पढ़ें अमर उजाला ई-पेपर
कहीं भी, कभी भी।
*Yearly subscription for just ₹299 Limited Period Offer. HURRY UP!
उत्तरकाशी। हर्षिल क्षेत्र में दो बार की बर्फबारी से सेब की अच्छी फसल से प्रफुल्लित किसानों को अब लंगूरों का डर सताने लगा है। जंगल में भोजन के अभाव में लंगूर सेब वृक्षों की मीठी नर्म छाल के लालच में सेब बागीचों का रुख कर रहे हैं।
सर्वाधिक सेब की पैदावार वाले उपला टकनौर के हर्षिल क्षेत्र में इस सीजन में दो बार की बर्फबारी से सेब की अच्छी फसल की उम्मीद जगी है। लेकिन अब यहां सेब बागीचों पर लंगूरों का खतरा मंडराने लगा है। जानकारों का कहना है कि जंगलों में जामुन, बमोर, पांगर, थुनेर, अखरोट, आमील, केदारपत्ती की कमी से वन्य जीवों की आहार श्रृंखला समाप्त हो रही है। आजकल स्थिति यह है कि जंगलों से लगे बागीचों में लंगूर उत्पात मचा रहे हैं। लंगूर सेब के पेड़ों की नर्म मीठी छाल उधेड़ कर चट करने में लगे हैं।
इनसेट-
बर्फ से ढके बागीचों से लंगूरों के झुंडों को खदेड़ने के लिए गांव वालों को सुबह से देर शाम तक बागीचों में डेरा डालना पड़ रहा है। हर साल लंगूर सेब बागीचों को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। क्षेत्र में परियोजना निर्माण के बाद यह स्थिति आई है।- मोहन सिंह राणा, सेब काश्तकार सुक्की गांव।
जंगलों में आहार न मिलने पर ही वन्य जीव गांवों का रुख करते हैं। इनसे बागीचों और फसलों की सुरक्षा के इंतजाम ग्रामीणों को स्वयं ही करने होंगे। वन विभाग के पास फिलहाल कोई व्यवस्था नहीं है।- डा.आईपी सिंह, डीएफओ उत्तरकाशी वन प्रभाग।
उत्तरकाशी। हर्षिल क्षेत्र में दो बार की बर्फबारी से सेब की अच्छी फसल से प्रफुल्लित किसानों को अब लंगूरों का डर सताने लगा है। जंगल में भोजन के अभाव में लंगूर सेब वृक्षों की मीठी नर्म छाल के लालच में सेब बागीचों का रुख कर रहे हैं।
सर्वाधिक सेब की पैदावार वाले उपला टकनौर के हर्षिल क्षेत्र में इस सीजन में दो बार की बर्फबारी से सेब की अच्छी फसल की उम्मीद जगी है। लेकिन अब यहां सेब बागीचों पर लंगूरों का खतरा मंडराने लगा है। जानकारों का कहना है कि जंगलों में जामुन, बमोर, पांगर, थुनेर, अखरोट, आमील, केदारपत्ती की कमी से वन्य जीवों की आहार श्रृंखला समाप्त हो रही है। आजकल स्थिति यह है कि जंगलों से लगे बागीचों में लंगूर उत्पात मचा रहे हैं। लंगूर सेब के पेड़ों की नर्म मीठी छाल उधेड़ कर चट करने में लगे हैं।
इनसेट-
बर्फ से ढके बागीचों से लंगूरों के झुंडों को खदेड़ने के लिए गांव वालों को सुबह से देर शाम तक बागीचों में डेरा डालना पड़ रहा है। हर साल लंगूर सेब बागीचों को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। क्षेत्र में परियोजना निर्माण के बाद यह स्थिति आई है।- मोहन सिंह राणा, सेब काश्तकार सुक्की गांव।
जंगलों में आहार न मिलने पर ही वन्य जीव गांवों का रुख करते हैं। इनसे बागीचों और फसलों की सुरक्षा के इंतजाम ग्रामीणों को स्वयं ही करने होंगे। वन विभाग के पास फिलहाल कोई व्यवस्था नहीं है।- डा.आईपी सिंह, डीएफओ उत्तरकाशी वन प्रभाग।