हो। यानी उत्तरी आयरलैंड को एक तरह से दो विचारधाराओं में बांटा गया। इसे विभाजन और ऐतिहासिक के साथ-साथ धार्मिक भी कहा जाता है।
बंटवारे के बाद कब क्या हुआ
- 800 साल पहले ब्रिटेन ने आयरलैंड पर कब्जा किया था।
- 1969 में उत्तरी आयरलैंड में नागरिक अधिकारों के लिए अभियान शुरु हुए। आरोप लगाए गए कि अल्पसंख्यक कैथोलिक समुदाय दोहरी जिंदगी जी रहा है।
- राजनीतिक हिंसा की शुरुआत हुई और प्रोविजनल आईआरए (आइरिश रिपब्लिकन आर्मी) अस्तित्व में आई।
- 1970 में ये आर्मी दो भागों में बांटी गई- अधिकृत आईआरए और प्रोविजनल आईआरए।
- 1970 में उत्तरी आयरलैंड की संसद स्थगित हुई और ब्रिटेन ने यहां के सारे काम अपने अधिकार में ले लिए।
- 1994 तक प्रोविजनल आईआरए (जिसे अब आईआरए कहा जाता है) ने ब्रिटेन के खिलाफ अभियान चलाया।
- ब्रिटेन का ये नियंत्रण 1998 तक चला और फिर उत्तरी आयरलैंड के भविष्य के लिए एक समझौता हुआ।
- इस समझौते को गुड फ्राइडे या बेलफास्ट समझौते का नाम दिया गया।
क्या है ये समझौता?
ये समझौता दस अप्रैल, 1998 शुक्रवार के दिन आयरलैंड और ब्रिटेन की सरकार के बीच हुआ। दोनों सरकारों ने इसपर दस्तखत किए और समझौते को फ्राइडे या बेलफास्ट समझौते का नाम दिया गया। इस समझौते में नए संस्थानों और संवैधानिक बदलाव की स्थापना पर सहमति बनी।
समझौते के तीन प्रमुख हिस्से
फ्राइडे या बेलफास्ट समझौते के तीन प्रमुख हिस्से थे। समझौते के पहले हिस्से में उत्तरी आयरलैंड की आंतरिक संरचना पर जोर दिया गया। इसके दूसरे हिस्से में उत्तरी आयरलैंड के रिपब्लिक ऑफ आयरलैंड से रिश्तों का जिक्र किया गया। इसके साथ ही तीसरे हिस्से में उत्तरी आयरलैंड के ब्रिटेन से रिश्तों पर ध्यान दिया गया है। इस हिस्से में संवैधानिक मुद्दों, हथियारों की रोक, अधिकारों, नीतियों, सुरक्षा और कैदियों के बारे में विस्तार से बताया गया है।
सार
- ब्रिटेन ने दशकों से उत्तरी आयरलैंड पर कब्जा किया हुआ है।
- उत्तरी आयरलैंड के संघर्ष की कहानी की शुरुआत होती है साल 1920-21 से।
- वर्तमान समय में उत्तरी आयरलैंड में रहने वाले अल्पसंख्यक कैथोलिक समुदाय के लोग उत्तरी आयरलैंड को आयरलैंड गणराज्य में मिलाना चाहते हैं।
- ब्रिटेन ने आयरलैंड की 32 में से केवल 26 काउंटी को ही आजाद किया जबकि बाकी छह काउंटी पर आज भी कब्जा किया हुआ है।
विस्तार
एक समय था, जब कहा जाता था कि ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज कभी नहीं डूबता है। यूनाइटेड किंगडम ने लगभग पूरी दुनिया में कब्जा किया था। भारत भी उसका एक उपनिवेश था। 1947 में हमारा देश तो ब्रिटिश चंगुल से आजाद हो गया, पर कई देश आज भी उसके कब्जे में हैं। सबसे अंत में हांगकांग को ब्रिटेन ने आजाद किया है। अब आयरलैंड भी आजादी की मांग कर रहा है।
भारत पर करीब 200 साल तक कब्जा करने वाला ब्रिटेन आज एक बार फिर चर्चा में है। ऐसा इसलिए क्योंकि ब्रिटेन के सरकारी मीडिया ने कश्मीर को भारत द्वारा "अधिकृत" बताया है।
जिसके बाद से ही उत्तरी आयरलैंड का नाम लिया जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये वो स्थान है, जिसपर दशकों से ब्रिटेन ने कब्जा किया हुआ है। उत्तरी आयरलैंड की समस्या पर एक बार फिर पूरे विश्व की नजर बनी हुई है।
दरअसल इस मौजूदा समस्या की जड़ इतिहास में छिपी है। उत्तरी आयरलैंड के संघर्ष की कहानी की शुरुआत होती है साल 1920-21 से। ये वो समय था जब कई शाताब्दियों तक ब्रिटेन के शासन में रहने के बाद आयरलैंड का बंटवारा किया गया।
कैसे हुआ बंटवारा?
