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Benjamin Netanyahu withdraw his Judicial Reform Law for the time being due to Israel protests
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Israel protests: लंबे सियासी करियर में ऐसा अपमान कभी नहीं झेलना पड़ा नेतन्याहू को
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, तेल अवीव
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Tue, 28 Mar 2023 02:43 PM IST
सार
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Israel protests: इस्राइल में जन-विरोध का सिलसिला तीन महीने से चल रहा है। विरोध प्रदर्शन आम तौर पर शांतिपूर्ण रहे हैं। गुजरे महीनों के दौरान इनमें भाग लेने वाले लोगों की संख्या बढ़ती चली गई। इसका इस्राइल के आम जीवन पर खराब असर पड़ा...
Israel protests: इस्राइल के सबसे बड़े श्रमिक संघ ने हड़ताल का आह्वान किया।
- फोटो : Agency (File Photo)
लगातार जारी विरोध प्रदर्शनों के कारण इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को अपने ‘न्यायिक सुधार कानून’ को फिलहाल वापस लेना पड़ा है। विश्लेषकों की राय है कि इस्राइल की जमीनी हालत से कट जाने के कारण प्रधानमंत्री को यह शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है। कानून को ‘अस्थायी रूप से’ वापस लेते हुए नेतन्याहू ने सोमवार को कहा कि अपने विरोधियों को ‘संवाद का वास्तविक मौका’ दे रहे हैं।
साथ ही नेतन्याहू ने अपने गठबंधन सहयोगियों को आश्वासन दिया कि अभी भी वे इस कानून को पारित कराने के लिए संकल्पबद्ध हैं। इसके बावजूद सत्ताधारी गठबंधन के समर्थकों की एक बड़ी भीड़ सोमवार रात सड़कों पर उतर आई। वह ‘न्यायिक सुधार’ वापस लेने की प्रधानमंत्री की घोषणा पर विरोध जता रही थी।
इस्राइली मीडिया की टिप्पणियों में संदेह जताया गया है कि नेतन्याहू अब सचमुच इस कानून को वापस लागू कर पाएंगे। अगर नेतन्याहू इस स्थिति में होते, तो उन्हें कानून को वापस नहीं लेना पड़ता। कदम पीछे खींचने से ठीक एक दिन पहले रविवार को उन्होंने अपने रक्षा मंत्री योआव गैलेंट को इसी मुद्दे पर बर्खास्त कर दिया था। उससे देश में गुस्सा और फैल गया। रक्षा मंत्री की बर्खास्तगी की खबर फैलते ही रात दस बजे हजारों लोग अपने घरों से निकल कर प्रधानमंत्री आवास की तरफ चल पड़े। पुलिस के लिए भीड़ को संभावना असंभव हो गया। इसके बावजूद प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री आवास पर धावा नहीं बोला, जबकि वे ऐसा करने की स्थिति में थे।
इस्राइल में जन-विरोध का सिलसिला तीन महीने से चल रहा है। विरोध प्रदर्शन आम तौर पर शांतिपूर्ण रहे हैं। गुजरे महीनों के दौरान इनमें भाग लेने वाले लोगों की संख्या बढ़ती चली गई। इसका इस्राइल के आम जीवन पर खराब असर पड़ा। ‘न्यायिक सुधार’ कानून की योजना न्याय मंत्री यारिव लेविन ने बीते चार जनवरी को पेश की थी। विपक्ष ने इसे सुप्रीम कोर्ट का गला घोंटने की कोशिश बताया। इस्राइल में लिखित संविधान नहीं है, इसलिए वहां शासन तंत्र में संतुलन बनाए रखने में सुप्रीम कोर्ट की महत्त्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। जबकि प्रस्तावित कानून को लेकर यह राय बनी कि इसके जरिए सुप्रीम कोर्ट को सरकार और संसद के मातहत लाने की कोशिश की जा रही है।
अखबार द हारेट्ज ने अपने एक विश्लेषण में कहा है कि प्रधानमंत्री ने जन संपर्क की अनदेखी कर सबसे बड़ी गलती की। उन्होंने प्रस्तावित कानून के बारे में जनमत बनाने की कोशिश नहीं की। ऐसा शायद उन्होंने अति आत्म-विश्वास के कारण किया। दूसरी गलती उन्होंने जन प्रदर्शनों की ताकत की अनदेखी करके किया। शायद उन्हें लगा कि ये प्रदर्शन वामपंथी समूहों की तरफ से किए जा रहे हैं, जिनके साथ जन समर्थन नहीं है। जबकि इन प्रदर्शनों को कारोबारी समुदाय, टेक्नोलॉजी सेक्टर और आम लोगों का भी समर्थन मिल रहा था।
नेतन्याहू ने तीसरी और सबसे बड़ी गलती रविवार रात रक्षा मंत्री गैलेंट को बर्खास्त करके की। यह कदम उन्होंने सेनाध्यक्षों की राय को नजरअंदाज करते हुए उठाया। इससे साफ संकेत मिला कि नेतन्याहू इस्राइल की जमीनी सूरत से कट गए हैं। रक्षा मंत्री को हटाना उनके लिए बहुत भारी पड़ा। अब उन्हें ऐसी मुंह की खानी पड़ी है, जैसा उनके लंबे राजनीतिक करियर में कभी नहीं हुआ।
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