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China Taiwan news: What is the secret of this aggression of China? Questions raised after Shangri La Dialogue
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China Taiwan news: आखिर चीन की इस आक्रामकता का राज़ क्या है? शांगरी-ला डायलॉग के बाद खड़े हुए सवाल
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, हांगकांग
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Thu, 08 Jun 2023 02:33 PM IST
कूटनीतिक क्षेत्र में चीन का दावा है कि हाल में उसे ताइवान के मुद्दे पर बड़ी सफलता मिली है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के सूत्रों ने दावा किया है कि ताइवान के सवाल पर दुनिया के ज्यादातर देशों का समर्थन उसे हासिल हो चुका है। ये तमाम देश ताइवान को चीन का हिस्सा मानते हैं...
China Defense Minister Li Shangfu delivers a speech during the Shangri-La Dialogue security conferen
- फोटो : Agency (File Photo)
चीन के तेवर को देखते हुए कूटनीतिक हलकों में ये कयास लगाए जा रहे हैं कि चीन का सर्वोच्च नेतृत्व युद्ध की तैयारियों में है। प्रेस ब्रीफिंग में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ताओं का लहजा अब काफी सख्त दिख रहा है। सिंगापुर में हुए शांगरी-ला डायलॉग में चीन के रक्षा मंत्री ली शांगफू ने भी आक्रामक अंदाज में भाषण दिया था।
इस बीच चीन ने एलान किया कि उसने पूरे देश को एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाने का काम पूरा कर लिया है। चीनी अधिकारियों ने कहा कि दुनिया में जटिल होती स्थितियों को देखते हुए चीन सरकार ने अपनी अर्थव्यवस्था को अपने विशाल बाजार का सहारा देने की सोच के तहत ये कदम उठाया है।
उधर कूटनीतिक क्षेत्र में चीन का दावा है कि हाल में उसे ताइवान के मुद्दे पर बड़ी सफलता मिली है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के सूत्रों ने दावा किया है कि ताइवान के सवाल पर दुनिया के ज्यादातर देशों का समर्थन उसे हासिल हो चुका है। ये तमाम देश ताइवान को चीन का हिस्सा मानते हैं।
ताइवान फिलहाल स्वशासित द्वीप है, लेकिन चीन का हमेशा कहना रहा है कि यह उसका हिस्सा है। 1949 में जब चीन में कम्युनिस्ट क्रांति हुई, तब चीन की आबादी का एक तबका ताइवान चला गया और वहां अपना निवास बना लिया। ताइवान की आबादी दो करोड़ 30 लाख है। रविवार को शांगरी-ला डायलॉग को संबोधित करते हुए ली शांगफू ने कहा था कि ताइवान को अलग करने की किसी कोशिश को चीन बर्दाश्त नहीं करेगा।
कूटनीतिक विश्लेषकों ने कहा है कि अगर ताइवान के मुद्दे पर लड़ाई हुई, तो रूस चीन के सबसे बड़े सहायक के रूप में सामने आएगा। यूक्रेन युद्ध में चीन रूस का सहारा बना है। यह युद्ध शुरू होने के बाद से चीन और रूस के बीच आपसी व्यापार में 40 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। रूस ने बार-बार यह संकेत दिया है कि पश्चिमी देशों के साथ बढ़ रहे टकराव में उसका समर्थन चीन के साथ है।
इस बीच चीन ने यूरोपीय देशों को यह समझाने की मुहिम तेज कर रखी है कि वे ताइवान के मामले में अमेरिका के आक्रामक रुख का साथ ना दें। बीते मार्च में अपनी बीजिंग यात्रा के दौरान फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा था कि चीन से टकराव के मामले में यूरोप को अमेरिका का पिछलग्गू नहीं बनना चाहिए। इस बयान को चीन की एक बड़ी कूटनीतिक जीत समझा गया था।
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लेकिन इस मुद्दे पर यूरोप एकमत नहीं है। दुनिया के जिन 13 देशों ने अभी तक ताइवान को अलग देश के रूप में मान्यता दे रखी है, उनमें वेटिकन शामिल भी है, जिसका कैथोलिक मत का मुख्य स्थल होने के कारण पूरी ईसाई दुनिया में काफी प्रभाव है। लेकिन अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर लाइल गोल्डस्टीन ने ब्रिटिश अखबार द गार्जियन से कहा कि ताइवान से कूटनीतिक संबंध रखने वाले बचे-खुचे देश इतने छोटे हैं कि चीन उनकी परवाह नहीं करता। जो देश ताइवान को चीन का हिस्सा मान चुके हैं, चीन की रणनीति उन देशों पर अपनी यह मान्यता दोहराने के लिए दबाव बनाने की रही है। इसमें उसे काफी सफलता मिली है। विश्लेषकों के मुताबिक कूटनीतिक मोर्चे पर सफलता के बाद अब युद्धकाल में चीन ने घरेलू अर्थव्यवस्था को संभाले रखने की तैयारियों में जुट गया है।
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