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उत्तरकाशी। लोक संगीत और वाद्य यंत्रों के प्रति सात समंदर पार कद्रदानों की संख्या बढ़ रही है। अमेरिका के दंपत्ति जेसन और सेराह बसनूस्की ने गढ़वाल के लोक संगीत तथा वाद्य यंत्रों पर शोध के लिए इन दिनों उत्तरकाशी में हैं।
अमेरिका की सेंटा बारबरा यूनिवर्सिटी कैलीफोर्निया से संगीत में परास्नातक जेसन बसनूस्की और उनकी पत्नी सेराह ने बताया कि वे नेहरू फुल ब्राइट स्कालरशिप के तहत यह शोध कर रहे हैं। उनका मुख्य विषय पारपंरिक वाद्य मस्कबीन है। इस अध्ययन से पहले उन्होंने अमेरिका में ही बकायदा हिंदी भी सीखी है। वे एक वर्ष भारत में रहकर शोध पूरा करेंगे।
संवेदना समूह के अध्यक्ष जयप्रकाश राणा, सुरेंद्र पुरी तथा गढ़वाल विश्व विद्यालय के लोक कला निष्पादन केंद्र के डा.अजीत पंवार ने इन विदेशी शोधार्थियों को चैती और प्रभाती गीतों के साथ ही वीर भड़ों के जागर, पवाड़े, छोड़े आदि के बारे में जानकारी दी। तिलोथ गांव में बाजगी बचन दास, हुकम दास, झाबा देवी और चंद्रा देवी ने उन्हें पारंपरिक वाद्य यंत्रों व गायन के बारे में जानकारी दी।
संरक्षण के अभाव से युवा लोक संगीत और पारंपरिक वाद्य यंत्रों से दूर होते जा रहे हैं। प्रोत्साहन के अभाव में बाजगी समुदाय की अगली पीढ़ी भी इससे किनारा कर चुकी है। यदि शीघ्र इस दिशा में ठोस प्रयास नहीं किए गए तो यह सिर्फ शोध का विषय बनकर ही रह जाएंगे। - जयप्रकाश राणा, अध्यक्ष संवेदना समूह।
नोट- उक्त समाचार के साथ 27यूकेआई5 व 8 फोटो तथा निमभन को बॉक्स में लगाएं।
उत्तरकाशी। लोक संगीत और वाद्य यंत्रों के प्रति सात समंदर पार कद्रदानों की संख्या बढ़ रही है। अमेरिका के दंपत्ति जेसन और सेराह बसनूस्की ने गढ़वाल के लोक संगीत तथा वाद्य यंत्रों पर शोध के लिए इन दिनों उत्तरकाशी में हैं।
अमेरिका की सेंटा बारबरा यूनिवर्सिटी कैलीफोर्निया से संगीत में परास्नातक जेसन बसनूस्की और उनकी पत्नी सेराह ने बताया कि वे नेहरू फुल ब्राइट स्कालरशिप के तहत यह शोध कर रहे हैं। उनका मुख्य विषय पारपंरिक वाद्य मस्कबीन है। इस अध्ययन से पहले उन्होंने अमेरिका में ही बकायदा हिंदी भी सीखी है। वे एक वर्ष भारत में रहकर शोध पूरा करेंगे।
संवेदना समूह के अध्यक्ष जयप्रकाश राणा, सुरेंद्र पुरी तथा गढ़वाल विश्व विद्यालय के लोक कला निष्पादन केंद्र के डा.अजीत पंवार ने इन विदेशी शोधार्थियों को चैती और प्रभाती गीतों के साथ ही वीर भड़ों के जागर, पवाड़े, छोड़े आदि के बारे में जानकारी दी। तिलोथ गांव में बाजगी बचन दास, हुकम दास, झाबा देवी और चंद्रा देवी ने उन्हें पारंपरिक वाद्य यंत्रों व गायन के बारे में जानकारी दी।
संरक्षण के अभाव से युवा लोक संगीत और पारंपरिक वाद्य यंत्रों से दूर होते जा रहे हैं। प्रोत्साहन के अभाव में बाजगी समुदाय की अगली पीढ़ी भी इससे किनारा कर चुकी है। यदि शीघ्र इस दिशा में ठोस प्रयास नहीं किए गए तो यह सिर्फ शोध का विषय बनकर ही रह जाएंगे। - जयप्रकाश राणा, अध्यक्ष संवेदना समूह।
नोट- उक्त समाचार के साथ 27यूकेआई5 व 8 फोटो तथा निमभन को बॉक्स में लगाएं।