इस बंटवारे को धर्म के आधार पर किया गया। जैसे ब्रिटेन के साथ रहने वाले आयरलैंड (उत्तरी आयरलैंड) में ईसाइयों के प्रोटेस्टेंट समुदाय के लोगों का बहुमत था। वहीं अलग देश बने आयरलैंड गणराज्य में कैथोलिक समुदाय का बहुमत था।
दो तरह के लोग
वर्तमान समय में उत्तरी आयरलैंड में रहने वाले अल्पसंख्यक कैथोलिक समुदाय के लोग उत्तरी आयरलैंड को आयरलैंड गणराज्य में मिलाना चाहते हैं, यही वजह है कि ऐसे लोगों को राष्ट्रवादी कहकर संबोधित किया जाता है। वहीं बहुसंख्यक प्रोटेस्ट समुदाय के लोग चाहते हैं कि उत्तरी आयरलैंड का ब्रिटेन में विलय हो जाए, इन लोगों को विलयवादी कहा जाता है।
छह काउंटी पर अभी तक ब्रिटेन का कब्जा
साल 1916 में कई शाताब्दियों तक ब्रिटेन के कब्जे में रहने के बाद आयरलैंड में विद्रोह हुआ। जिसके बाद साल 1920-21 में आयरलैंड का बंटवारा हुआ। तब ब्रिटेन ने आयरलैंड की 32 में से केवल 26 काउंटी को ही आजाद किया जबकि बाकी छह काउंटी पर आज भी कब्जा किया हुआ है।
यही छह काउंटी उत्तरी आयरलैंड के नाम से जानी जाती हैं। हालांकि ब्रिटेन ने उत्तरी आयरलैंड की राजधानी बेलफास्ट के स्टॉरमांट में 1920 में संसद का निर्माण किया था और सरकार को अधिकतर मामलों में अधिकार दिए गए। लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। ब्रिटेन की वेस्टमिनस्टर संसद में 1921 से 1972 तक उत्तरी आयरलैंड से सदस्य चुनकर जाते रहे थे। लेकिन हुआ ये कि स्टॉरमांट स्थित सरकार स्वशासी सरकार के रूप में काम करती रही।
ब्रिटेन ने बंटवारा इस बात को ध्यान में रखते हुए किया था, कि उत्तरी आयरलैंड पर उसका कब्जा हमेशा बना रहे। यानी उत्तरी आयरलैंड में प्रोटेस्टेंट लोगों यानी विलयवादी का बहुमत बना रहे। यही वजह है कि यहां उत्तरी आयरलैंड के सभी अधिकार विलयवादी पार्टी के हाथों में आ गए।
वहीं अल्पसंख्यक वाला राष्ट्रवादी समुदाय पूरे आयरलैंड को अलग देश मानता है, जिसमें उत्तरी आयरलैंड भी शामिल हो। यानी उत्तरी आयरलैंड को एक तरह से दो विचारधाराओं में बांटा गया। इसे विभाजन और ऐतिहासिक के साथ-साथ धार्मिक भी कहा जाता है।
बंटवारे के बाद कब क्या हुआ
- 800 साल पहले ब्रिटेन ने आयरलैंड पर कब्जा किया था।
- 1969 में उत्तरी आयरलैंड में नागरिक अधिकारों के लिए अभियान शुरु हुए। आरोप लगाए गए कि अल्पसंख्यक कैथोलिक समुदाय दोहरी जिंदगी जी रहा है।
- राजनीतिक हिंसा की शुरुआत हुई और प्रोविजनल आईआरए (आइरिश रिपब्लिकन आर्मी) अस्तित्व में आई।
- 1970 में ये आर्मी दो भागों में बांटी गई- अधिकृत आईआरए और प्रोविजनल आईआरए।
- 1970 में उत्तरी आयरलैंड की संसद स्थगित हुई और ब्रिटेन ने यहां के सारे काम अपने अधिकार में ले लिए।
- 1994 तक प्रोविजनल आईआरए (जिसे अब आईआरए कहा जाता है) ने ब्रिटेन के खिलाफ अभियान चलाया।
- ब्रिटेन का ये नियंत्रण 1998 तक चला और फिर उत्तरी आयरलैंड के भविष्य के लिए एक समझौता हुआ।
- इस समझौते को गुड फ्राइडे या बेलफास्ट समझौते का नाम दिया गया।
क्या है ये समझौता?
ये समझौता दस अप्रैल, 1998 शुक्रवार के दिन आयरलैंड और ब्रिटेन की सरकार के बीच हुआ। दोनों सरकारों ने इसपर दस्तखत किए और समझौते को फ्राइडे या बेलफास्ट समझौते का नाम दिया गया। इस समझौते में नए संस्थानों और संवैधानिक बदलाव की स्थापना पर सहमति बनी।
समझौते के तीन प्रमुख हिस्से
फ्राइडे या बेलफास्ट समझौते के तीन प्रमुख हिस्से थे। समझौते के पहले हिस्से में उत्तरी आयरलैंड की आंतरिक संरचना पर जोर दिया गया। इसके दूसरे हिस्से में उत्तरी आयरलैंड के रिपब्लिक ऑफ आयरलैंड से रिश्तों का जिक्र किया गया। इसके साथ ही तीसरे हिस्से में उत्तरी आयरलैंड के ब्रिटेन से रिश्तों पर ध्यान दिया गया है। इस हिस्से में संवैधानिक मुद्दों, हथियारों की रोक, अधिकारों, नीतियों, सुरक्षा और कैदियों के बारे में विस्तार से बताया गया है।