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artificial kidney, South Korean researchers claim thousands of lives will be saved
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South Korea: दवाओं की विषाक्तता पता लगाने में मदद करेगी कृत्रिम किडनी, बचेगी हजारों लोगों की जान
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, सियोल।
Published by: Jeet Kumar
Updated Sun, 02 Apr 2023 05:58 AM IST
सार
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शोध से जुड़े प्रोफेसर दोंग वू चो कहते हैं, किडनी की मूलभूत संरचनात्मक और कार्यात्मक इकाई नेफ्रॉन है, जिसमें ग्लोमेरुलस नामक छोटी रक्त वाहिकाओं का नेटवर्क शामिल होता है।
दक्षिण कोरिया की पोहांग यूनिवर्सिटी के विज्ञानियों ने कृत्रिम किडनी विकसित की है। यह किडनी दवाओं की विषाक्तता और इसके दुष्प्रभावों की पहचान करने में मदद करेगी।
शोध से जुड़े प्रोफेसर दोंग वू चो कहते हैं, किडनी की मूलभूत संरचनात्मक और कार्यात्मक इकाई नेफ्रॉन है, जिसमें ग्लोमेरुलस नामक छोटी रक्त वाहिकाओं का नेटवर्क शामिल होता है। जब शरीर में अधिक मात्रा में दवाएं दी जाती हैं, तो दवा विषाक्तता प्रदर्शित करने वाला नेफ्रॉन पहला अंग होता है। दवाओं के रोगियों पर इस्तेमाल से पहले उनकी विषाक्तता की सीमा का अध्ययन करने के लिए कृत्रिम किडनी विकसित की गई है।
वू चो ने बताया कि उन्होंने ग्लोमेरुलस इकाइयों का एक कृत्रिम विकल्प तैयार किया है, जिसे माइक्रोवेसल चिप से जोड़ा गया है। इसमें ग्लोमेरुलर एंडोथेलियल कोशिकाएं, पोडोसाइट परतें और एक ग्लोमेरुलर बेसमेंट मेम्ब्रेन (जीबीएम) शामिल हैं, जो सिंगल स्टेप फैब्रिकेशन प्रोसेस का उपयोग करते हैं। वू चो ने बताया कि कृत्रिम किडनी से नैदानिक अभ्यास, दवाओं की निगरानी व नेफ्रोटॉक्सिसिटी परीक्षण की असीम संभावनाएं व क्षमता मिलती हैं।
प्रोटीन का उत्पादन
प्रो. वू चो ने बताया चिप मोनोलेयर ग्लोमेरुलर एंडोथेलियम, पॉडोसाइट एपिथेलियम की परस्पर क्रिया की अनुमति देती है, जिससे जीबीएम प्रोटीन का उत्पादन होता हैग्लोमेरुलर कोशिकाओं की कार्यक्षमता प्रदर्शित होती है।
क्यों पड़ी जरूरत
विज्ञानी चो ने बताया, किडनी रक्तप्रवाह में मौजूद ज्यादातर विषाक्त पदार्थों व चयापचय अपशिष्ट को शरीर से बाहर कर होमियोस्टैसिस बनाए रखता है, लेकिन, फिर भी कुछ दवाएं ऐसी होती हैं, जो किडनी में ही विषाक्तता पैदा कर देती हैं, जिससे पूरा शरीर प्रभावित होता है।
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