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De-dollarization: Whether the dollar will break or not - JP Morgan's report again intensified the debate
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De-dollarization: डॉलर का शिकंजा टूटेगा या नहीं- जेपी मॉर्गन की रिपोर्ट से फिर तेज हुई ये बहस
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, वॉशिंगटन
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Wed, 07 Jun 2023 04:33 PM IST
विशेषज्ञों के मुताबिक जेपी मॉर्गन की राय इस समय विश्व कारोबार में दिख रहे रुझानों के अनुरूप है। फिलहाल विश्व कारोबार में 88 फीसदी भुगतान डॉलर में हो रहा है। पिछले दो दशकों से दुनिया में 40 से 50 फीसदी ट्रेड इनवॉसिंग (अंतरराष्ट्रीय भुगतान चालान) डॉलर में होती रही है...
जिस समय विश्व व्यापार में अमेरिकी मुद्रा डॉलर के वर्चस्व का टूटने की चर्चा जोरों पर है, अमेरिका के जाने-माने बैंक जेपी मॉर्गन ने यह स्वीकार किया है कि डॉलर के इस्तेमाल से बचते हुए अंतरराष्ट्रीय कारोबार करने की कोशिश में जुटे देशों की संख्या बढ़ रही है।
अमेरिका के कई मशहूर अर्थशास्त्रियों और वित्तीय बाजार के जानकारों ने हाल के हफ्तों में डॉलर का वर्चस्व टूटने की चल रही चर्चा को खारिज करने की कोशिश की है। इन अर्थशास्त्रियों में नोबेल पुरस्कार विजेता पॉल क्रूगमैन भी हैं। इन अर्थशास्त्रियों का दावा है कि डॉलर का प्रसार इतना ज्यादा है और इसका इस्तेमाल लोगों की आदत में इस तरह शुमार हो चुका है कि डॉलर के अलावा किसी मुद्रा के जरिए अंतरराष्ट्रीय कारोबार का प्रचलित होना संभव नहीं है।
पर्यवेक्षकों के मुताबिक जेपी मॉर्गन के ताजा निष्कर्ष से इस धारणा को चोट पहुंची है। वैसे जेपी मॉर्गन ने भी कहा है कि निकट भविष्य में डॉलर का वर्चस्व टूटने की संभावना नहीं है। लेकिन उसने यह भी कहा है कि डी-डॉलराइजेशन की प्रक्रिया (डॉलर का इस्तेमाल छोड़ने की कोशिश) शुरू हो गई है।
जेपी मॉर्गन ने अपनी रिपोर्ट इस सोमवार को जारी की। इस रिपोर्ट ने अमेरिका में डी-डॉलराइजेशन की बहस को नए सिरे से खड़ा कर दिया है। जेपी मॉर्गन के विशेषज्ञों ने कहा है- ‘डी-डॉलराइजेशन के कुछ संकेत उभर रहे हैं। यह रुझान जारी रहने की संभावना है, लेकिन निकट भविष्य में अमेरिकी डॉलर अपना वर्चस्व कायम रखने में सफल बना रहेगा।’
विशेषज्ञों के मुताबिक जेपी मॉर्गन की राय इस समय विश्व कारोबार में दिख रहे रुझानों के अनुरूप है। फिलहाल विश्व कारोबार में 88 फीसदी भुगतान डॉलर में हो रहा है। पिछले दो दशकों से दुनिया में 40 से 50 फीसदी ट्रेड इनवॉसिंग (अंतरराष्ट्रीय भुगतान चालान) डॉलर में होती रही है। अभी इसमें कोई खास गिरावट दर्ज नहीं हुई है।
लेकिन विश्लेषकों के मुताबिक डी-डॉलराइजेशन की कोशिश पिछले साल यूक्रेन पर हमले के बाद से तेज हुई है। इसलिए संभव है कि अभी दिख रहे आंकड़ों के आधार पर बनाई गई समझ ठोस ना हो। इन विश्लेषकों के मुताबिक अमेरिकी डॉलर के सामने सबसे बड़ी चुनौती अमेरिका की अपनी अर्थव्यवस्था से पेश आ रही है। विश्व निर्यात में अमेरिका का हिस्सा गिर कर नौ फीसदी पर आ चुका है। उधर अमेरिका सरकार पर बढ़ते कर्ज, अर्थव्यवस्था में संभावित मंदी और महंगाई से डॉलर की हैसियत कमजोर पड़ने का अंदेशा गहरा रहा है।
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यूक्रेन युद्ध शुरू होने पर अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिया और उसे डॉलर में होने वाले भुगतान के सिस्टम से बाहर कर दिया। रूस की डॉलर में रखी गई 330 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा भी जब्त कर ली गई। जानकारों के मुताबिक इससे विभिन्न देशों में डर पैदा हुआ कि अमेरिका की नीतियों के मुताबिक ना चलने पर उनके साथ भी अमेरिका ऐसा व्यवहार कर सकता है। इसलिए वे डॉलर का इस्तेमाल घटाने में जुट गए हैं।
जेपी मॉर्गन ने कहा है- ‘विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में डी-डॉलराइजेशन के स्पष्ट संकेत हैं, जहां डॉलर के हिस्से में रिकॉर्ड गिरावट आई है।’ अब ट्रेंड यह है कि विभिन्न देश डॉलर की जगह सोने और अन्य मुद्राओं को अपने विदेशी मुद्रा भंडार में ज्यादा से ज्यादा शामिल कर रहे हैँ।
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