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रुद्रपुर। फूल सी बिटिया आंगन की रौनक होती है। उसकी मीठी किलकारियों में मां, बेटी, बहन और बहू का दुलार छिपा होता है। लेकिन बाल लिंगानुपात इसी दर से गिरता रहा तो शायद आने वाले वक्त में इस बिटिया की किलकारी घर के आंगन में सुनाई नहीं देगी।
सरकार द्वारा कानून बनाए जाने, अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर सख्ती करने के बावजूद लड़के की चाह में प्रदेश में बाल लिंगानुपात का ग्राफ लगातार नीचे जा रहा है। जो चिंता का विषय है। पुत्र संतान की इच्छा स्पष्ट तौर पर व्यक्त की जाती है कि माता-पिता कन्या शिशु को जन्म से पूर्व मार देने में जरा सी भी हिचक नहीं रहे। कन्या के जन्म को अभिशाप के रुप में माना जा रहा है। जो भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। ऑकड़ों पर यदि गौर करें तो प्रदेश में बाल लिंग अनुपात (0-6 वर्ष) वर्ष 2001 में जहां 967 था वह वर्ष 2011 में घटकर 886 पहुंच गया। वर्तमान में ग्रामीण क्षेत्र में बाल लिंग अनुपात 894 तो शहरी क्षेत्र में यह 864 प्रति हजार है। प्रदेश के ग्रामीण वर्ग में अधिकतम बाल लिंग अनुपात 926 अल्मोड़ा में तो शहरी वर्ग में 888 ऊधम सिंह नगर जिले में है। हालात किस कदर गंभीर हैं यह ऑकड़ों से समझा जा सकता है। कन्या को भी जन्म लेने और जीने का पूरा अधिकार है।
कोड वर्ड है निर्धारित
रुद्रपुर। जिले में 102 अल्ट्रासाउंड केंद्र पंजीकृत हैं। जिनमें से वर्तमान में 75 संचालित हैं। इनमें से कुछ केंद्रों में सख्ती के दावों के बावजूद लिंग जांच कर कन्याओं को मिटाया जा रहा है। केंद्रों द्वारा कोड वर्ड के माध्यम से अभिभावकों को लड़का-लड़की का संदेश दिया जाता है।
फार्म एफ के नाम पर खेल
रुद्रपुर। कहने को तो अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर जांच कराने के लिए फार्म-एफ भरना अनिवार्य है। लेकिन उसमें भी भारी खेल हो रहा है। 15 सवालों से जुड़ा फार्म चिकित्सक को भरना होता है। लेकिन संचालक जांच कराने वाले के सादे फार्म में हस्ताक्षर करा लेते हैं। बाकी काम सेंटर संचालक का होता है। ऑनलाइन प्रकिया शुरु होने के बाद इसमें कुछ हद तक लगाम लगने की उम्मीद है।
ये किए जाते हैं लिंग निर्धारण टेस्ट के रुप में प्रयोग
भ्रूण द्रव्य जांच, गर्भावस्था के 15-17 सप्ताह बाद
कोरियोनिक विलस सैंपलिंग (सीवीएम) अधिक महंगा, गर्भावस्था के दसवें हफ्ते में
अल्ट्रासाउंड, सबसे सस्ता, गर्भावस्था के दसवें हफ्ते में।
तहसील और जिले स्तर पर पीएनडीटी कमेटी का गठन किया गया है। जिनके द्वारा समय-समय पर जांच की जाती है। घटता लिंगानुपात चिंता का विषय है। निरीक्षण में तेजी लाई जाएगी।
डा. वाईसी शर्मा, मुख्य चिकित्साधिकारी, ऊधम सिंह नगर।
रुद्रपुर। फूल सी बिटिया आंगन की रौनक होती है। उसकी मीठी किलकारियों में मां, बेटी, बहन और बहू का दुलार छिपा होता है। लेकिन बाल लिंगानुपात इसी दर से गिरता रहा तो शायद आने वाले वक्त में इस बिटिया की किलकारी घर के आंगन में सुनाई नहीं देगी।
सरकार द्वारा कानून बनाए जाने, अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर सख्ती करने के बावजूद लड़के की चाह में प्रदेश में बाल लिंगानुपात का ग्राफ लगातार नीचे जा रहा है। जो चिंता का विषय है। पुत्र संतान की इच्छा स्पष्ट तौर पर व्यक्त की जाती है कि माता-पिता कन्या शिशु को जन्म से पूर्व मार देने में जरा सी भी हिचक नहीं रहे। कन्या के जन्म को अभिशाप के रुप में माना जा रहा है। जो भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। ऑकड़ों पर यदि गौर करें तो प्रदेश में बाल लिंग अनुपात (0-6 वर्ष) वर्ष 2001 में जहां 967 था वह वर्ष 2011 में घटकर 886 पहुंच गया। वर्तमान में ग्रामीण क्षेत्र में बाल लिंग अनुपात 894 तो शहरी क्षेत्र में यह 864 प्रति हजार है। प्रदेश के ग्रामीण वर्ग में अधिकतम बाल लिंग अनुपात 926 अल्मोड़ा में तो शहरी वर्ग में 888 ऊधम सिंह नगर जिले में है। हालात किस कदर गंभीर हैं यह ऑकड़ों से समझा जा सकता है। कन्या को भी जन्म लेने और जीने का पूरा अधिकार है।
कोड वर्ड है निर्धारित
रुद्रपुर। जिले में 102 अल्ट्रासाउंड केंद्र पंजीकृत हैं। जिनमें से वर्तमान में 75 संचालित हैं। इनमें से कुछ केंद्रों में सख्ती के दावों के बावजूद लिंग जांच कर कन्याओं को मिटाया जा रहा है। केंद्रों द्वारा कोड वर्ड के माध्यम से अभिभावकों को लड़का-लड़की का संदेश दिया जाता है।
फार्म एफ के नाम पर खेल
रुद्रपुर। कहने को तो अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर जांच कराने के लिए फार्म-एफ भरना अनिवार्य है। लेकिन उसमें भी भारी खेल हो रहा है। 15 सवालों से जुड़ा फार्म चिकित्सक को भरना होता है। लेकिन संचालक जांच कराने वाले के सादे फार्म में हस्ताक्षर करा लेते हैं। बाकी काम सेंटर संचालक का होता है। ऑनलाइन प्रकिया शुरु होने के बाद इसमें कुछ हद तक लगाम लगने की उम्मीद है।
ये किए जाते हैं लिंग निर्धारण टेस्ट के रुप में प्रयोग
भ्रूण द्रव्य जांच, गर्भावस्था के 15-17 सप्ताह बाद
कोरियोनिक विलस सैंपलिंग (सीवीएम) अधिक महंगा, गर्भावस्था के दसवें हफ्ते में
अल्ट्रासाउंड, सबसे सस्ता, गर्भावस्था के दसवें हफ्ते में।
तहसील और जिले स्तर पर पीएनडीटी कमेटी का गठन किया गया है। जिनके द्वारा समय-समय पर जांच की जाती है। घटता लिंगानुपात चिंता का विषय है। निरीक्षण में तेजी लाई जाएगी।
डा. वाईसी शर्मा, मुख्य चिकित्साधिकारी, ऊधम सिंह नगर।