लोकप्रिय और ट्रेंडिंग टॉपिक्स

विज्ञापन
Hindi News ›   World ›   China announced plans to build a new ground station on Antarctica

China: अमेरिका गुब्बारे में खोया रहा, चीन ने अंटार्कटिका पर नजरें गड़ा दीं

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, हांग कांग Published by: Harendra Chaudhary Updated Tue, 07 Feb 2023 07:45 PM IST
सार

विशेषज्ञों के मुताबिक चीन ने 2002 के बाद से समुद्री निगरानी के आठ उपग्रह लॉन्च किए हैं। ये उपग्रह कई मकसद साधते हैं। इनमें समुद्री विश्लेषण, संसाधन दोहन, तटीय पर्यावरण का अध्ययन, और आपदा निगरानी शामिल हैं। चीन इसी वर्ष अपना ऐसा नौवां उपग्रह भी अंतरिक्ष में स्थापित करने वाला है...

Antarctica
Antarctica - फोटो : Agency (File Photo)

विस्तार

चीन ने अंटार्कटिका पर एक नया जमीनी स्टेशन बनाने की योजना घोषित की है। चीन सरकार ने इस काम का ठेका चाइना एयरोस्पेस साइंस एंड इंडस्ट्री कॉरपोरेशन (सीएएसआईसी) को दे दिया है। इस स्टेशन के जरिए चीन के नेशनल सैटेलाइट ऑसियन एप्लीकेशन सर्विस (एनएसओएएस) को सेवाएं प्रदान की जाएंगी। चीन में इस बारे में पहली खबर इस महीने की दो तारीख को छपी। लेकिन पर्यवेक्षकों के मुताबिक अमेरिका में उस समय चीनी गुब्बारे की चर्चा इतनी जोरों पर थी कि अमेरिका सहित दुनिया के ज्यादातर देशों के मीडिया ने इस पर ध्यान नहीं दिया।.

विशेषज्ञों के मुताबिक चीन ने 2002 के बाद से समुद्री निगरानी के आठ उपग्रह लॉन्च किए हैं। ये उपग्रह कई मकसद साधते हैं। इनमें समुद्री विश्लेषण, संसाधन दोहन, तटीय पर्यावरण का अध्ययन, और आपदा निगरानी शामिल हैं। चीन इसी वर्ष अपना ऐसा नौवां उपग्रह भी अंतरिक्ष में स्थापित करने वाला है। अंटार्कटिका में बनने वाले जमीनी केंद्र से इन सभी उपग्रहों से डेटा का आदान-प्रदान करने में मदद मिलेगी।

इसके पहले पूर्वी अंटार्कटिका में चीन ने एक वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र बनाया था। इसे उसने जोंगशान नाम दिया है। चीन ने ऐसे कुल पांच केंद्र अलग-अलग जगहों पर बनाए हैं। उन सबका समन्वय पोलर रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ चाइना के जरिए किया जाता है। इनमें से तीन केंद्र अंटार्कटिका में ऑस्ट्रेलियाई अंटार्कटिक प्रदेश में स्थित हैं। इसके अलावा चिली, अर्जेंटीना, नॉर्वे, ब्रिटेन और फ्रांस का भी अंटार्कटिक प्रदेश पर दावा है। लेकिन अंटार्कटिक संधि के मुताबिक इन दावों को मान्यता नहीं मिली हुई है। इसका लाभ चीन उठा रहा है। अंटार्कटिक संधि पर 45 देशों ने दस्तखत किए थे, जिनमें चीन, रूस और अमेरिका भी शामिल हैं। इस संधि में प्रावधान है कि इस क्षेत्र का उपयोग सिर्फ शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए ही किया जा सकता है।

जबकि अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या चीन ने सचमुच अपने उपयोग को शांतिपूर्ण मकसदों तक सीमित रखा है। संदेह है कि इस प्रदेश में स्थापित केंद्रों से प्राप्त सूचना का इस्तेमाल चीन सैनिक मकसदों के लिए कर सकता है। थिंक टैंक ऑस्ट्रेलियन स्ट्रेटेजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट (एएसपीआई) से जुड़े विशेषज्ञ एंटनी बर्गेन ने 2020 में प्रकाशित अपने एक लेख में लिखा था- ‘चीन के रिकॉर्ड को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वह तेजी से अलग-अलग मोर्चे खोल रहा है, जैसाकि उसने दक्षिण चीन सागर में किया है। अंटार्कटिका में चीन जिस गति और पैमाने पर अपनी गतिविधियां बढ़ा रहा है, हमें उसी के अनुरूप जवाब देने के लिए तैयार रहना होगा।’

इसके पहले न्यूजीलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ कैंटबरी में प्रोफेसर एनी मेरी ब्रैडी ने एक रिपोर्ट में कहा था कि चीन ने अंटार्कटिका में अघोषित सैनिक गतिविधियां की हैं। वह उस इलाके पर दावा जताने की तैयारी कर रहा है, ताकि वहां खनिजों का दोहन कर सके। वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज ने पिछले साल अक्तूबर में अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि चीन के अंतरिक्ष उद्योग में चीनी सेना की प्रमुखता है। इस कारण दुनिया भर में बने उसके जमीनी केंद्रों को लेकर आशंका पैदा हुई है।

वेबसाइट एशिया टाइम्स पर छपी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन इस साल 200 से ज्यादा उपग्रह लॉन्च करने वाला है। पश्चिमी देशों के रणनीतिकारों के लिए यह जानना महत्त्वपूर्ण हो गया है कि ये उपग्रह कैसे दुनिया पर नजर रखेंगे और किस तरह का संवाद जमीनी केंद्रों से करेंगे।

विज्ञापन
विज्ञापन

रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे|
Get latest World News headlines in Hindi related political news, sports news, Business news all breaking news and live updates. Stay updated with us for all latest Hindi news.

विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

क्षमा करें यह सर्विस उपलब्ध नहीं है कृपया किसी और माध्यम से लॉगिन करने की कोशिश करें

;

Followed

;