उत्तरकाशी। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा आपदा राहत के केंद्रीय मानकों के बराबर धनराशि मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से देने की घोषणा तो कर गए, लेकिन इतने से पीड़ितों के वास्तविक नुकसान की भरपाई संभव नहीं है। मानकों को देखकर ऐसा कहा जा सकता है।
केंद्रीय राहत मानकों के अनुसार प्राकृतिक आपदा में मकान पूर्ण क्षतिग्रस्त होने पर एक लाख, तीक्ष्ण क्षतिग्रस्त पर 6300 एवं आंशिक क्षतिग्रस्त पर 1900 रुपये की सहायता का प्रावधान है। जमीन बहने की क्षतिपूर्ति 500 रुपये प्रति नाली, मलबा आने पर 16.20 रुपये प्रति नाली, सिंचित खेतों की फसल का 120 रुपये नाली एवं असिंचित खेतों की फसल का 60 रुपये नाली की दर से मुआवजा देने के मानक हैं। मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से इसके बराबर राशि मिलने पर मुआवजा कितना बैठेगा, अंदाजा लगाया जा सकता है। मृतक आश्रितों के लिए इस वित्तीय वर्ष में तीन लाख रुपये मुआवजे का प्रावधान है।
क्षति का आंकलन करने में जुटी राजस्व विभाग की टीम एक मकान को एक इकाई गिन रही है। ऐसे में एक ही बहुमंजिला एवं कई कमरों वाले भवन में अलग-अलग रहने वाले परिवार को एक ही इकाई मानकर क्षतिपूर्ति की जानी है। इन हालात में आपदा राहत के ये केंद्रीय मानक पीड़ितों के घावों पर नमक छिड़कते नजर आते हैं।
तब तो ऐसा नहीं हुआ था
उत्तरकाशी। वर्ष 1978 की भीषण बाढ़ के बाद वर्ष 1991 के विनाशकारी भूकंप और 2003 में वरुणावत भूस्खलन की त्रासदी झेल चुके जनपदवासी जानते हैं कि भूकंप के समय मुआवजा देते समय छत नहीं परिवार गिने गए थे। वरुणावत भूस्खलन के समय विशेष पैकेज से व्यवसायिक प्रतिष्ठानों समेत प्रभावितों की वास्तविक क्षति का आकलन कर मुआवजा दिया गया था।
वास्तविक क्षति की भरपाई की जाए
उत्तरकाशी। जिला पंचायत सदस्य सुरेश चौहान एवं सामाजिक कार्यकर्ता लोकेंद्र बिष्ट का कहना है कि आपदा की भयावहता को देखते हुए राहत के लिए विशेष पैकेज स्वीकृत होना चाहिए। सरकारी नुकसान का आकलन तो बढ़ा-चढ़ा कर किया जाता है, लेकिन पीड़ितों के नुकसान की बात आती है तो मानक आड़े आ जाते हैं। महंगाई के इस दौर में मानकों के अनुसार मिलने वाली राहत राशि ऊंट के मुंह में जीरा है।
उत्तरकाशी। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा आपदा राहत के केंद्रीय मानकों के बराबर धनराशि मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से देने की घोषणा तो कर गए, लेकिन इतने से पीड़ितों के वास्तविक नुकसान की भरपाई संभव नहीं है। मानकों को देखकर ऐसा कहा जा सकता है।
केंद्रीय राहत मानकों के अनुसार प्राकृतिक आपदा में मकान पूर्ण क्षतिग्रस्त होने पर एक लाख, तीक्ष्ण क्षतिग्रस्त पर 6300 एवं आंशिक क्षतिग्रस्त पर 1900 रुपये की सहायता का प्रावधान है। जमीन बहने की क्षतिपूर्ति 500 रुपये प्रति नाली, मलबा आने पर 16.20 रुपये प्रति नाली, सिंचित खेतों की फसल का 120 रुपये नाली एवं असिंचित खेतों की फसल का 60 रुपये नाली की दर से मुआवजा देने के मानक हैं। मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से इसके बराबर राशि मिलने पर मुआवजा कितना बैठेगा, अंदाजा लगाया जा सकता है। मृतक आश्रितों के लिए इस वित्तीय वर्ष में तीन लाख रुपये मुआवजे का प्रावधान है।
क्षति का आंकलन करने में जुटी राजस्व विभाग की टीम एक मकान को एक इकाई गिन रही है। ऐसे में एक ही बहुमंजिला एवं कई कमरों वाले भवन में अलग-अलग रहने वाले परिवार को एक ही इकाई मानकर क्षतिपूर्ति की जानी है। इन हालात में आपदा राहत के ये केंद्रीय मानक पीड़ितों के घावों पर नमक छिड़कते नजर आते हैं।
तब तो ऐसा नहीं हुआ था
उत्तरकाशी। वर्ष 1978 की भीषण बाढ़ के बाद वर्ष 1991 के विनाशकारी भूकंप और 2003 में वरुणावत भूस्खलन की त्रासदी झेल चुके जनपदवासी जानते हैं कि भूकंप के समय मुआवजा देते समय छत नहीं परिवार गिने गए थे। वरुणावत भूस्खलन के समय विशेष पैकेज से व्यवसायिक प्रतिष्ठानों समेत प्रभावितों की वास्तविक क्षति का आकलन कर मुआवजा दिया गया था।
वास्तविक क्षति की भरपाई की जाए
उत्तरकाशी। जिला पंचायत सदस्य सुरेश चौहान एवं सामाजिक कार्यकर्ता लोकेंद्र बिष्ट का कहना है कि आपदा की भयावहता को देखते हुए राहत के लिए विशेष पैकेज स्वीकृत होना चाहिए। सरकारी नुकसान का आकलन तो बढ़ा-चढ़ा कर किया जाता है, लेकिन पीड़ितों के नुकसान की बात आती है तो मानक आड़े आ जाते हैं। महंगाई के इस दौर में मानकों के अनुसार मिलने वाली राहत राशि ऊंट के मुंह में जीरा है।